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लोहरदगा लोकसभा सीट : सुदर्शन भगत संकट में, भाजपा से ये नेता हैं प्रबल दावेदार, यूपीए में खींचा-तानी

तीन बार सांसद रहे श्री भगत इस सीट को हर बार दस हजार से कम वोट से चुनाव जीतते रहे हैं. इस बार भाजपा किसी तरह जोखिम लेने के मूड में नहीं दिखती है. सुदर्शन भगत को शायद इस बार टिकट का दर्शन ही न हो.

आनंद मोहन, रांची:

आनेवाले लोकसभा चुनाव में लोहरदगा में राजनीतिक रोमांच परवान पर होगा. इस सीट पर एनडीए-यूपीए के बीच तीखा संघर्ष होता रहा है. पिछले चुनावों में भाजपा किसी तरह हिचकोले खाते हुए यह सीट निकालती रही है. वर्ष 2014 को जब मोदी लहर उफान पर था, तब भी सुदर्शन भगत ने वर्तमान वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव को छह हजार वोट से ही शिकस्त देकर लोकसभा पहुंच पाये थे.

तीन बार सांसद रहे श्री भगत इस सीट को हर बार दस हजार से कम वोट से चुनाव जीतते रहे हैं. इस बार भाजपा किसी तरह जोखिम लेने के मूड में नहीं दिखती है. सुदर्शन भगत को शायद इस बार टिकट का दर्शन ही न हो. संघ में अच्छी पैठ रखनेवाले सांसद श्री भगत के लिए टिकट हासिल करना आसान नहीं होगा. क्षेत्र में उनकी सक्रियता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. सहज-सरल श्री भगत वर्तमान राजनीतिक हालात में फिट नहीं बैठ रहे. कार्यकर्ताओं के बीच भी उनकी लोकप्रियता मजबूत स्टैंड लेनेवाले नेता के तौर पर नहीं रही है.

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इधर, भाजपा के अंदर इस सीट पर कई दमदार दावेदार हैं. इन दावेदारों में पूर्व आइपीएस अधिकारी अरुण उरांव का नाम सबसे आगे है. प्रदेश भाजपा के कई नेता की वह पसंद हैं. झारखंड के दिग्गज नेता बंदी उरांव के पुत्र डॉ उरांव की राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए भाजपा यहां आदिवासी वोट बैंक की घेराबंदी कर सकती है. इधर लोहरदगा सीट से रांची की मेयर रहीं आशा लकड़ा का नाम भी भाजपा गलियारे में चल रहा है. विद्यार्थी परिषद जैसे ग्रास रूट संगठन से भाजपा की राजनीति तक पहुंचनेवाली आशा लकड़ा का संगठन में मजबूत पकड़ है.

उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के बीच भी अपनी पहचान बनायी है. पार्टी ने इनको राष्ट्रीय मंत्री व पश्चिम बंगाल जैसे चुनौती भरे राज्य का सह-प्रभारी बनाया है. ऐसे में वह भी भाजपा से लोहरदगा सीट की दावेदार हो सकती हैं. राज्यसभा सांसद समीर उरांव, जिनका प्रोफाइल केंद्रीय नेतृत्व ने उभरते हुए ट्राइबल नेता के रूप में बढ़ाया है, वह भी संभावित प्रत्याशी की सूची में हैं. वर्तमान में समीर उरांव भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. भाजपा के पास लोहरदगा में सुदर्शन का मजबूत विकल्प है.

इधर यूपीए में टिकट हासिल करना, तो आसान हो सकता है, लेकिन आपस में ही जबरदस्त खींचातानी है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव भगत कांग्रेस से मजबूत दावेदार हैं, लेकिन सुखेदव भगत का रास्ता काटनेवाले नेता उनकी ही पार्टी में हैं. डॉ रामेश्वर उरांव-धीरज साहू का विरोध उनको झेलना पड़ सकता है. श्री साहू की लोहरदगा की राजनीति में मजबूत पकड़ है. आय से अधिक मामले में दोषी करार दिये गये बंधु तिर्की भी लॉबिंग में लगे हैं.

छह वर्ष की चुनाव नहीं लड़ने की बाध्यता श्री तिर्की के साथ है, लेकिन उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. न्यायालय से राहत की उम्मीद में श्री तिर्की लगातार लोहरदगा की राजनीति में सक्रिय हैं. उम्र के कारण वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव को पार्टी शायद मौका न दे, ऐसे में वह अपने बेटे के लिए फिल्डिंग कर सकते हैं. बिशुनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा अपने स्टाइल की राजनीति करते हैं. सूचना के मुताबिक वह एनडीए और इंडिया दोनों की गठबंधन में टिकट के लिए ताक-झांक करते रहे हैं. लोहरदगा के एक बड़े इलाके में चमरा की अपनी पैठ और राजनीति है. ऐसे में आनेवाले लोकसभा चुनाव में लोहरदगा की चुनावी जंग में कई रंग दिखेंगे.

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