Lucknow: सड़क पर चलते समय हादसा हो या फिर चोरी और लूट की घटना, अहम दस्तावेज या सामान गुम होने का मामला हो या फिर उत्पीड़न से लेकर अन्य आपराधिक वारदात, इनमें सबसे अहम एफआईआर (FIR) यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट होती है.इसमें तहरीर के बिंदु के आधार पर ही पुलिस मामला दर्ज करती है. इसलिए किसी भी व्यक्ति को एफआईआर के बारे में जानना समझना बेहद जरूरी है.
कई बार देखने को मिलता है कि पुलिस किसी व्यक्ति की एफआईआर (FIR) को दर्ज नहीं करती है. ऐसे में इससे जुड़े नियम कानून की जानकारी होना भी बेहद जरूरी है ताकि आप अपने कानूनी अधिकारों को अच्छी तरह समझें और पुलिस के टालमटोल करने पर एफआईआर (FIR) दर्ज करा सकें.
अगर सीनियर अधिकारी भी आपकी शिकायत को लेकर कोई एक्शन नहीं लेता है तो ऐसे में आप CrPC के सेक्शन 156(3) के तहत इसकी शिकायत मेट्रोलपॉलिटिन मजिस्ट्रेट से कर सकते हैं. आपकी शिकायत को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट संबंधित पुलिस अधिकारी को एफआईआर (FIR) दर्ज करने का निर्देश देगा. इस नियम का स्पष्ट उल्लेख है कि अगर कोई भी अधिकारी आपकी एफआईआर (FIR) दर्ज करने से मना करता है तो इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उन पर एक्शन लिया जा सकता है. इसके अलावा अगर आपकी एफआईआर (FIR) पुलिस नहीं दर्ज कर रही है तो आप अपनी शिकायत को ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं.
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FIR की कॉपी पर उस पुलिस स्टेशन की मुहर और संबंधित पुलिस कर्मी के हस्ताक्षर होने चाहिए.
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FIR की कॉपी आपको देने के बाद पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में लिखेगा कि सूचना की कॉपी शिकायतकर्ता को दे दी गई है.
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आपकी शिकायत पर हुई प्रगति की सूचना संबंधित पुलिस आपको डाक से भेजेगी.
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आपको और पुलिस को सही घटना स्थल की जानकारी नहीं है, तो भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. पुलिस तुरंत FIR दर्ज कर जांच शुरू कर देगी. हालांकि जांच के दौरान घटना स्थल के थाना क्षेत्र की जानकारी होने पर संबंधित थाने में केस को ट्रांसफर कर दिया जाएगा.
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FIR दर्ज करवाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. अगर कोई भी एफआईआर दर्ज करवाने के नाम पर रिश्वत की मांग करे, तो उसकी शिकायत करें.
एफआईआर (FIR) को लेकर आम आदमी को डरने की जरूरत नहीं है. चाहे उससे संबंधित मामला हो या फिर उसके किसी परिचित का, उसे पुलिस थाने जाने में हिचकिचाने या डरने की जरूरत नहीं है. वहीं कई लोगों की शिकायत होती है कि उनकी एफआईआर (FIR) थाने में नहीं लिखी गई, या फिर मजिस्ट्रेट के यहां एफआईआर (FIR) के लिये किया गया आवेदन निरस्त हो गया. इसके तो कई कारण होते हैं. लेकिन, एक कारण ये भी होता है की उसके लिखने का तरीका गलत हो. एफआईआर (FIR) को कम से कम शब्दों में स्पष्ट और पूरे मामले को लिखना चाहिए, क्योंकि न्यायालय में केस इसी आधार पर चलता है. एफआईआर (FIR) सरल भाषा में लिखनी चाहिए और उसमें शिकायत पूरी तरह स्पष्ट होनी चाहिए.
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कब (तारीख और समय)- एफआईआर (FIR) में घटना के समय और तारीख की जानकारी लिखनी चाहिए.
