सुनील चौधरी, रांची :
रांची बड़ा तालाब के पास सेरामिक्स फैक्ट्री पिछले 55 वर्षों से बंद है. यह जमीन लावारिस पड़ी है. इसका मालिक कौन है, आसपास के लोगों को इसके बारे में मालूम नहीं है. आज वहां फैक्ट्री की निशानी के रूप में जर्जर होती चिमनी खड़ी है. बाकी भवन ध्वस्त हो चुके हैं. वहां कूड़ों का अंबार लगा है. करीब दो एकड़ जमीन में अब धीरे-धीरे अतिक्रमण होता जा रहा है. जब झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जियाडा) से इस बाबत जानकारी ली गयी, तो अब जियाडा इसकी खोज खबर ले रहा है. दूसरी ओर पड़ताल में यह भी पता चला कि 90 वर्षों की लीज समाप्त होने के बाद सरगुजा एस्टेट ने इस पर दावा किया है कि जमीन उनकी है.
एमडी अजय कुमार सिंह ने बताया कि दरअसल यह जमीन बिहार स्टेट इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (बिसिको) की है. जिस व्यक्ति को सेरामिक्स फैक्ट्री के लिए जमीन व लोन दिया गया था, वह डिफाल्टर हो गया था. इसके बाद से ही फैक्ट्री बंद है. जमीन का स्वामित्व अभी भी बिसिको के ही पास है. श्री सिंह ने कहा कि बिहार-झारखंड बंटवारा के तहत इस परिसंपत्ति पर स्वभाविक रूप से झारखंड का दावा बनता है. अब उनके संज्ञान में यह मामला आया है. सरकार से बात कर इस मामले में बिहार सरकार से पत्राचार किया जायेगा.
वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने डीवीसी के हेडक्वार्टर के लिए यह जमीन आवंटित की थी. उन्होंने डीवीसी मुख्यालय के लिए शिलान्यास भी किया था. तब केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश भी शामिल हुए थे. बाद में बिसिको ने एतराज जताया. तब डीवीसी को अन्यत्र जमीन देने की बात कही गयी. हालांकि उसके बाद से आजतक डीवीसी का मुख्यालय रांची में नहीं बन सका है.
इस जमीन के मामले में प्रभात खबर ने जिला उद्योग केंद्र (डीआइसी) रांची के तत्कालीन जीएम के पद से सेवानिवृत्त अधिकारी एलएन शाहदेव से संपर्क किया. तब उन्होंने बताया कि सरगुजा एस्टेट के मैनेजर ने हाल ही में उनसे संपर्क किया था. वह बता रहे थे कि यह जमीन सरगुजा (छत्तीसगढ़) एस्टेट की है. उस समय के महाराजा ने बंगाल प्रोविनेंस को यह जमीन 90 वर्ष के लीज पर दे दी थी. फिर बंगाल से बिहार अलग हुआ. तब यह जमीन बिहार सरकार के पास चली गयी.
बिहार सरकार ने इस जमीन को बिसिको को दे दिया. बिसिको ने ही एक उद्यमी को यह जमीन सेरामिक्स फैक्ट्री लगाने के लिए आवंटित की थी. सेरामिक्स फैक्ट्री तब काफी गति से चल रही थी. फिर बाद में डिफॉल्टर होने की वजह से फैक्ट्री बंद हो गयी. अब वहां निशानी के रूप में केवल चिमनी ही शेष है. बताया जाता है कि करीब 1965 तक फैक्ट्री चल रही थी. फिर बंद हो गयी. उसके मालिक कहां गये, यह किसी को पता नहीं है. अब जब 90 वर्ष का लीज समाप्त हो गया, तो सरगुजा एस्टेट के मैनेजर ने उनसे संपर्क कर कहा कि जमीन वापस लेनी है, क्या रांची जिला उद्योग को बताना होगा.
तब उन्होंने सुझाव दिया कि वे बिहार सरकार से संपर्क करें और बिसिको के अधिकारियों से मिले. तभी कुछ हो सकता है. इस मामले में ताजा अपडेट से उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. दूसरी ओर फैक्ट्री के समीप ही रहने वाले पालकोट एस्टेट के वंशज बड़ा लाल गोविंदनाथ शाहदेव से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने बताया कि कभी यहां फैक्ट्री चलती थी. यह बात सही है कि यह जमीन सरगुजा एस्टेट के तत्कालीन महाराजा ने अंग्रेजों को लीज पर दी थी. फैक्ट्री क्यों बंद हुई और इसके मालिक कहां गये, यह किसी को पता नहीं है.