दिवाकर सिंह, रांची :
फुटबॉल को लेकर झारखंड के लोगों दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. यहां बरसात के महीने में कई ऐसे बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित किये जाते हैं, जहां लाखों की संख्या में दर्शक खिलाड़ियों का जोश बढ़ाने आते हैं. ये खिलाड़ी मैदान में तो अपनी प्रतिभा से लोगों का दिल जीत लेते हैं, लेकिन मैदान के बाहर इनकी दशा दयनीय है. कुछ ऐसी ही कहानी है गुमला के रहनेवाले राष्ट्रीयस्तर के फुटबॉलर संतोष कुजूर का. इन्होंने झारखंड की ओर से चार-पांच बार राष्ट्रीयस्तर की प्रतियोगिता खेली.
लेकिन, आज बदहाल हैं और परिवार का पेट पालने के लिए शहर में लोगों के घरों में रंग-रोगन का काम करते हैं. इन्होंने कोच और सीधी नियुक्ति के लिए कई बार आवेदन भी दिया, लेकिन हर बार इन्हें निराशा हाथ लगी. फुटबॉल के लेफ्ट डिफेंस और फॉरवर्ड के खिलाड़ी संतोष कुजूर 2009 के पहले से फुटबॉल खेल रहे हैं. इसी दौरान इनका चयन झारखंड टीम में संतोष ट्रॉफी के लिए हुआ. इसके बाद 2011 में राष्ट्रीय खेल में ये झारखंड टीम की ओर से खेले. 2012 में फिर से संतोष ट्रॉफी में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने का मौका मिला. इसके अलावा रांची विवि की टीम की ओर से यूनिवर्सिटी नेशनल में भी संतोष कुजूर ने अपनी प्रतिभा दिखायी.
संतोष कुजूर बताते हैं कि कई बार कैश अवॉर्ड और स्कॉलरशिप के लिए आवेदन भी गुमला के जिला खेल पदाधिकारी को दिया. लेकिन, आज तक मुझे दोनों में से किसी का लाभ नहीं मिला. अब केवल फुटबॉल खेलने से घर तो चल नहीं सकता, इसलिए लोगों के घरों में रंग-रोगन कर रहा हूं. घर में पत्नी और तीन बच्चे हैं और इस काम से ही मेरा घर चलता है.