नई दिल्ली : चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 23 अगस्त 2023 को सफल लैंडिंग कराने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 2 सितंबर 2023 को सूर्य की तपिश को नापने के लिए आदित्य एल-1 को लॉन्च करने जा रहा है. इसके बाद भारत के टारगेट पर शुक्र है. शुक्र ग्रह की धरती के रहस्यों को जानने के लिए इसरो जल्द ही शुक्रयान-1 को लॉन्च करेगा. इसके लिए तैयारी पहले से ही कर ली गई है. बता दें कि जब 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर रोवर विक्रम लैंडर प्रज्ञान को लेकर लैंड कर रहा था, तो उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में थे. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर रोवर विक्रम के लैंडिंग के बाद पीएम मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को धन्यवाद प्रेषित करते हुए ऐलान किया था कि इसके बाद सूर्य की सीमाओं के रहस्य को जानने के लिए आदित्य एल-1 के बाद शुक्रयान-1 भी लॉन्च किया जाएगा. आइए जानते हैं…
2017 में शुक्र मिशन की मिली थी मंजूरी
दरअसल, शुक्रयान-1 शुक्र के वातावरण का अध्ययन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा शुक्र के लिए प्रस्तावित एक ऑर्बिटर है. इसे जल्द ही लॉन्च किया जाएगा. शुक्र के एक्सप्लोरेशन के लिए मिशन का उल्लेख 2017-18 के अनुदान ने स्पेस डिपार्टमेंट ने किया है. इसरो ने 2017 में बताया था कि सरकार ने शुक्र मिशन की योजना के लिए मंजूरी दे दी है.
अंतर्ग्रह का अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की टीम
चंद्रयान और मंगलयान (मंगल ऑर्बिटर मिशन) की सफलता के आधार पर इसरो वैज्ञानिकों की एक टीम मंगल और शुक्र के भविष्य अंतर्ग्रह मिशन के लिए व्यवहार्यता का अध्ययन कर रही है. इस तरह के अंतर्ग्रह अंतरिक्ष उड़ान की योजनाओं पर चर्चा चल रही है. अध्ययन चंद्रमा, मंगल और सूर्य के बाद अब शुक्र पर पहुंचने के मिशन के लिए विभिन्न अवसरों और विकल्पों की तलाश कर रहा है.
2017-18 के बजट में मिली मंजूरी
भारत सरकार ने अपने सालाना बजट 2017-18 में इसे मंजूर कर दिया है. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अंतरिक्ष विभाग के बजट में 23 फीसदी की वृद्धि की मंजूरी दी थी. अंतरिक्ष विज्ञान अनुभाग के तहत बजट में मंगलायान-2 और शुक्र के लिए मिशन प्रावधानों का उल्लेख है.
शुक्र मिशन के लिए नासा के वैज्ञानिक ने भी भारत की है तारीफ
फरवरी, 2017 में भारत की यात्रा पर नासा के जेट प्रणोदन प्रयोगशाला के निदेशक माइकल एम वॉटकिन्स ने कहा कि वे कम से कम एक टेलीकमेटिक्स मॉड्यूल डालने के लिए उत्सुक होंगे, ताकि नासा के रोवर्स और भारतीय उपग्रह एक दूसरे से बात कर सकें. वाटकिंस ने कहा कि शुक्र के लिए एक मिशन बहुत ही सार्थक है, क्योंकि इस ग्रह के बारे में बहुत कम समझा जाता है और नासा भारत की पहली यात्रा में शुक्र के साथ भागीदारी करने में दिलचस्पी लेगा.
शुक्र मिशन का उद्देश्य
इस मिशन का उद्देश्य शुक्र की सतह की प्रक्रिया और उथले उपसतह स्ट्रैटिग्राफी की जांच करना है, जिसका अभी तक शुक्र की उपसतह का कोई पूर्व अवलोकन नहीं किया गया है. स्ट्रैटिग्राफी भूविज्ञान की एक शाखा है, जिसमें चट्टान की परतों का अध्ययन किया जाता है. इसके अलावा, शुक्र के वायुमंडल की संरचना और गतिशीलता का अध्ययन करना है. साथ ही, शुक्र के आयनमंडल के साथ सौर पवन संपर्क की जांच करना इस मिशन का मुख्य उद्देश्य है.
मिशन शुक्र का क्या है महत्व
भारत के मिशन शुक्र से यह जानने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे विकसित होते हैं और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (ग्रह जो हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करते हैं) पर क्या परिस्थितियां मौजूद हैं. यह पृथ्वी की जलवायु के प्रतिरूप की खोज करने में मदद करेगा, जिससे शुक्र पर मानव जीवन की संभावनाओं के बारे में जानकारी हासिल की जा सके.
शुक्र ग्रह के बारे में जानें
आपको बताते चलें कि शुक्र का नाम प्रेम और सुंदरता की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है. सूर्य से दूरी के हिसाब से यह दूसरा तथा द्रव्यमान और आकार में छठा बड़ा ग्रह है.
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शुक्र चंद्रमा के बाद रात के समय आकाश में दूसरा सबसे चमकीला प्राकृतिक ग्रह है. शायद यही कारण है कि यह पहला ग्रह था, जिसे दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व आकाश में अपनी गति के कारण जाना गया.
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हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं.
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कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है, जो एक तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करता है.
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शुक्र ग्रह पर एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष से ज्यादा लंबा होता है.
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सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने की तुलना में शुक्र को अपनी धुरी पर घूर्णन में अधिक समय लगता है.
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सौरमंडल में किसी भी ग्रह के एक बार घूर्णन में 243 पृथ्वी दिवस और सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने हेतु 224.7 पृथ्वी दिवस लगते हैं.
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शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार और घनत्व तथा सौरमंडल में उसके समान सापेक्ष स्थानों में समानता के कारण पृथ्वी की जुडवां बहन कहा गया है.
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पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह शुक्र है.
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शुक्र चंद्रमा के अलावा सौरमंडल में पृथ्वी का सबसे निकटतम बड़ा पिंड है.
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शुक्र का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी से 90 गुना अधिक है.
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शुक्रयान 1 मिशन के बारे में रोचक तथ्य
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शुक्र को अंग्रेजी मेंवीनस मिशन भी कहा जाता है.
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शुक्रयान-1 मिशन एक ऑर्बिटर मिशन होगा.
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मिशन से शुक्र की भूवैज्ञानिक और ज्वालामुखीय गतिविधि, जमीन पर उत्सर्जन, हवा की गति, बादल आवरण और अण्डाकार कक्षा से अन्य ग्रह संबंधी विशेषताओं का अध्ययन करने की उम्मीद है.
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इसके वैज्ञानिक पेलोड में वर्तमान में एक हाई-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार और एक जमीन-भेदक रडार शामिल है.
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शुक्र की सतह अत्यधिक गर्म है और घना, जहरीला वातावरण है.
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शुक्रयान 1 को जीएसएलवी मार्क-II से लॉन्च किया जा सकता है, जो एक भारी उपग्रह प्रक्षेपण यान है. इसका इस्तेमाल इसरो अपने चंद्रयान और मंगलयान मिशनों में अक्सर करता है.
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मिशन शुक्र की भूवैज्ञानिक और ज्वालामुखीय गतिविधि, हवा की गति आदि का अध्ययन करेगा.