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महिला पत्रकारिता पर मूल्यवान अनुसंधान है ‘आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता’

भारतीय पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में हिंदी की महिला पत्रकारिता' विषय पर डी. लिट्. की उपाधि प्रदान की. इस विषय पर यह पहला शोध है जिसकी परिणति है ‘आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता’ नामक पुस्तक.

डॉ मंगला अनुजा की पुस्तक ‘आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता’ महिला पत्रकारिता पर एकाग्र पहला विशद विवेचन है, जिसमें उन्होंने बताया है कि हिंदी पत्रकारिता की मुख्यधारा में विविध भूमिकाओं में महिलाओं की सहभागिता स्वतंत्रता के बाद लगातार बढ़ी है. माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय, भोपाल की निदेशक डॉ अनुजा को बीते 3 जुलाई, 2023 को बरकतउल्ला विवि, भोपाल ने ‘भारतीय पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में हिंदी की महिला पत्रकारिता’ विषय पर डी. लिट्. की उपाधि प्रदान की. इस विषय पर यह पहला शोध है जिसकी परिणति है ‘आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता’ नामक पुस्तक.

इसके 15 अध्यायों में भारत में महिला पत्रकारिता, भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में महिला सहभागिता, हिंदी पत्रकारिता में महिला सहभागिता, महिलाओं द्वारा संपादित पत्र-पत्रिकाएं, महिला संवाददाता व स्तंभकार, स्वतंत्र महिला पत्रकार, महिला साक्षात्कारकर्ता, महिला फोटो पत्रकार शीर्षक अध्याय शामिल हैं. यह किताब महिला संपादकों-पत्रकारों की भूमिका , उनकी उपलब्धियों और उनके संघर्ष से परिचित कराती है. किताब बताती है कि भारतीय भाषाओं की पहली महिला पत्रकार मोक्षदायिनी देवी हैं, जिन्होंने सन 1848 में ‘बांग्ला महिला’ नाम की पत्रिका निकाली थी. चेनम्मा तुमरि को कन्नड़, आसिफ जहां को उर्दू, तानुबाई को मराठी, रेवा राय को ओडिशी, के रामालक्ष्मी को तेलुगू, जालु कांगा को गुजराती और कल्याणी अम्मा को मलयालम में महिला पत्रकारिता की शुरुआत करने का श्रेय जाता है.

ऐनी बेसेंट ने ‘न्यू इंडिया’ का संपादन-प्रकाशन कर अंग्रेजी पत्रकारिता को कार्य क्षेत्र बनाने के साथ भारत में पत्रकारिता की शिक्षा का भी सूत्रपात किया. समकालीन पत्रकारिता-शिक्षा में दविंदर कौर उप्पल एक आदर्श गुरु के रूप में समादृत हैं. इसी शृंखला में एक यशस्वी नाम टैगोर परिवार की सुवर्ण कुमारी देवी का है, जिन्होंने बांग्ला पत्रिका ‘भारती’ का संपादन किया. उनकी सुपुत्री सरला देवी ने भी कई वर्षों तक ‘भारती’ के संपादन का दायित्व निभाया. गुजराती में ‘स्त्री बोध’, मराठी में ‘स्त्री भूषण’, कनड़ में ‘शाला मठ’, उर्दू में ‘तहजीब- ए-निस्वां’, तेलुगू में ‘सती हित बोधिनी’, ओडिशी में’ आशा’, तमिल में ‘गृहलक्ष्मी’ और मलयालम में ‘केरलीय सुगुण बोधिनी’ पत्रिकाओं से महिला पत्रकारिता की पुष्ट नींव पड़ी.

हिंदी में महिलाओं के लिए पहली पत्रिका ‘बालाबोधिनी’ भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सन् 1874 में काशी से निकाली. स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय आंदोलन को वाणी देने के लिए जिस गुप्त रेडियो ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसका संचालन उषा मेहता ने किया था. महादेवी वर्मा ने ‘चांद’ जैसी तेजस्वी पत्रिका का संपादन किया, तो सुभद्रा कुमारी चौहान ने ‘नारी’ शीर्षक से पत्रिका निकाली. उसी परंपरा की एक मजबूत कड़ी सांप्रतिक काल में मृणाल पांडेय से जुड़ती है.

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