बिहार के रोहतास जिले में वैसे तो घूमने के लिए कई आकर्षक स्थल हैं. लेकिन जिले के तिलौथू प्रखंड स्थित कैमूर पहाड़ी की कोख में बसी मां तुतला भवानी धाम की बात ही निराली है. यहां के मनोरम दृश्य देखने के लिए लोग खींचे चले आते हैं. खास कर बारिश के बाद मां तुतला भवानी धाम की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है, जो सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है. यहां कैमूर पहाड़ी क्षेत्र में जलप्रपात स्थित है. ऐसा जलप्रपात बिहार में आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगा. चारों तरफ से कैमूर पहाड़ी हरे रंग की चादर ओढ़े और प्राकृतिक शृंगार से ओत-प्रोत है. मां तुतला भवानी धाम का प्राकृतिक शृंगार सैलानियों को कई राज्यों से यहां खींच ले आता है. अब इस पर्यटन स्थल व धार्मिक धाम की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो गयी है.
12 वीं सदी में हुई थी मां की मूर्ति की स्थापना
तुतला भवानी के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि मां तुतला भवानी की मूर्ति की स्थापना 12 वीं सदी में राजा देवप्रताप धवल के द्वारा कराई गई था. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर व तिलौथू प्रखंड से मात्र पांच किलोमीटर पश्चिम की ओर खूबसूरत कैमूर पहाड़ी की वादियों में स्थित माता रानी के मंदिर पर अभी भी दो शिलालेख देखने को मिलती है. पहला आठवीं शताब्दी का शिलालेख शारदा लिपि में है, जो अपठित है. अभी तक इसका अनुवाद नहीं हो पाया है. वहीं, मां तुतला भवानी धाम में लगा दूसरा शिलालेख 12वीं सदी का है, जो खरवारों के राजा वीरप्रताप धवल देव के द्वारा मां तुतला भवानी धाम में उस समय लगाया गया था, जब स्वयं राजा वीर प्रताप धवल और उनके परिवार के द्वारा मां तुतला भवानी की मूर्ति की स्थापना करायी गयी थी.
शिलालेख में क्या अंकित है
शिलालेख में साफ अंकित है कि मां तुतला भवानी की मूर्ति 12वीं सदी में 19 अप्रैल 1158 ईसवी में 1254 संवत शनिवार के दिन खरवारों के राजा वीर प्रताप धवल देव एवं उनके पूरे परिवार पत्नी सुल्ही देवी, भाई त्रिभुवन धवल देव, पुत्र विक्रम धवल देव, साहस धवल देव एवं इनकी पांच बेटियों सहित सभी ने मिलकर 12वीं सदी में मां तुतला भवानी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करायी थी. पूर्व में भी मूर्ति लगायी गयी थी, जो मूर्ति खंडित है.
कैसी है मां की प्रतिमा
मां की प्रतिमा गढ़वाल कालीन मूर्तिकला का सुंदर नमूना पेश करती है. मां की प्रतिमा में महिष की गर्दन से दैत्य निकल रहा है, उसे अष्टभुजी मां तुतला भवानी स्वयं पकड़कर त्रिशूल से उसका वध कर रही हैं. माता की अष्टभुजी प्रतिमा है.
कैमूर पहाड़ी की चोटी से गिरता है वाटरफॉल
मां तुतला भवानी धाम के ठीक ऊपर से कैमूर पहाड़ी की चोटी से वाटरफॉल (झरना) गिरता है, जो नीचे स्थित कुंड में आता है. इसे कछुअर नदी कहा जाता है, जो कैमूर पहाड़ी के ऊपर से आता है. इस झरने के पानी को सतकुंडवा का पानी भी कहा जाता है, क्योंकि माता रानी के ठीक मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर सात कुंड हैं. इन सातों कुंडों से होकर यह जलप्रपात मां तुतला भवानी धाम के नीचे स्थित कुंड में आता है. नीचे आकर यह तूतराही नदी के नाम से प्रसिद्ध है, जो यह नदी तिलौथू तक आकर सोन नद में मिल जाती है.
गलत विचार से पहुंचने वाले लोगों को झेलना पड़ता है देवी का प्रकोप
यहां की मान्यता है कि जो माता भवानी धाम में गलत विचार या गंदी नीयत से आता है, उसे भ्रामरी देवी यानी भंवरा देवी का भी प्रकोप झेलना पड़ता है. ऐसी कई घटनाएं तिलौथू स्थित मां तुतला भवानी के धाम में हो चुकी हैं. जब कोई गंदे विचार से यहां पहुंचा है, तो उसे भौंरों के डंक का प्रकोप झेलना पड़ा है.
