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शहरी बाढ़ से बचाव के लिए कार्रवाई जरूरी

भारत ने पिछले 30 वर्षों में अपनी 40 फीसद आर्द्रभूमि खो दी है. पहले नदियों सहित तमाम जल निकायों और बाढ़ के जोखिम को समझने के लिए सभी शहरों में अध्ययन होने चाहिए. इसके बाद इसे लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपायों से जोड़ा जा सकता है.

वरुण गांधी

सांसद, लोकसभा

fvg001@gmail.com

भारत में शहरी बाढ़ अब एक नियमित घटना बन चुकी है. वर्ष 2000 में हैदराबाद, 2005 में मुंबई, 2014 में श्रीनगर, 2021 में चेन्नई और 2022 में बेंगलुरु जैसे शहरों के कई इलाके भारी बारिश से डूब गए. हालिया सर्वे में 94 फीसद शहरी क्षेत्र जलभराव के संकट से जूझ रहे हैं. आजादी से पहले भी शहरी भारत में बाढ़ एक नियमित घटना थी, पर अब इससे क्षति और व्यवधान बढ़ गया है. ज्यादातर शहर किसी-न-किसी नदी के किनारे स्थित हैं. एक आदर्श दुनिया में, ऐसे क्षेत्रों को अछूता छोड़ दिया जाता, पर भारत ने पिछले 30 वर्षों में अपनी 40 फीसद आर्द्रभूमि खो दी है. 2005 और 2018 के बीच वडोदरा ने 30 फीसद आर्द्रभूमि खो दी, जबकि हैदराबाद ने पिछले दशक में अपने 55 फीसद जलस्रोत खो दिए. चेन्नई ने अनियोजित शहरीकरण के कारण अपनी 90 फीसद आर्द्रभूमि गंवा दी है. 1997 में दिल्ली में 1,000 जल निकाय थे, लेकिन अब 700 हैं. कभी 80 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली नजफगढ़ झील आज बमुश्किल पांच वर्ग किमी का नाला बन चुकी है. बड़ी झीलें भी विलुप्त हो रही हैं. आलम यह है कि दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में में हफनामा देकर कहा कि मायापुरी जैसी कोई झील कभी थी ही नहीं. जबकि इस बात के प्रामाणिक उल्लेख मौजूद हैं कि यह झील 36 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली थी. दिल्ली सरकार ने इसे महज दलदली भूमि कहा है. दिल्ली 2005 से 2023 के बीच चार बार बाढ़ की चपेट में आ चुकी है. ऐसे ही पैटर्न अन्य शहरों में भी दिख रहे हैं. शहरीकरण के कारण गुवाहाटी ने अपने आधे जलस्रोत खो दिए और इसी अवधि में वहां बाढ़ की पांच बड़ी आपदा आई है. इसके समाधान के लिए कई मोर्चों पर कार्रवाई की जरूरत है.

पहले नदियों सहित तमाम जल निकायों और बाढ़ के जोखिम को समझने के लिए सभी शहरों में अध्ययन होने चाहिए. इसके बाद इसे लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपायों से जोड़ा जा सकता है. झीलों और नदियों के रखरखाव में स्थानीय नागरिकों की भागीदारी पर जोर होना चाहिए. भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआइएस) का उपयोग स्थानीय जल निकायों को टैग करने, अतिक्रमणों पर नजर रखने में मदद करने के लिए किया जा सकता है. हमें शहर-व्यापी डेटाबेस में भी निवेश करना चाहिए. दूसरा, हमें अपने शहरों में मौजूदा जल निकासी और तूफानी जल नेटवर्क का पुनर्निर्माण और विस्तार करना चाहिए. भारत के अधिकतर शहरों और कस्बों में से अधिकांश में प्रभावी सीवरेज नेटवर्क नहीं है. दिल्ली के कई क्षेत्रों में ड्रेनेज का ढलान गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध गलत ढंग से बनाया गया है. अधिकतर शहरों के पास ड्रेनेज मास्टर प्लान नहीं है. तीसरा, मध्यम से दीर्घावधि तक के लिए शहरी नियोजन में सुधार की दरकार है. दिल्ली में कई सिविक एजेंसियां शहर की नालियों का प्रबंधन करती हैं, इससे आपसी समन्वय की कठिनाई पैदा होती है. इस कारण अक्सर उच्च क्षमता वाली जल नालियां छोटी क्षमता वाली नालियों में चली जाती हैं, जिससे बाढ़ आ जाती है.

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हमें स्थानीय मिसालों की पहचान कर उन्हें आजमाना चाहिए. वर्ष 2000 के दशक के मध्य तक मैंगलोर में शहरी उपभोग से निकलने वाला अपशिष्ट जल खुली नालियों के माध्यम से और शहर के जल निकायों में बह जाता था, जिससे मीठे पानी के स्रोत प्रदूषित हो जाते थे. इसके बाद मैंगलोर सिटी कॉरपोरेशन (एमसीसी) ने मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (एमएसईजेडएल) के भीतर स्थापित ऐसे उद्योगों के साथ अंतिम-उपयोगकर्ता लिंकेज के साथ अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र स्थापित किए, जिन्हें पानी की सीमित और अनियमित आपूर्ति का सामना करना पड़ा. बढ़ती मांग के कारण जल्द ही दो अतिरिक्त उपचार संयंत्रों की स्थापना हुई. ऐसा ही उदाहरण उदयपुर का है. 1559 से शहर ने कैस्केड सिस्टम से जुड़ी झीलों की एक श्रृंखला का निर्माण और रखरखाव किया है, जिससे वहां शुष्क क्षेत्र में जल आपूर्ति में आत्मनिर्भरता आई है. शहर की झीलों से दैनिक जरूरत, सिंचाई और यहां तक कि औद्योगिक उपयोग के लिए भी पानी उपलब्ध है. कई दूसरे भारतीय शहरों में लंबे समय से ऐतिहासिक झीलें हैं जो पानी की आपूर्ति प्रदान करती हैं, मसलन, गोवा में कंबोलिम, श्रीनगर के पास डल, नैनीताल के पास नैनी झील और गुजरात में नलसरोवर. अंतिम रूप से हमें नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की राह पर बढ़ना होगा. इस लिहाज से बेंगलुरु की कैकोंद्रहल्ली झील एक बड़ी मिसाल है. यह झील गंभीर सीवेज प्रवाह से पीड़ित थी, जिसमें यूट्रोफिकेशन के कारण गाद और भूमि का निर्माण हो रहा था. झील को पुनर्जीवित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से समुदाय-संचालित दृष्टिकोण अपनाया गया. अतिक्रमणकारियों को बेदखली का नोटिस दिया गया. झील में उगने वाली वनस्पति को हटाने और झील की गहराई को एक मीटर तक बढ़ाने के लिए झील से गाद निकालने का काम भी हुआ.

दरअसल, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमारे शहरों को केवल अप्रिय घटनाओं पर प्रतिक्रिया करने के बजाय जलवायु परिवर्तन पर आगे बढ़ना होगा. स्मार्ट शहरों के आकर्षण के बजाय हमें वर्षा जल संचयन और बेहतर जल निकासी में निवेश करना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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