26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्रीमद्भगवद्गीता से निकटता स्थापित करने का सुअवसर

योगानन्द जी बताते हैं कि महाभारत के नाम से प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र के युद्ध का वास्तविक महत्व उन आंतरिक संघर्षों में निहित है, जिनका सामना प्रत्येक मनुष्य को निरंतर अपने मन में करना पड़ता है

श्रीमद्भगवद्गीता निश्चित रूप से एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जिसमें जीवन का उद्देश्य समाहित है और जिसमें परम सत्यों की व्याख्या की गयी है, जिनकी खोज संपूर्ण मानव जाति द्वारा पूरे मनोयोग से की जानी चाहिए. इस ग्रंथ में स्वयं भगवान द्वारा अपने किंकर्तव्यविमूढ़ एवं विस्मयाभिभूत शिष्य को दिया गया वह कालातीत संदेश निहित है कि अपने कर्तव्य को सर्वाधिक प्राथमिकता देना और अपने कर्मों के फलों के प्रति आसक्ति के बंधन से मुक्ति आवश्यक है.

“हे अर्जुन, तुम योगी बनो,” इन अविस्मरणीय शब्दों के साथ भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अपने अत्यंत उन्नत भक्त अर्जुन को परम मुक्ति के योग मार्ग का अनुसरण करने का निर्देश दिया.

विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गौरव ग्रंथ, ‘योगी कथामृत’ के लेखक, श्री श्री परमहंस योगानन्द ने गीता की अपनी व्याख्या, “ईश्वर-अर्जुन संवाद,” में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये अमर संदेश के सच्चे अर्थ की विस्तृत व्याख्या की है. योगानन्द जी बताते हैं कि महाभारत के नाम से प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र के युद्ध का वास्तविक महत्व उन आंतरिक संघर्षों में निहित है, जिनका सामना प्रत्येक मनुष्य को निरंतर अपने मन में करना पड़ता है. मानवीय जीवन के प्रत्येक खंड में स्वयं हमारी अच्छी प्रवृत्तियों और बुरी प्रवृत्तियों को परस्पर युद्ध करना पड़ता है तथा अंततः अच्छाई की विजय और बुराई की पराजय होती है, परंतु इससे लिए हमारे लिए ईश्वर के निकट जाने के लिए दृढ़ प्रयास करना और उसके परिणामस्वरूप भौतिक संसार के प्रति सभी आसक्तियों को त्यागना आवश्यक है.

प्रत्येक वर्ष माता देवकी के पुत्र शिशु कृष्ण के जन्म की वर्षगांठ जन्माष्टमी के रूप में मनायी जाती है और इस अवसर पर संपूर्ण विश्व में प्रायः देर रात तक रंगारंग संगीतमय उत्सव आयोजित किये जाते हैं. भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाने के लिए भक्त अत्यंत सुंदरतापूर्वक सजाये गये मंदिरों में एकत्र होते हैं और वे स्वयं अपने घरों में भी छोटे मंदिरों को सजाते हैं, परंतु संत हमें बताते हैं कि जब हम भगवान श्रीकृष्ण के साथ अधिकाधिक समस्वर होने का प्रयास करते हैं, तो जन्माष्टमी का वास्तविक उत्सव हमारे हृदयों और आत्माओं के भीतर होता है अथवा होना चाहिए.

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों में दो बार क्रियायोग का उल्लेख किया है. यह मनुष्य को ज्ञात सर्वोच्च विज्ञान है, जो ईश्वर के साथ एकता के लक्ष्य की दिशा में निरंतर अग्रसर होने में आध्यात्मिक साधक की सहायता करता है.

योगानंद जी ने सन् 1917 में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाइएसएस) की स्थापना की थी, साथ ही 1920 में अमेरिका में सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) की स्थापना की, जो शताब्दी का सफर पूरा कर आज भी क्रियायोग के प्रचार-प्रसार में लगी है. अमर गुरु महावतार बाबाजी ने महान योगावतार लाहिड़ी महाशय को क्रियायोग का तात्विक ज्ञान प्रदान किया तथा उन्होंने यह विज्ञान योगानंदजी के आध्यात्मिक गुरु ज्ञानावतार स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि को सिखाया था.

जन्माष्टमी के इस महान दिवस पर आइए हम सब अपने अंतरतम् में विद्यमान भगवान श्रीकृष्ण को जाग्रत करने का प्रयास करें और अपने आस-पास के सभी लोगों के कल्याण हेतु स्वयं को उनकी शिक्षाओं के अनुरूप बनाने का प्रयास करें. अधिक जानकारी : yssi.org पर.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें