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राज्य की नई शिक्षा नीति का गजट नोटिफिकेशन हुआ जारी, स्कूल से लेकर कॉलेज तक एक नजर में जाने क्या आया बदलाव

एक साल की प्री प्राइमरी कक्षा और चार साल की प्राथमिक कक्षा के तौर पर उल्लेख किया गया है. उसके बाद पांचवीं से आठवीं तक की कक्षाओं का जिक्र किया गया है. 9वीं व 10वीं कक्षा के अंत में माध्यमिक परीक्षा होती है.

राज्य की नई शिक्षा नीति के बारे में गजट अधिसूचना प्रकाशित की गई है. शनिवार सुबह स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल पर प्रदेश की नई शिक्षा नीति की जानकारी अपलोड कर दी गई है.178 पेज की गाइडलाइन प्रकाशित की गई है. यह शिक्षा नीति 2035 तक शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से बनाई गई है. जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुछ प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया गया है. गौरतलब है कि शिक्षाविदों की बनी कमेटी में सभी प्रस्तावों पर चर्चा के बाद राज्य की नई शिक्षा नीति तैयार की जाती है.

आठवीं कक्षा से चरणबद्ध तरीके से सेमेस्टर सिस्टम हो सकता है लागू

एक साल की प्री प्राइमरी कक्षा और चार साल की प्राथमिक कक्षा के तौर पर उल्लेख किया गया है. उसके बाद पांचवीं से आठवीं तक की कक्षाओं का जिक्र किया गया है. आठवीं कक्षा से चरणबद्ध तरीके से सेमेस्टर सिस्टम लागू किया जा सकता है .उच्च माध्यमिक शिक्षा परिषद ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा की परीक्षाओं में सेमेस्टर प्रणाली लागू करने जा रही है. शैक्षणिक वर्ष 2024 में 11वीं कक्षा में प्रवेश पाने वाले सभी छात्र इस नियम के अंतर्गत आएंगे. सेमेस्टर प्रणाली मूल्यांकन के आधार पर पहला परिणाम 2026 में घोषित किया जाएगा. बारहवीं कक्षा के पहले सेमेस्टर जो नवंबर में आयोजित किया जाएगा. स्कूल में ग्रेजुएशन सेरेमनी करने का विचार किया जा रहा है.

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छात्र को भाषा सीखने की है स्वतंत्रता

राज्य सरकार मातृभाषा को अधिक महत्व देना चाहती है. जैसा कि शिक्षा नीति में बताया गया है कि छात्रों को बंगाली और अंग्रेजी का अध्ययन करना चाहिए. राज्य की शिक्षा नीति में तीसरी भाषा के रूप में बंगाली, हिंदी और संस्कृत को महत्व दिया गया है . कक्षा एक से कक्षा बारहवीं तक बांग्ला पढ़ाई जानी चाहिए. उसी के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित किया जाना चाहिए. इस संदर्भ में शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने कहा था कि जो कोई भी पहली भाषा सीखना चाहता है वह ऐसा कर सकता है. अगर कोई कोलकाता में बांग्ला को अपनी पहली भाषा के रूप में लेना चाहता है, तो वह ले सकता है यदि कोई दार्जिलिंग में पहली भाषा नेपाली लेना चाहता है, तो ले सकता है. और अगर कोई उर्दू, अलचिकी या राजवंशी को पहली भाषा बनाना चाहे तो वो भी बना सकता है. जहां तक ​​दूसरी या तीसरी भाषा की बात है तो यह स्थानीय आबादी के पैटर्न पर निर्भर करेगा कि वे कौन सी भाषा लेंगे.

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शिक्षकों को ग्रामीण इलाकों में पढ़ाने जाना होगा अनिवार्य

सभी छात्रों के लिए एक ‘विशिष्ट पहचान पत्र’ तैयार किया जाएगा. उस कार्ड के साथ मेमोरी चिप लगी होगी. इसमें तीसरी से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम दर्ज होंगे. राज्य की शिक्षा नीति के अनुसार जिस तरह डॉक्टरों को इलाज के लिए गांवों में जाना अनिवार्य है, उसी तरह शिक्षकों को भी ग्रामीण इलाकों में पढ़ाना चाहिए. शिक्षकों की नियुक्ति के समय सरकार इस पर निर्णय लेगी. सरकार का शिक्षकों के प्रमोशन पर भी विचार है. तृणमूल सरकार शुरू से ही केंद्र सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रही थी. राज्य के शिक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ‘तुगलकी’ करार दिया है. हालांकि राज्य ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुछ प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया है. राज्य में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पहले ही शुरू किया जा चुका है .

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निजी स्कूलों की निगरानी के लिए शिक्षा आयोग का गठन

निजी स्कूलों की निगरानी के लिए शिक्षा आयोग का गठन करने का निर्णय लिया गया था. राज्य सचिवालय में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हुई कैबिनेट की बैठक में इस फैसले को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गयी थी. राज्य सचिवालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बैठक में निर्णय लिया गया है कि आयोग की अध्यक्षता देश एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे. आयोग में 11 प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा. राज्य सरकार इस 11 सदस्यीय आयोग का गठन उसी तरह करना के चाहती है, जैसे राज्य के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम पर नियंत्रण के लिए और स्वास्थ्य आयोग बनाया गया है. आयोग का फैसला सभी निजी स्कूलों को मानना और होगा. इस पर कार्य फिलहाल शुरु कर दिया गया है.

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