Jharkhand News: पश्चिमी सिंहभूम के गुवा गोलीकांड के नायक रहे पूर्व विधायक बहादुर उरांव अब 83 वर्ष के हो गये हैं. जब गुवा गोली कांड का हादसा हुआ था, तब बहादुर उरांव 40 साल का जोशीला आंदोलनकारी थे. चक्रधरपुर रेलवे के केबिन में पदस्थापित थे. रेलवे में नौकरी करने के बावजूद वह हमेशा अलग राज्य की लड़ाई में सक्रिय रहा करते थे. पूर्व विधायक को दो बच्चे खोने पड़े. नौकरी पर आंच आयी. फरार रह कर मुसीबतें झेली. इसके बावजूद आज भी इन्हें गुवा आंदोलन का हिस्सा बनना गर्व दिलाता है.
पुलिस के निशाने पर थे बहादुर उरांव
सात सितंबर, 1980 को उन्हें देवेंद्र माझी, सुखदेव हेंब्रम और भुवनेश्वर महतो से न्योता मिला था गुवा चलने का. वह हमेशा की तरह बिना कुछ सोचे-समझे गुवा जाने को तैयार हो गए. लेकिन, गुवा में जो हुआ, वह रेंगटे खड़े कर देने वाला हादसा था. उस घटना में किसी की भी जान जा सकती थी. बहादुर उरांव भी पुलिस के निशाने पर थे. हादसे के बाद भी पुलिस बहादुर उरांव को तलाशती रही. वह फरार रहे. गुवा से निकल कर पटना में शरण लिए और वहां से प्रेस के सामने आकर पुरे घटना की जानकारी देने में साथ रहे. कई महीनों तक उन्हें फरारी काटनी पड़ी.
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दो जुड़वां बेटों की ठंड से हुई मौत
19 दिसंबर, 1980 को बहादुर उरांव के घर पर दो बेटों ने जन्म लिया. लेकिन, बहादुर उरांव घर पर नहीं थे, फरार रहने के कारण बेटों की परवरिश नहीं हो सकी. घर की कुर्की जब्ती हो चुकी थी. इसलिए घर पर बिस्तर तक नहीं था. जिस कारण दोनों जुड़वां बेटों को जमीन पर सुलाना पड़ रहा था. दिसंबर महीने के कड़ाके की ठंड लग जाने के कारण दोनों बेटों को निमोनिया हो गया और क्रिस्मस त्योहार के दिन 25 दिसंबर, 1980 को दोनों बेटे सखुवा उरांव और करमा उरांव की मौत हो गई. कुदरत का विडंबना देखिये कि इसके बाद कभी भी बहादुर उरांव के घर पर बेटे का जन्म नहीं हुआ, आज भी उनकी पुत्रियां ही हैं.
मुझे गर्व है कि मैं गुवा गोलीकांड में नायक की भूमिका निभाया : बहादुर उरांव
बहादुर उरांव कहते हैं कि मुझे बच्चों को खोना पड़ा, नौकरी पर आंच आई, फरार रह कर मुसीबतें झेलनी पड़ी, 31 सालों तक मुकदमा झेलना पड़ा. लेकिन, इस परेशानियों का कोई मलाल नहीं है. बल्कि इस बात का गर्व है कि मैं गुवा गोलीकांड में नायक की भूमिका निभा सका. ऐसे ही अनेकों आंदोलनों का परिणाम है कि अलग राज्य हमें मिला, जहां हमारी अपनी पहचान और अस्मिता है. हम अब मोहताज नहीं हैं, बल्कि हर झारखंड में आजादी का ताज है.
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11 आदिवासी हुए थे शहीद
मालूम हो कि गुवा गोलीकांड पूरे कोल्हान को हिला कर रख दिया था. इस गोलीकांड के बाद कोल्हान क्षेत्र में झारखंड आंदोलन ने तेज रफ्तार पकड़ी. इस गोलीकांड में 11 आदिवासी शहीद हुए थे. इन आदिवासियों का दोष सिर्फ इतना था कि वो झारखंड अलग राज्य की मांग कर रहे थे.