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कहां (जगह)- घटना कहां पर हुई, इसकी जानकारी देनी चाहिए.
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किसने- अपराध किस व्यक्ति ने किया (ज्ञात या अज्ञात) एक या अनेक व्यक्ति उसका नाम पता आदि लिखना चाहिए.
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किसको- किस के साथ अपराध किया गया एक पीड़ित है या अनेक उन सब का नाम व पता.
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किसलिए- यह एक मुख्य विषय होता है. इसलिए इस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. इसको इस तरह समझ सकते हैं कि अगर पहला व्यक्ति दूसरे पर गोली चला देता है और उसकी मौत हो जाती है, तो पहला व्यक्ति दोषी होगा. पहला व्यक्ति दूसरे पर अपनी पिस्तौल तान देता है और दूसरा व्यक्ति अपने बचाव में उस पर गोली चला देता है, तो दूसरा व्यक्ति दोषी नहीं है क्योंकि उसने आत्मरक्षा में कदम उठाया.
पहला व्यक्ति अपनी कार से दूसरे को गलती से टक्कर मार देता है और उसकी मौत हो जाती है, तो पहला व्यक्ति हत्या का दोषी नहीं है बल्कि उस पर दुर्घटना का केस चलेगा और उसके हिसाब से दंड मिलेगा. कोई पुलिस कर्मी अगर आतंकवादी या कुख्यात अपराधी को मुठभेड़ में मार देता है, तो वह हत्या का दोषी नहीं होगा. इससे स्पष्ट होता है की कोई भी कार्य तब तक अपराध नहीं है जब तक की दुराशय से न किया गया हो.
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किसके सामने (गवाह)- अगर घटना के समय कोई मौजूद हो तो उनकी जानकारी अवश्य देनी चाहिए.
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किससे (हथियार) – अपराध करने के लिए किन हथियार (पिस्तौल, डंडे, रॉड, चैन, हॉकी, ईंट) का प्रयोग किया गया. अगर कोई धोखाधड़ी का मामला है तो ( स्टाम्प पेपर, लेटरहेड, इंटरनेट, मोबाइल, आदि) जानकारी जरूर प्रदान करें.
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किस प्रकार – क्या प्रकरण अपनाया गया अपराध करने के लिये उसको लिखें.
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क्या किया (अपराध)- इन सभी को मिलकर क्या किया गया जो की अपराध होता है उसका विवरण दें.
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इस प्रकार एफआईआर में सभी आवश्यक बिंदु शामिल हो जाएंगे और पुलिस के लिए केस समझते हुए उचित धाराओं में मामला दर्ज करना आसान होगा.
एफआईआर (FIR) जहां घटना हुई है, उसके आलावा भी भारत के किसी भी थाने में जाकर दर्ज कराई जा सकती है. आमतौर पर एफआईआर (FIR) नहीं लिखे जाने के कई कारण होते हैं. इसमें मुख्य रूप से टालमटोल करने की वजह क्राइम रेट अधिक नहीं दिखाना होता है. ये रवैया पूरी तरह से गैरकानूनी है. वहीं दूसरा कारण अपराध की सत्यता की पूरी तरह जांच पड़ताल करना है, जिसके बाद एफआईआर (FIR) दर्ज की जा सके.
CRPC 154 के तहत एफआईआर (FIR) लिखवाना संबंधित व्यक्ति का अधिकार है. अगर थाने में किसी व्यक्ति की एफआईआर (FIR) नहीं लिखी जाती है तो वह उनके ऊपर के किसी भी अधिकारी (पुलिस क्षेत्राधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक-वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) से एफआईआर (FIR) लिखने के लिये बोल सकता है. आवश्यकता पड़ने पर इसके ऊपर के अधिकारियों से भी शिकायत की जा सकती है. उच्चाधिकारियों के संज्ञान लेने पर संबंधित व्यक्ति की एफआईआर (FIR) दर्ज की जाएगी.