आगरा. जहां पूरी दुनिया रक्षाबंधन मना रही है, वहीं हिंदुओं में सिसोदिया और पालीवाल ऐसी जाति भी हैं जो यह त्योहार नहीं मनाती. देश-दुनियाभर में फैले लाखों पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं. इसके बजाय, वे इसे दुःख के दिन के रूप में मनाते हैं. करीब 700 साल पहले श्रावण मास की पूर्णिमा को एक मुगल शासक के हमले में हजारों पालीवाल ब्राह्मण महिलाएं, बच्चे और पुरुष मारे गए थे. रक्षाबंधन पर पालीवाल अपने पूर्वजों को याद कर तर्पण करते हैं और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं. वहीं महाराणा प्रताप पर हुए हमले के शोक में सिसौदिया वंश के परिवार रक्षा बंधन नहीं मनाते हैं.
सिसोदिया परिवार के राजेंद्र सिंह सिसोदिया ने बताया कि बचपन से ही हमारे बड़े बुजुर्गों ने बताया था कि सिसोदिया वंश के लोग रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं. वह बताते हैं ” सिसोदिया वंश के राजा महाराणा प्रताप मेवाड़ पर शासन करते थे. रक्षाबंधन के दिन महाराणा प्रताप ने हथियार न उठाने का प्रण लिया था. वह रक्षाबंधन के त्योहार पर घर में मिठाई पकवान बना रहे थे. बहनें अपने भाइयों को राखी बांध रही थीं. इसी बीच राजपूतों के हथियार न उठाने की जानकारी किसी ने मुगलों को दे दी. मुगल सेना ने मेवाड़ किले पर आक्रमण कर दिया. हथियार न उठाने की बाध्यता की वजह से महाराणा प्रताप को अपने किले से पलायन करना पड़ा. इस दौरान वह काफी समय तक अरावली की पहाड़ियों में रहे. मुगल सेना ने कई राजपूतों को मौत के घाट उतार दिया. कई राजपूत महिलाओं को जौहर करना पड़ा. काफी रक्तपात हुआ. इसी रक्तपात से दुखी होकर महाराणा प्रताप के वंशजों ने प्रण किया कि वह अब आगे कभी रक्षाबंधन नहीं मनाएंगे. आज तक सिसोदिया वंश में कोई भी भाई अपनी बहन से राखी नहीं बंधवाता.श्रावण सुदी पूर्णिमा में
रक्षाबंधन को लेकर पालीवाल ब्राह्मणों की भी कहानी कुछ ऐसी ही है.आगरा के व्यवसाई और वरिष्ठ भाजपा नेता विजय दत्त पालीवाल ने बताया कि करीब 1348 श्रावण सुदी पूर्णिमा में जोधपुर के पास स्थित पाली (पल्लवी) जिले में पालीवाल ब्राह्मण निवास करते थे. पूर्णमासी के दिन ब्राह्मण समाज रक्षाबंधन के त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मना रहे थे , लेकिन इसी दौरान मुगल शासक जलालुद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया. इस आक्रमण के बाद भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में करीब एक लाख ब्राह्मणों को वीरगति प्राप्त हुई. जब मुगलों को युद्ध में हार होते हुए दिखाई दी तो उन्होंने जिले में मौजूद और पीने के पानी के एकमात्र पेयजल लोडिया तालाब में गाय काटकर डाल दी. जिसकी वजह से लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाया. तमाम लोगों की मौत हो गई.
बताया जाता है कि जिन ब्राह्मण वीरों की मौत हुई जब उनके शवों से जनेऊ (यज्ञोपवीत के रूप में प्रयुक्त पुरुषों के पवित्र धागे ) उतारे गए तो उनका वजन करीब 8 मन था. जिन महिलाओं ने जौहर किया उनके हाथ में मौजूद कड़े का वजन 84 मन था. सम्मान के रूप में बचे हुए ब्राह्मणों ने वीरगति प्राप्त पुरुषों और महिलाओं के जनेऊ और कड़े को एक जगह इकट्ठा कर एक चबूतरा बना दिया जिसे धौला कुआं नाम दिया गया. इसी रक्त रंजित दिन के बाद से ब्राह्मणों ने रक्षाबंधन के त्यौहार को मनाना बंद कर दिया. वहीं अधिकतर पालीवाल ब्राह्मण पाली जिले को छोड़कर जैसलमेर, जोधपुर व अन्य जिलों में जाकर बस गए.
सभी पालीवाल ब्राह्मणों ने निर्णय लिया कि यह दिन उनके लिए निराशा और दुःख लेकर आया है इसलिए वे इस त्योहार को हमेशा के लिए त्याग देंगे. इस दिन (रक्षाबंधन) वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं और तर्पण करते हैं. इन पालीवाल ब्राह्मणों को पाली के धोलीताना में मार दिया गया था जहां महिलाओं की चूड़ियां और रखे गए थे उनके दिन लोग तर्पण करते हैं.