Chandrayaan-3 Moon Landing: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के इस मिशन का हिस्सा रहे हर वैज्ञानिक के घर जश्न का माहौल है. यूपी के कई वैज्ञानिक भी इसरो के इस मिशन मून का अहम हिस्सा रहे, ऐसे में उनके परिजनों को शुभकामनाएं देने का सिलसिला लगातार जारी है.
इस मिशन में अब लैंडर विक्रम से निकलकर रोवर प्रज्ञान ने चांद पर चहलकदमी शुरू कर दी है. इसरो ने गुरुवार सुबह ट्वीट करके इसकी जानकारी दी. भारत के चांद पर प्रभावी कदम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बने हैं.
इनमें रॉकेट वुमेन कही जाने वाली लखनऊ की रितु करिधाल के घर चांद की सतह पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग होते ही पटाखों की गूंज सुनाई देने लगी. रितु करिधाल के परिजन लखनऊ के राजाजीपुरम ई-ब्लॉक में रहते हैं. मिशन के कामयाब होते ही छोटे-छोटे बच्चे ‘चंदा मामा अब दूर नहीं’ गाते हुए रॉकेट वुमेन के घर के बाहर नाचने लगे. रितु की भाभी विनुशी के घर से बाहर निकलते ही लोगों ने उन्हें घेर लिया. लोगों के इस प्यार को देखकर उनकी आंखें खुशियों से नम हो गईं. उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक पल को लेकर उनके पास बोलने के लिए शब्द नहीं हैं.
वहीं चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग से पहले तक रितु करिधाल के घर के आसपास के इलाकों में एकदम शांति थी. सभी लोग टीवी और अन्य माध्यमों से मिशन का लाइव प्रसारण देख रहे थे. इस दौरान प्रार्थनाएं भी की जाती रहीं. चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही लोगों ने दीवाली की तरह पटाखे जलाकर खुशियां मनाईं. भारत की इस उपलब्धि से उत्साहित लोगों ने वंदे मातरम और जय हिंद के नारे लगाए. वहीं रितु के छोटे भाई रोहित ने उन्हें मैसेज के जरिए शुभकामनाएं दी.
रितु करिधाल चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर थीं. उनके अनुभव को देखते हुए 2020 में ही इसरो ने ये तय कर दिया था कि चंद्रयान-3 का मिशन भी रितु के ही हाथों में होगा और इसरो का यह निर्णय बिलुकल सही साबित हुआ.
रितु करिधाल की शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के सेंट एगनिस स्कूल में हुई थी. इसके बाद उन्होंने नवयुग कन्या विद्यालय से पढ़ाई की. लखनऊ विश्वविद्यालय में भौतिकी से एमएससी करने के बाद रितु ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग से एमटेक करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूज ऑफ साइंस बेंगलुरु का रुख किया. रितु करिधाल ने वर्ष 1997 में इसरो जॉइन किया था. रितु करिधाल की पहली पोस्टिंग इसरों के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में दी गई
इसी तरह चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग में प्रयागराज में भी अभी तक खशियां मनाई जा रही हैं. प्रयागराज दो वैज्ञानिक भी इसरो के इस चंद्रयान-3 मिशन का हिस्सा रहे. इनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हरिशंकर गुप्ता और मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) की पूर्व छात्रा नेहा अग्रवाल शामिल हैं.
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए जिस इंटेलिजेंस सेंसर का प्रयोग किया गया, उस तकनीक को विकसित करने वाली टीम में इसरो के वैज्ञानिक हरिशंकर गुप्ता भी शामिल रहे. हरिशंकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जेके इंस्टीट्यूट के छात्र रह चुके हैं. इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में कार्यरत हरिशंकर गुप्ता ने इविवि के जेके इंस्टीट्यूट से वर्ष 1998 में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन से बीटेक किया था.
उन्होंने बीटेक के बाद बीएचयू से एमटेक किया और वर्ष 2002 में इसरो से जुड़ गए. एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में काम करते हुए हरिशंकर गुप्ता ने सेंसर डेवलपमेंट के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए. चंद्रयान मिशन-3 की सबसे बड़ी चुनौती लैंडर को सुरक्षित उतारने की थी, क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन इसी में नाकाम रहा था. इस बार चांद पर भेजे गए रोवर में इमेजिंग प्रणाली तैयार करने वाली टीम का हिस्सा बने हरिशंकर गुप्ता भी इतिहास रचने वालों में शामिल हो गए.
इसी तरह प्रयागराज की नेहा अग्रवाल भी चंद्रयान-3 से जुड़ी हैं. गर्ल्स हाईस्कूल से स्कूली पढ़ाई पूरी करने वाली नेहा ने यूनाइटेड कॉलेज से बीटेक किया. 2017 में एमएनएनआइटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन से एमटेक में गोल्ड मेडल हासिल किया. इसी वर्ष इसरो से जुड़ीं और मिशन की सफलता में योगदान दिया. उन्होंने मिशन चंद्रयान-2 में भी काम किया था.
पढ़ाई के दौरान ही वैज्ञानिक बनने की इच्छुक नेहा अग्रवाल के पिता संजय कुमार अग्रवाल इंडियन बैंक से सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सिविल लाइंस स्थित पुष्प कृष्ण पैलेस में रह रहीं मां वंदना अग्रवाल करछना के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं, जबकि छोटी बहन प्रांजलि और छोटे भाई पुनीत अग्रवाल भी निजी कंपनी में इंजीनियर हैं. पूरे परिवार ने चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग को एक साथ टीवी पर देखा. मिशन के सफल होते ही उन्हें शुभकामनाएं मिलने लगीं.