पश्चिम बंगाल के मयना में भाजपा नेता की हत्या के मामले की जांच में लापरवाही का मामला सामने आया है. जांच में लापरवाही का सबूत मिलने पर कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश जय सेनगुप्ता ने सवाल उठाया कि पुलिस के खिलाफ क्यों नहीं कड़ा कदम उठाया जाये. सरकारी वकील ने पूछा कि अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश क्यों नहीं देना चाहिए, इसका जवाब सरकार दे. पुलिस की जगह सीआइडी या अन्य एजेंसियों से क्यों नहीं जांच करायी जानी चाहिए, इसका जवाब भी देना होगा. मयना थाना इलाके में भाजपा नेता विजय कृष्ण भुइयां की हत्या हुई थी. पिछले चार अगस्त को चार्जशीट पर हस्ताक्षर होने के बाद भी पुलिस ने पांच अगस्त को शाम के समय इसे जमा किया.
जानकारी के मुताबिक घटना में शामिल तीन आरोपियों को पांच अगस्त दोपहर तक 90 दिन के भीतर चार्जशीट जमा होने पर जमानत मिल गयी. अदालत का मानना है कि यह जानबूझ कर किया गया था. मूल आरोपियों को जमानत देने की यह साजिश थी. यह भी आरोप है कि मृतक के परिजन जब घटना की शिकायत करने गये, तो पुलिस ने इसे स्वीकार नहीं किया. पुलिस ने स्वत: स्फूर्त मामला दर्ज किया. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सही नहीं होने पर अदालत के निर्देश पर दूसरी बार पोस्टमार्टम कराया गया था. एससी-एसटी के तहत धारा जोड़ने के बाद भी आरोपियों को जमानत कैसे मिल गयी, यह एक सवाल है. उक्त दिन बमबाजी की घटना होने के बाद भी विस्फोट से संबंधित धारा नहीं लगायी गयी. न्यायाधीश ने जमानत मिलने को लेकर राज्य सरकार को अगली सुनवाई में विस्तार से रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया. 18 सितंबर को मामले की फिर से सुनवाई होगी. उस दिन पुलिस को केस डायरी जमा करने का भी निर्देश दिया गया.
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एक सरकारी स्कूल में यूनिफॉर्म वितरण योजना में हुई धांधली को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने जांच का आदेश दिया है. जिलाधिकारी को इसकी जांच करने का निर्देश हाइकोर्ट ने दिया. राज्य सरकार ने कक्षा पांचवीं से लेकर सातवीं तक के सरकारी स्कूलों के छात्रों को निशुल्क स्कूल यूनिफॉर्म देने की योजना राज्य सरकार ने शुरू की थी. आरोप है कि उत्तर दिनाजपुर के गोपालपोखर एक नंबर ब्लॉक में इस योजना के तहत साढ़े आठ करोड़ रुपये से अधिक का घपला हुआ है. मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम व न्यायाधीश हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई.
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मामलाकारी ने कहा कि गोपालपोखर एक नंबर ब्लॉक के सरकारी स्कूलों में यूनिफॉर्म वितरण का जिम्मा मिलन मेला महासंघ नामक स्वयं सहायता समूह को दिया गया था. आरोप है कि इस योजना के तहत राज्य सरकार ने 8.8 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी. इस राशि को एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया, जो पोशाक बनाने के काम से जुड़ा भी नहीं है. इतनी बड़ी राशि मिलने के बाद भी समूह ने किसी भी स्कूल में यूनिफॉर्म वितरण नहीं किया. मामलाकारी ने बताया कि मामले की जानकारी जिलाधिकारी, बीडीओ, सर्किल इंस्पेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी को देने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया. इसके बाद खंडपीठ ने जिलाधिकारी को घटना की जांच करने का निर्देश दिया. मामलाकारी को जिलाधिकारी सहित अन्य संबद्ध अधिकारियों को शिकायत भेजने को कहा गया. खंडपीठ ने कहा कि शिकायत मिलने पर आठ सप्ताह के भीतर जिलाधिकारी को कार्रवाई करनी होगी.
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