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केके पाठक के विभाग और BPSC के बीच बढ़ा विवाद! शिक्षा विभाग ने लौटाया पत्र, कहा-आयोग की चिट्ठी में अनर्गल बातें

शिक्षा विभाग ने बीपीएससी के पत्र का जवाब देते हुए कहा है कि छह सितंबर को पूरी स्थिति बताने के बाद दोबारा से पत्र भेजना अनावश्यक एवं बचकानी हरकत है. इस कारण से पत्र को मूल रूप से लौटाया जा रहा है.

बिहार शिक्षा विभाग व बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. शिक्षक नियुक्ति मामले से उठा यह विवाद इतना बढ़ गया कि बीपीएससी के सचिव ने शिक्षा विभाग के माध्यमिक शिक्षा निदेशक को सख्त पत्र लिख कर भविष्य में चिट्ठी न लिखने की हिदायत दे डाली. जिसके जवाब में अब शिक्षा विभाग ने एक पत्र जारी कर बीपीएससी को नसीहत दी है. शिक्षा विभाग ने बीपीएससी के पत्र का जवाब देते हुए कहा है कि छह सितंबर को पूरी स्थिति बताने के बाद दोबारा से पत्र भेजना अनावश्यक एवं बचकानी हरकत है. इस कारण से पत्र को मूल रूप से लौटाया जा रहा है. इतना ही नहीं आयोग की स्वायत्ता पर भी सवाल खड़े किए हैं. साथ ही आयोग से कई सवाल भी पूछे हैं.

आयोग की ओर से पत्र में अनर्गल बातों का किया गया है उल्लेख

शिक्षा विभाग की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक (नियुक्ति, स्थानान्तरण, अनुशासनिक कार्रवाई एवं सेवाशर्ती) नियमावली 2023 के प्रावधानों के विपरीत आयोग द्वारा की जा रही कार्रवाई से ध्यान भटकाव के लिए अनर्गल एवं अवांछित तथ्यों का उल्लेख किया जा रहा है, जो न आवश्यक है और न ही उचित है.

आंतरिक प्रक्रिया का निर्वहन स्वयं करे बीपीएससी

विभाग ने कहा कि प्रावधानों के आलोक में आयोग अपनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है एवं इसकी सूचना आपको पूर्व में ही दी जा चुकी है. आयोग की आंतरिक प्रक्रिया का निर्वहन वह स्वयं करे. इसमें विभाग को कुछ नहीं कहना है फिर भी आपके द्वारा अपने प्रासंगिक पत्र के माध्यम से आयोग की आंतरिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप एवं दबाव बनाने का जो तथ्य दिया गया है. वह अनुचित है.

बाद में कोर्ट का मामला बने ऐसा नहीं हो

विभाग ने कहा है कि आयोग अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए स्वतंत्र है. यह भी आवश्यक है कि नियुक्ति नियमावली में विहित प्रावधानों के विपरीत आयोग ऐसा कोई कार्य न करे जिससे भविष्य में अनावश्यक न्यायालीय वादों का कारण बने. ऐसी स्थिति में नियुक्ति प्रक्रिया बाधित होने की संभावना बनती है. साथ ही विभाग को अनावश्यक न्यायालीय वादों के बोझ का भी वहन करना पड़ता है. बावूजद इसके उक्त प्रावधानों के अनावश्यक रूप से अनर्गल शब्दों का प्रयोग करते हुए अनावश्यक पत्राचार में ऊर्जा व्यय करना अनुचित हैं.ऐसे में अनावश्यक पत्राचार करने के बजाय नियमावली के आलोक में ससमय कार्रवाई सुनिश्चित करें , ताकि नियुक्ति प्रक्रिया को न्यायालीय वादों के बोझ से बचाया जा सके.

विधि विभाग तथा सामान्य प्रशासन विभाग से भी चर्चा की जानी चाहिए

विभाग ने आगाह किया जा रहा है कि जहां तक शिक्षकों की भर्ती का प्रश्न है, तो आयोग को जब भी स्थापित परंपराओं से हटकर कोई कार्य करना है, तो पहले एक औपचारिक बैठक आयोग के स्तर पर की जानी चाहिए थी, इसमें शिक्षा विभाग, विधि विभाग तथा सामान्य प्रशासन विभाग से भी चर्चा की जानी चाहिए. आयोग की स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं है कि आयोग कोई भी मूर्खतापूर्ण एवं विवेकहीन परंपरा स्थापित करे, जिससे शिक्षक नियुक्ति को लेकर बाद में सरकार के सामने वैधानिक अड़चन आये.

किन मामलों में परिणाम के पहले किया गया सत्यापन

आयोग यह भी स्पष्ट करे कि लिखित परीक्षा का परिणाम निकाले बगैर प्रमाण पत्रों का सत्यापन पहले किन-किन मामलों में किया गया है. आयोग अपनी स्वायत्ता के नाम पर विवेकहीन व मूर्खतापूर्ण निर्णय नहीं ले सकता है और स्थापित परंपराओं से इतर नहीं जा सकता है. शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में प्रशासी विभाग, शिक्षा विभाग है और संबंधित नियमावली में कई जगह लिखा है कि परीक्षा की विभिन्न पहलुओं पर प्रशासी विभाग से चर्चा कर ही कार्य किया जायेगा.

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क्यों छिड़ा विवाद…

बता दें कि शिक्षा विभाग और लोक सेवा आयोग के बीच यह जंग उस वक्त छिड़ी जब केके पाठक ने शिक्षक नियुक्ति के दस्तावेज सत्यापन के कार्य में शिक्षकों को लगाने पर आपत्ति जताई थी. इस संबंध में शिक्षा निदेशक ने बीपीएससी के सचिव को पत्र लिखकर सर्टिफिकेट वेरिफिकेशन को ही औचित्यहीन करार दिया था. साथ ही शिक्षा विभाग के कर्मियों को इस कार्य से हटाने को कहा था. इस पर बीपीएससी अध्यक्ष ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया जिसमें बिना केके पाठक का नाम लिए उन पर प्रहार किया गए था. इसके साथ ही आयोग के सचिव ने भी शिक्षा विभाग के पत्र के जवाब में एक चिट्ठी लिखी थी.

बीपीएससी के सचिव रविभूषण ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को एक पत्र लिख कर उन्हें हिदायत देते हुए कहा था कि अभ्यर्थियों के दस्तावेजों का सत्यापन आयोग की आंतरिक प्रक्रिया है. आयोग शिक्षा विभाग और राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन नहीं है. अगर यह स्पष्ट न हो तो संविधान के प्रावधानों का अध्ययन कर लिया जाये. रवि भूषण ने शिक्षा विभाग के माध्यमिक शिक्षा निदेशक को दो टूक हिदायत दी थी कि भविष्य में इस तरह के पत्राचार की धृष्टता न की जाये.

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