एसपी और इंस्पेक्टर के साथ अब एसडीपीओ और थानाध्यक्ष भी केसों की जांच-पड़ताल और सुपरविजन के साथ ही उसका नियंत्रण भी कर सकेंगे. वर्तमान में सिर्फ एसपी और इंस्पेक्टर स्तर पर ही केसों का नियंत्रण होने से मामलों की जांच में विलंब और गुणवत्ता प्रभावित होने से बिहार पुलिस मुख्यालय ने यह कदम उठाया है. डीजीपी आरएस भट्टी के इस आदेश को नये केसों के लिए तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है. साथ ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर अफसरों की इसकी जानकारी भी दी गयी है.
एडीजी मुख्यालय जितेंद्र सिंह गंगवार ने सोमवार को नियमित ब्रीफिंग में बताया कि स्पेशल रिपोर्टेड (एसआर) या गंभीर प्रकृति के मामलों में केस का नियंत्रण एसपी स्वयं करेंगे. इनमें संगठित गिरोह, पेशेवर अपराध, अंतर जिला, अंतरराज्जीय या अंतरराष्ट्रीय प्रकृति के मामले शामिल हो सकते हैं. स्पेशल रिपोर्टेड केस में ही निर्धारित श्रेणी (ब तथा कंडिका ख एवं ग) के मामलों में सुपरविजन टिप्पणी से लेकर अंतिम आदेश एवं अपील तक एसडीपीओ के स्तर से किया जा सकेगा. एसपी के स्तर पर इन केसों को एसडीपीओ को सौंपे जाने पर निर्णय लिया जायेगा.
उन्होंने बताया कि नन स्पेशल रिपोर्टेड (एनएसआर) केस में केसों की जटिलता एवं महत्व का आकलन कर एसपी विवेकानुसार स्वयं केस का नियंत्रण कर सकते हैं. अन्य केसों को एसडीपीओ, सीआइ और थानाध्यक्ष द्वारा नियंत्रित किये जाने के रूप में मार्क किया जायेगा. सामान्यत: आइपीसी में सात वर्ष से अधिक सजा वाले अविशेष केस अथवा स्थानीय एवं विशेष अधिनियमों के अंतर्गत तीन वर्ष से अधिक सजा वाले अविशेष केसों का सुपरविजन एवं नियंत्रण एसडीपीओ को दिया जायेगा.
आइपीसी में तीन वर्ष से अधिक तथा अधिकतम सात वर्ष तक की सजा वाले केस अथवा स्थानीय एवं विशेष अधिनियमों के अंतर्गत तीन वर्ष तक की सजा वाले केसों का सुपरविजन एवं नियंत्रण इंस्पेक्टर द्वारा किया जायेगा. अन्य सभी साधारण प्रकृति के केसों के मामले में थानाध्यक्षों का विशेष दायित्व होगा कि वे इन केसों का सुपरविजन एवं नियंत्रण करते हुए केस की जांच 10 से 15 दिन में सुनिश्चित करें. एडीजी ने बताया कि यूएपीए के अधीन केसों का नियंत्रण एसपी ही करेंगे. किसी केस की संवेदनशीलता बढ़ने पर भी उसको एसपी को ट्रांसफर किया जा सकेगा.