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लोकसभा चुनाव से पहले I-N-D-I-A को मिली संजीवनी, भाजपा से यहां हुई चूक, अखिलेश यादव बोले- प्रयोग हुआ सफल

चर्चा है कि घोसी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को पार्टी में शामिल कराने से लेकर टिकट देने तक में यूपी नेतृत्व को भरोसे में नहीं लिया गया. सपा के पूर्व विधायक दारा सिंह चौहान को पहले लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट देने की चर्चा थी.

UP Politics: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उत्तर प्रदेश में मऊ जनपद की घोसी विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट ने बड़े संकेत दिए हैं. हालांकि, सपा की जीत के पीछे बसपा का मैदान में नहीं उतरने सहित कई अन्य कारण सामने आ रहे हैं. मगर, इस हार के बाद कहीं न कहीं भाजपा अपनी रणनीति पर दोबारा मंथन करने को मजबूर हो गई है.

अखिलेश यादव बोले- प्रयोग हुआ सफल, शिद्दत के साथ बढ़ेंगे आगे

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसके बाद कहा है कि विपक्ष का गठबंधन इंडिया हमारी टीम है और पीडीए रणनीति. हम पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे. सामाजिक न्याय के लिए जातीय जनगणना कराएंगे और उसी के अनुरूप सभी की हिस्सेदारी तय करेंगे. घोसी की जीत से हमने यह साबित करके दिखा दिया कि अच्छी सोच वाला सर्वसमाज और पीडीए एक साथ आ जाए तो नतीजा कैसा हो सकता है. हमारा यह प्रयोग सफल हो चुका है, इसलिए इस पर और अधिक शिद्दत के साथ आगे बढ़ेंगे.

दारा सिंह चौहान बोले- बूथवार कर रहे हार की समीक्षा

वहीं दारा सिंह चौहान ने कहा कि हार का कोई एक कारण नहीं, बल्कि कई कारण होते हैं. हार के कारणों की समीक्षा के बाद ही वे कुछ कह पाएंगे. उन्होंने कहा कि हम बूथवार हार के कारणों की समीक्षा कर रहे हैं. उन्हें चुनाव में पार्टी के सभी लोगों का साथ मिला, फिर भी अपेक्षित परिणाम न मिलने की वजह तलाश रहे हैं. जो भी रिपोर्ट होगी, उसे पार्टी में आगे बढ़ाएंगे. उन्होंने कहा कि वे परिणाम से निराश नहीं हैं, बल्कि सबक लेते हुए आगे बढ़ेंगे.

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दारा चौहान के मामले में यूपी नेतृत्व को भरोसा में नहीं लेने की चर्चा

इस बात की चर्चा है कि घोसी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को पार्टी में शामिल कराने से लेकर टिकट देने तक में यूपी नेतृत्व को भरोसे में नहीं लिया गया. सपा के पूर्व विधायक दारा सिंह चौहान को जून, 2023 में दिल्ली में शामिल कराया गया था. उस वक्त उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट देने की चर्चा थी. मगर, विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद दिल्ली से ही दारा सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाने का ऐलान कर दिया गया.

पहले भी खामियाजा भुगत चुका है नेतृत्व

राजनीतिक विश्लेषक संजीव द्विवेदी कहते हैं कि इससे पहले वर्ष 2018 में लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भी इसी तरह का फैसला दिल्ली से हुआ था. उस वक्त भी यूपी नेतृत्व की राय नहीं लेने की बात सामने आई थी. यह दोनों सीट तब योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई थीं. मगर, दोनों ही सीट पर भाजपा को करारी हार मिली थी. हालांकि, उस वक्त बसपा ने प्रत्याशी उतारने के बजाय सपा को समर्थन किया था. वहीं एक वर्ष बाद ही लोकसभा चुनाव 2019 में यूपी नेतृत्व को भरोसे में लिया गया. सीएम योगी आदित्यनाथ ने बेहतरीन रणनीति के तहत गोरखपुर में सांसद को पार्टी में शामिल कर लिया. इसके बाद यहां से फिल्म एक्टर रवि किशन को टिकट मिला और उन्होंने जीत दर्ज की. इसके साथ ही फूलपुर लोकसभा में भी कमल खिला.

वन टू वन फाइट में ही हराया जा सकता है भाजपा को

देश के वरिष्ठ पत्रकार और कई प्रमुख अखबारों में संपादक रह चुके नसीरुद्दीन खां का कहना है कि घोसी विधानसभा सीट सपा के पास पहले भी रह चुकी है. 2022 विधानसभा चुनाव में भी सपा से दारा सिंह चौहान चुनाव जीते थे. मगर, इस चुनाव से यह साफ हो गया है कि सत्ताधारी पार्टी को सिर्फ वन टू वन फाइट से ही हराया जा सकता है. यह लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ये विपक्ष के इंडिया गठबंधन के लिए अच्छे संकेत हैं. हालांकि, सत्तारूढ़ दल के चुनाव हारने को लेकर हैरानी भी जताई. बोले, उपचुनाव के पुराने आंकड़े देखें, तो सत्तारूढ़ दल ही उपचुनाव में जीत दर्ज करते हैं.

