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Chandrayaan-3: तो टल सकती है चंद्रयान- 3 की लैंडिंग? ISRO ने रखा रिजर्व डे

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बने गड्ढे हमेशा अंधेरे में रहते हैं. 25 किलामीटर की ऊंचाई से लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. वैसे में लैंडर की रफ्तार को नियंत्रित करना सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. इसके अलावा ये भी परेशानी सामने आ सकती है.

Chandrayaan-3: अंतरिक्ष की दुनिया में भारत इतिहास रचने अब कुछ ही कदम दूर है. चंद्रमा पर विक्रम लैंडर के सफल लैंडिंग के साथ भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. आज शाम 5 बजे से लेकर छह बजे के बीच लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी में है. हालांकि इसको लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है कि लैंडिंग टल भी सकती है.

चंद्रयान- 3 की लैंडिंग के लिए इसरो ने रखा रिजर्व डे

टीवी रिपोर्ट के अनुसार चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसरो ने रिजर्व डे रखा है. इसरो अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई के अनुसार, वैज्ञानिकों का ध्यान चंद्रमा की सतह के ऊपर अंतरिक्ष यान की गति को कम करने पर होगा. उन्होंने बताया, लैंडर 23 अगस्त को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश करेगा और उस समय इसकी गति 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड होगी. हमारा ध्यान उस गति को कम करने पर होगा क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल की भी इसमें भूमिका होगी. उन्होंने कहा, यदि हम उस गति को नियंत्रित नहीं करते हैं, तो ‘क्रैश लैंडिंग’ की आशंका होगी. यदि 23 अगस्त को (लैंडर मॉड्यूल का) कोई भी तकनीकी मानक असामान्य पाया जाता है, तो हम लैंडिंग को 27 अगस्त तक के लिए स्थगित कर देंगे.

लैंडिंग में आ सकती है ऐसी परेशानी

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बने गड्ढे हमेशा अंधेरे में रहते हैं. 25 किलामीटर की ऊंचाई से लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. वैसे में लैंडर की रफ्तार को नियंत्रित करना सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. इसके अलावा ये भी परेशानी सामने आ सकती है.

लैंडिंग के लिए सही समय और सही स्पीड है जरूरी

लैंडर के उतरने और कंपन की गति को करना होगा कंट्रोल

चंद्रमा की सतह पर मौजूद गुरुत्वाकर्षण भी है चुनौती

चांद की सतह पर मौजूद क्रेटर और रेजोलिथ

सिग्नल पहुंचने में देरी भी लैंडिंग को बनाता है मुश्किल

आखिरी के 17 मिनट बेहद खास

एक सवाल के जवाब में, इसरो अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई ने उम्मीद जताई कि वैज्ञानिक लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतारने में सफल होंगे. उन्होंने कहा, लैंडिंग भारतीय समयानुसार शाम 06.04 बजे शुरू होगी. उससे दो घंटे पहले, हम निर्देश अपलोड करेंगे. हम टेलीमेट्री सिग्नल का विश्लेषण करेंगे और चंद्रमा की स्थितियों पर विचार करेंगे. यदि कोई तकनीकी मानक असामान्य होता है, तो हम इसे 27 अगस्त के लिए टाल देंगे और अगर सब कुछ ठीक रहा तो (उस दिन) उतारने की कोशिश करेंगे. उन्होंने कहा कि लैंडर मॉड्यूल के उतरने के अंतिम 17 मिनट बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा, जब लैंडर उतरना शुरू करेगा, तो चार इंजन वाले थ्रस्टर इसकी गति कम करेंगे. उन्होंने कहा, ‘‘जब लैंडर दो इंजनों की मदद से चंद्रमा की सतह से 800 मीटर की ऊंचाई पर होगा, तो गति शून्य तक पहुंच जाएगी. 800 मीटर से 150 मीटर तक, यह (लैंडर मॉड्यूल) सीधे नीचे उतरेगा. उन्होंने कहा कि लैंडर मॉड्यूल पर लगे सेंसर का उपयोग करके एकत्र किया गया डेटा बहुत महत्वपूर्ण होगा और उसी के आधार पर लैंडिंग स्थल का चयन किया जाएगा. उन्होंने कहा, हमारे पास सेंसर हैं जो चंद्रमा की सतह से लैंडर की गति और दूरी के बारे में सटीक जानकारी भेजेंगे.

