केंद्र सरकार ने दिल्ली हाइकोर्ट को भरोसा दिया है कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अभद्र भाषा के प्रयोग को नियंत्रित करने को लेकर गंभीर है. इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी मंत्रालय ने अदालत को बताया है कि सोशल मीडिया के नियमन के लिए बनायी जाने वाली नीति में इस बारे में भी नियम और प्रावधान शामिल किये जायेंगे. दरअसल, पिछले कुछ समय से एक बड़े तबके को लगता है कि इस संबंध में कोई व्यवस्था की जानी चाहिए.
सोशल मीडिया आज की सच्चाई है और उसने जनसंचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. मगर सूचना क्रांति से यदि लाभ हो रहे हैं तो उसके दुष्प्रभाव भी दिखाई देने लगे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर धड़ल्ले से इस्तेमाल होने वाली गालियां ऐसा ही एक दुष्प्रभाव है. केंद्र सरकार ने जिस मामले में अदालत को नियम बनाने का भरोसा दिया है वह एक वेब सीरीज का है, जिस पर अभद्र भाषा के इस्तेमाल आरोप लगे हैं.
इस साल मार्च में अदालत ने इस सीरीज के निर्माता और मुख्य अभिनेताओं के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया था. अदालत ने साथ ही कहा था कि रोजाना बढ़ती जा रही ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को मौजूदा आइटी कानूनों का सख्ती से पालन करवाना चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर नये नियम या कानून बनाना चाहिए. मामले की सुनवाई कर रहीं न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने वेब सीरीज की भाषा पर सख्त टिप्पणियां की हैं.
उन्होंने कहा कि इसकी भाषा में इतनी गालियां थीं कि अदालत को इसे अपने चैंबर में ईयरफोन लगाकर देखना पड़ा, अन्यथा आस-पास के लोग इसे सुन चौंक पड़ते. जस्टिस शर्मा ने कहा कि इसमें इस्तेमाल की गयी भाषा कहीं से भी देश के युवाओं की भाषा नहीं है. दरअसल, नया माध्यम होने की वजह से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया के लिए कोई कानून या नियम हैं ही नहीं. नियमन की चर्चा बहुत समय से चल रही है.
पर यह कौन करेगा इसे लेकर सहमति नहीं हो पाती. अदालत भी इसे समझती है. दिल्ली हाइकोर्ट ने मार्च में इसी मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि दूसरे देशों की तरह हमारे देश में भी सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के नियमन के लिए नियम, कानून और दिशानिर्देश बनाना एक चुनौती भरा काम है. पिछले महीने भी ओटीटी के नियमन की बात उठी थी. तब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सख्त लहजे में स्पष्ट किया था कि सरकार रचनात्मकता की स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय समाज और संस्कृति के साथ खिलवाड़ को स्वीकार नहीं करेगी. अभिव्यक्ति के मंचों को अराजकता से बचाने के लिए गंभीरता से विचार-विमर्श कर यथाशीघ्र कोई व्यवस्था की जानी चाहिए.