दल बदल का भाजपा को नुकसान

भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान काफी पुराने राजनेता हैं. उनका सियासी दल बदलने का पुराना इतिहास है. वह विधानसभा के साथ ही लोकसभा का भी चुनाव लड़ते रहे हैं. कभी एक पार्टी से एमएलए का तो कभी दूसरी पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ा. आमतौर पर वह अपने इन फैसलों से फायदे में ही रहे हैं. लेकिन, पहली बार उन्होंने करारा झटका लगा. इससे उनकी छवि को नुकसान हुआ.

दारा सिंह चौहान का सियासी सफर

दारा सिंह चौहान के सियासी सफर पर नजर डालें तो वर्ष 1999 में सपा के टिकट पर उन्होंने घोसी से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन, बसपा प्रत्याशी से उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसके बाद सपा ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया. मगर, पार्टी बदलने में माहिर दारा सिंह फिर बसपा में चले गए. वर्ष 2000 में बसपा से राज्यसभा सांसद बने.

इसके बाद वर्ष 2009 लोकसभा चुनाव में बसपा से सांसद बने थे. फिर लोकसभा चुनाव 2014 में हार गए. इसके बाद फिर भाजपा में आ गए. राज्य सरकार में मंत्री भी बने. लेकिन, विधानसभा चुनाव 2024 के ठीक पहले वह सरकार और भाजपा पर तमाम आरोप लगाकर सपा में शामिल हो गए. उन्होंने मुख्यमंत्री पर भी आरोप लगाए थे. इसके बाद सपा से विधायक बने. मगर, जून 2023 में सपा से इस्तीफा देकर एक बार फिर से भाजपाई हो गए.

कार्यकर्ताओं से तालमेल नहीं बना पाना पड़ा महंगा

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक दारा सिंह चौहान का एक पार्टी में टिककर नहीं रहना हार का बड़ा कारण बना. वह भाजपा के कैडर में मिक्स नहीं हो पाए. वरिष्ठ पत्रकार तारिक सईद कहते हैं कि जमीन पर चुनाव पार्टी का वर्कर ही लड़ता है. दारा सिंह चौहान कुछ समय पहले बीजेपी के खिलाफ लड़कर और जीतकर विधायक बने थे. पार्टी में उनकी पैराशूट लैडिंग ने सबको चौंकाया था. वह टॉप लीडरशिप के चाहने की वजह से बीजेपी में आ तो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं से उनका तालमेल नहीं बैठ पाया.

सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह तीसरी बार बने विधायक

घोसी उपचुनाव India National Developmental Inclusive Alliance (I-N-D-I-A) और National Democratic Alliance (NDA) गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण था. हालांकि, इस सीट पर आए चुनाव के नतीजों से भाजपा को बड़ा झटका लगा है. सपा के सुधाकर सिंह इस जीत के साथ तीसरी बार विधायक बनने में सफल हुए हैं.

विपक्ष के गठबंधन इंडिया के लिए अच्छे संकेत

इस बीच लोकसभा चुनाव 2024 से पहले घोसी की जीत इंडिया गठबंधन के लिए अच्छे संकेत हैं. कुछ महीने पहले ही एनडीए को चुनौती देने के लिए 28 विपक्षी पार्टियों का इंडिया अलायंस बना था. यहां भाजपा अपने घटक दलों के साथ चुनाव प्रचार में थी, तो वहीं सपा के साथ सभी विपक्षी पार्टियां का समर्थन देखने को मिला. इसका ही भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा.

सपा को मिला विपक्ष की एकता का लाभ

घोसी विधानसभा चुनाव में सपा की जीत में बसपा का प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला भी अहम माना जा रहा है. विपक्ष की एकता का सपा को लाभ मिला. इससे पहले मीरजापुर में बसपा ने उम्मीदवार उतारकर गेम चेंज कर दिया था. उस चुनाव में भाजपा ने आसानी से सपा की सीट पर कब्जा कर लिया था. मगर, इस बार ऐसा नहीं हो सका. बसपा के चुनावी मैदान में नहीं उतरने से पूरा मुस्लिम वोट सपा की ओर चला गया.

इसके अलावा बसपा का वोटबैंक भी सपा को ट्रांसफर होने की बात कही जा रही है. हालांकि पार्टी सुप्रीमो मायावती ने नोटा पर बटन दबाने की अपील की थी, उपचुनाव से पहले अपने सर्मथक मतदाताओं से घर से नहीं निकलने समेत नोटा दबाने का सियासी दांव चला था. उन्होंने अपील की थी कि मतदान से दूर रहें. उन्होंने ये भी कहा था कि अगर किसी को वोट देना ही है तो नोटा का बटन दबाएं. 1700 से अधिक लोगों ने नोटा का बटन दबाया भी. लेकिन, कई मतदाताओं ने सपा को वोट भी दिया.

घोसी में इस तरह प्रत्याशियों को मिले वोट

इससे सपा को यहां से आसान जीत मिल गया. बसपा के प्रत्याशी को घोसी के पिछले चुनाव में करीब 54 हजार वोट मिले थे. यहां करीब 90 हजार से अधिक दलित मतदाता हैं. वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54248 मत, 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50775 वोट और 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी 81295 मत मिले थे.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद

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