चंद्रमा की सतह को छूना भारत के लिए क्यों फायदेमंद ?

भारत जल्द ही जब चांद की सतह पर उतरने का अपना दूसरा प्रयास करेगा तो राष्ट्रीय गौरव से कहीं अधिक बातें खबरें बनेंगी. भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को उतरने का प्रयास करेगा, जिससे संभावित रूप से कई आर्थिक लाभ मिलने का रास्ता साफ हो सकता है. चंद्रयान-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है और अगर यह कामयाब होता है तो भारत, अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश होगा. चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा पर एक रोवर तैनात करने और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन करने की योजना है.

हर स्थिति में करेगा लैंड

इसरो चीफ एस सोमनाथ के अनुसार, चंद्रयान-3 को इस तरह बनाया गया है कि अगर सारे सेंसर्स फेल हो जाएं, कुछ काम न करे, तब भी यह लैंडिंग करेगा. दोनों इंजन बंद होने पर भी लैंडिंग में सक्षम रहेगा. 23 अगस्त को ही सॉफ्ट लैंडिंग का दिन क्यों चुना गया. इसपर बताया गया है कि चंद्रमा पर 14 दिनों का दिन और 14 दिनों का रात होता है. अभी चंद्रमा पर रात है और 23 तारीख को सूर्योदय होगा. लैंडर विक्रम व रोवर प्रज्ञान दोनों सोलर पैनल के इस्तेमाल से ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे.

चंद्रयान-3 की सफलता का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ सकता है

अंतरिक्ष यात्रा में लगे इस देश के लिए यह केवल राष्ट्रीय गौरव की बात नहीं है : चंद्रयान-3 की सफलता का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ सकता है. दुनिया ने पहले ही अंतरिक्ष संबंधी प्रयासों से रोजमर्रा की जिंदगी में मिले फायदे देखे हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जल पुनर्चक्रण के साथ स्वच्छ पेयजल तक पहुंच, स्टारलिंक द्वारा विश्वभर में इंटरनेट का प्रसार, सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां आदि. उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरों और नौवहन के वैश्विक आंकड़ों की बढ़ती मांग के साथ कई रिपोर्टें दिखाती हैं कि दुनिया पहले ही अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की तेजी से वृद्धि के चरण में है.

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2025 तक 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2025 तक 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. चंद्रमा पर सफल लैंडिंग भारत की तकनीकी क्षमता को भी बयां करेगी. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 50 साल पहले अपोलो अभियान के दौरान मनुष्यों को सफलतापूर्वक चांद पर पहुंचाया था लेकिन ऐसा लगता है कि कई लोग वहां पहुंचने के लिए उठाए कदमों और भारी मात्रा में लगाए धन को भूल गए हैं.

चंद्रयान-1 में सफल होने के बाद भी भारत को नहीं मिली पूरी कामयाबी

भारत की चंद्रयान-1 के साथ चंद्रमा पर पहुंचने की पहली कोशिश अपने लगभग हर उद्देश्य और वैज्ञानिक लक्ष्यों में कामयाब थी जिसमें पहली बार चांद की सतह पर पानी के सबूत मिले थे. लेकिन इसरो का, दो साल के लिए निर्धारित इस मिशन के 312 दिन पूरे होने के बाद ही अंतरिक्षयान से संपर्क टूट गया था.

चंद्रयान-2 मिशन में ऐसी असफल रहा भारत

भारत ने छह सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन के तहत प्रज्ञान रोवर लेकर जा रहे विक्रम लैंडर के साथ चांद की सतह पर पहुंचने का फिर से प्रयास किया. हालांकि, चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर से संपर्क टूट गया और नासा द्वारा ली गयी तस्वीरों ने बाद में पुष्टि की कि यह चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. चंद्रयान-2 से सबक लेकर चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए हैं. लक्षित लैंडिंग क्षेत्र को 4.2 किलोमीटर लंबाई और 2.5 किलोमीटर चौड़ाई तक बढ़ा दिया गया है.

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