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एक देश, एक चुनाव के खिलाफ कांग्रेस.. राहुल गांधी का बड़ा बयान- भारतीय संघ समेत सभी राज्यों पर हमला

एक देश एक चुनाव मुद्दे का कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है. कांग्रेस ने आज यानी रविवार को इस मामले पर कहा है कि एक देश, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति का वक्त अत्यधिक संदिग्ध है और इसकी संदर्भ शर्तों ने पहले ही इसकी सिफारिशें निर्धारित कर दी हैं. वहीं, राहुल गांधी ने भी इसे

एक देश एक चुनाव को लेकर देश में सियासी घमासान छिड़ा है. केंद्र की मोदी सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर कमर कस चुकी है. सरकार ने देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन कर दिया है. सरकार ने इसको लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी है. इधर, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. एक देश एक चुनाव को राहुल गांधी ने देश और सभी राज्यों पर हमला करार दिया है. राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार भारतीय संघ और इसके सभी राज्यों पर हमला है. उन्होंने कहा कि इंडिया भारत है और यह राज्यों का संघ है. ऐसे में एक देश, एक चुनाव का विचार भारतीय संघ और इसके सभी राज्यों पर हमला है.

एक देश एक चुनाव का कांग्रेस कर रही है निंदा
एक देश एक चुनाव मुद्दे का कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है. कांग्रेस ने आज यानी रविवार को इस मामले पर कहा है कि एक देश, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति का वक्त अत्यधिक संदिग्ध है और इसकी संदर्भ शर्तों ने पहले ही इसकी सिफारिशें निर्धारित कर दी हैं. इधर, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट में कहा, एक देश, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति एक रस्मी कवायद है, जिसका वक्त अत्यधिक संदिग्ध है. इसकी संदर्भ शर्तों ने पहले ही अपनी सिफारिशें निर्धारित कर दी हैं. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने समिति में शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को समिति में शामिल नहीं करने को लेकर भी निशाना साधा. सरकार ने खरगे की जगह राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद को समिति में शामिल किया है.

संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश- कांग्रेस
एक देश एक चुनाव को लेकर कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी सरकार की निंदा की है. उन्होंने कहा कि इसकी संभावना पर सरकार ने जो कमेटी का गठन किया है वह संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश है. उन्होंने यह भी कहा कि समझ नहीं आ रहा है कि इस कमेटी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को  सदस्य क्यों नहीं बनाया गया है.

सरकार ने किया आठ सदस्यीय समिति का गठन
एक राज्य एक इलेक्शन पर सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने के लिए बीते शनिवार को आठ सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति की अधिसूचना जारी की. अधिसूचना में कहा गया है कि समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे और इसमें गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह सदस्य होंगे.

बता दें, 1967 तक भारत में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव होने का चलन था. हालांकि, समय के साथ चीजें बदलती गईं. 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाएं और 1970 में लोकसभा समय से पहले भंग कर दी गई. एक दशक बाद, 1983 में चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा. हालांकि, आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला किया. 1999 की विधि आयोग की रिपोर्ट में भी एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया गया.

‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ से हो सकता है भाजपा के लिए फायदे का सौदा
जिस समय विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ अपनी तीसरी बैठक में मशगूल था, उस समय केंद्र की मोदी सरकार देश में एक राष्ट्र एक चुनाव पर विचार कर रही थी. हालांकि जानकारों का मानना है कि एक देश एक चुनाव से बीजेपी को काफी फायदा होगा. मोदी सरकार के लिए यह फायदे का सौदा हो सकता है. उनका तर्क है कि इससे चुनाव के पारंपरिक समीकरण से इतर मोदी सरकार को लोगों को अपने हित में एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में आसानी होगी और ‘मोदी फैक्टर’ का लाभ उसे उन राज्यों में भी मिल सकता है जहां, बीजेपी अपेक्षाकृत कमजोर है.

2016 में पीएम मोदी ने की एक देश एक चुनाव की वकालत
एक देश एक चुनाव की अवधारणा मोदी सरकार सबसे पहले 2016 में लेकर आयी थी. मोदी सरकार ने इसकी जोरदार वकालत की थी. हालांकि यह विचार आगे नहीं बढ़ सका था. पीएम मोदी ने लोकसभा, राज्य और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने की पुरजोर वकालत तब की थी जब उन्होंने उसी साल मार्च में सर्वदलीय बैठक में अनौपचारिक रूप से इस विषय को उठाया था. उन्होंने तब व्यापक बहस की जरूरत पर बल देते हुए कहा था कि विपक्ष के कई नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से इस विचार का समर्थन किया है लेकिन राजनीतिक कारणों से सार्वजनिक रूप से ऐसा करने से वह बच रहे हैं.
भाषा इनपुट से साभार

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