फ्रांसीसी पत्रकार बुकानन ने अपने यात्रा वृतांत में तुतला भवानी का किया है जिक्र
इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ की 14 सितंबर 1812 ईसवी में फ्रांसीसी पत्रकार बुकानन ने भी यात्रा की है. अपने यात्रा वृतांत में उसने मां तुतला भवानी धाम का जिक्र किया है कि मैंने 14 सितंबर 1812 ईसवी में मां तुतला भवानी धाम की यात्रा की है. मां तुतला भवानी की पहली प्रतिमा आठवीं सदी में लगायी गयी थी, जो खंडित है. इसके इतिहास का पूरा पता नहीं चलता है, लेकिन दूसरी प्रतिमा की स्थापना 12वीं शताब्दी में राजा देव प्रताप धवल और उनके पूरे परिवार द्वारा प्राणप्रतिष्ठा कराने का शिलालेख में जिक्र है.
पर्यटन स्थल को विकसित करने का किया जा रहा प्रयास
मां तुतला भवानी धाम में सावन आर्द्रा नक्षत्र और नवरात्र में काफी भीड़ हुआ करती है. इस वर्ष भीड़ का रिकॉर्ड भी टूटा है. यहां की खूबसूरत हैंगिंग ब्रिज, झूला पुल, पहाड़ की हरियाली और माता रानी के मंदिर के ठीक ऊपर से गिरता हुआ झरना, मनोहारी कुंड प्राकृतिक छटा बिखेरते मां तुतला भवानी धाम बरसात के दिनों में अक्सर सैलानियों को आकर्षित करता है. लोगों का कहना है कि पूरे बिहार में इस तरह का जलप्रपात कहीं नहीं है. बिहार ही नहीं बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड इत्यादि राज्यों से यहां लोग मां तुतला भवानी धाम में दर्शन करने आते हैं. इस धाम को अब पर्यटन स्थल का भी दर्जा दे दिया गया है. वन विभाग द्वारा यहां पर हैंगिंग ब्रिज, चेंजिंग रूम, शेड, सड़क, इ-रिक्शा आदि की व्यवस्था की गयी है. वहीं, मा तुतला भवानी धाम की पूजा कमेटी व वन विभाग द्वारा हर रोज इस धाम को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है. वन विभाग द्वारा यहां हर्बल पार्क भी बनाया गया है, जो सैलानियों को आकर्षित करता है.
खस्सी की बलि देने की है यहां प्रथा
मां तुतला भवानी धाम में मन्नतें पूरी होने के बाद लोग काफी संख्या में खस्सी की बलि देने यहां पहुंचते हैं. यहां की मान्यता है कि लोगों की अक्सर मन्नतें पूरी हो जाती हैं. जो लोग सच्चे हृदय से मां तुतला भवानी धाम में अपनी अर्जी लगाते हैं, उनकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं और वे खस्सी की बलि माता रानी को चढ़ाते हैं.
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मां तुतला भवानी धाम में अमृत बूंद का विशेष महत्व है. मां तुतला भवानी धाम में माता रानी के मंदिर के ठीक ऊपर पहाड़ की चोटी से बरसात ही नहीं, गर्मी के दिनों में भी पहाड़ की चोटी से एक-एक बूंद अमृत की बूंद टपकती है, जिसे वहां पहुंचे श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने के बाद अपने मुंह में लिया करते हैं. पहाड़ की चोटी से टपकती अमृत बूंद जिनके मुंह में चली जाती है, वे अपने माता रानी के दर्शन को सफल मानते हैं.
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कोई भी श्रद्धालु मां तुतला भवानी धाम जाने के लिए रोहतास जिले के तिलौथू प्रखंड पहुंचता है. यहां से पांच किलोमीटर पश्चिम की ओर कैमूर पहाड़ी की तलहटी में यह धाम अवस्थित है. जहां वनशक्ति देवी के पास मां तुतला भवानी धाम का प्रमुख द्वार है. वहां से वन विभाग के द्वारा श्रद्धालुओं को जाने के लिए पक्की पथरीला सड़क एवं इ-रिक्शा की व्यवस्था की गयी है. इससे श्रद्धालु माता रानी के धाम तक पहुंचते हैं. मां तुतला भवानी धाम परिसर में भगवान शिव का भी शिवलिंग है. इसकी श्रद्धालु पूजा-अर्चना किया करते हैं.
निकटतम हवाई अड्डे – पटना, गया एवं वाराणसी.
निकटतम रेलवे स्टेशन – सासाराम.
सड़क के द्वारा – पुरानी जी.टी रोड पर अवस्थित है. पटना, आरा, दिल्ली, कोलकाता, रांची इत्यादी से जुड़ा है.