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Hindi Diwas 2023: अलीगढ़ में वारिस न होने से भारत प्रकाशन मंदिर हुआ बंद, यहां कभी लगता था साहित्यकारों का मेला

अलीगढ़ में हिंदी को बढ़ावा देने वाली संस्थान बंद हो गया, जिसकी स्थापना आजादी से पहले पंडित बद्री प्रसाद ने की थी. हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने वाले अलीगढ़ का पहला मशहूर प्रकाशन केंद्र की चौखट पर 2022 में ताला लग गया.

Hindi Diwas 2023: एक तरफ हिंदी को चमकाने की बात होती है. वहीं अलीगढ़ में हिंदी को बढ़ावा देने वाली संस्थान बंद हो गया. हम बात कर रहे हैं रेलवे रोड पर स्थित भारत प्रकाशन मंदिर की है. जिसकी स्थापना आजादी से पहले पंडित बद्री प्रसाद ने की थी. हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने वाला अलीगढ़ का पहला मशहूर प्रकाशन केंद्र बंद हो गया है. 2022 में इसकी चौखट पर ताला लग गया.

हालांकि, यहां की बहुमूल्य किताबें सुरक्षित रखवा दी गई है. कुछ किताबें लाइब्रेरी को दे दी गई तो कुछ बेच दी गई. कभी यहां साहित्यकारों का जमघट लगता था. हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्र कुमार, डा नागेन्द्र, रविंद्र भ्रमण, श्री कृष्ण सहाय, हरबंस लाल शर्मा, अंबा प्रसाद सुमन, कैलाशचंद भाटिया जैसे साहित्यकारों का यहां आना-जाना था. इतना ही नहीं गोपाल दास नीरज, बनारसी दास चतुर्वेदी, नवाब सिंह चौहान, प्रेम स्वरूप गुप्ता, कुंदन लाल उप्रेती रांगेय राघव का साहित्य और रचनाएं इसी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ करती थी. साहित्यकार और लेखक सुरेश कुमार बताते हैं कि बड़े लेखकों का यहां मिलना जुलना होता था. साहित्य और समाज पर चर्चा होती थी.

प्रकाशन केंद्र को संभालने वाला कोई नहीं

भारत प्रकाशन मंदिर अब बंद हो चुका है. इसके संचालक पंडित बद्री प्रसाद के पुत्र डॉ रमेश चंद्र ने संभाला था. डॉ रमेश चंद्र के बड़े भाई हरिश्चंद्र शर्मा ने भी पूरा सहयोग किया था. सन् 1889 में पंडित बद्री प्रसाद का निधन हो गया. इसके बाद भारत प्रकाशन का कामकाज हरिश्चंद्र के कंधों पर आ गया. 2019 में हरिश्चंद्र का भी निधन हो गया.

वहीं पिता और भाई की मौत के बाद रमेश चंद्र अकेले पड़ गए. दो भाइयों के बीच कुल चार बेटियां थी. इनमें से तीन अपने परिवार के साथ अमेरिका बस गई. वहीं, चौथी दिव्यांग बेटी घर पर ही है. परिवार में कोई बेटा न होने से इस मशहूर प्रकाशन केंद्र को संभालने के लिए कोई नहीं रह गया. ऐसे में डॉक्टर रमेश चंद्र ने भारत प्रकाशन को बंद करने का फैसला लिया.

हिंदी लेखकों की नई-पुरानी किताबें मिल जाती थी

साहित्यकार सुरेश कुमार बताते हैं कि भारत प्रकाशन मंदिर पर नई लेखकों की किताबें और पुराना कलेक्शन यहां मिल जाता था. उन्होंने बताया कि डॉक्टर रमेश चंद शर्मा के कोई वारिस नहीं था. जिसके कारण संस्थान को बंद करना पड़ा. उन्होंने बताया कि अब कोई जगह ऐसी नहीं है, जहां हिंदी साहित्य की कायदे की किताब खरीद सकें. किसी लेखक की नई और पुरानी किताबें देखने को यहां मिल जाती थी. अब यह जरिया अलीगढ़ में खत्म हो गया.

हिंदी साहित्यकारों की यहां होती थी बैठकी

सुरेश कुमार बताते हैं कि भारत प्रकाशन मंदिर के संस्थापक पंडित बद्री प्रसाद का बड़े साहित्यकारों से मिलना जुलना था और हिंदी साहित्य की वार्ता यहां होती थी. बड़े लेखकों की लेटेस्ट किताबें यहां मिल जाती थी. इस केंद्र को चलाने वाला कोई नहीं था. जिसके चलते यह बंद हो गया, रघुवीर पुरी इलाके में भारत प्रकाशन मंदिर का प्रेस लगाई थी. जो 2006 में पहले ही बंद हो चुका है.

सुरेश कुमार बताते हैं कि एक तरफ हम हिंदी की बात करते हैं कि यह विश्व की भाषा बन रही है. दूसरी तरफ अलीगढ़ में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां हिंदी साहित्य की किताबें खरीद सकें. सुरेश कुमार के पास भारत प्रकाशन मंदिर की पुरानी यादें हैं. उन्होंने इससे जुड़ी तस्वीरें भी साझा की.

नोबेल पुरस्कार विजेता की हिन्दी किताब छापी

भारत प्रकाशन मंदिर से ही नोबेल पुरस्कार विजेता की अंग्रेजी किताब का हिंदी अनुवाद छापा था. लेखिका मॉरिस मेटर लिंक की किताब ब्लू वर्ड का हिंदी अनुवाद गोपाल दास नीरज और गुजराती साहित्यकार कुंदनिका कपाड़िया ने किया था. जिसे भारत प्रकाशन मंदिर ने हिंदी में नील विहग नाम से प्रकाशित किया था. तब इस किताब की कीमत मात्र एक रुपए थी.

यूपी बोर्ड की किताबें भी छपती थी

भारत प्रकाशन मंदिर ने 2000 से अधिक किताबों का प्रकाशन हुआ. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की कक्षा एक से आठवीं तक और यूपी बोर्ड की नौवीं से 12वीं की किताबें प्रकाशित होती रही. भारत प्रकाशन मंदिर का प्रेस रघुवीरपुरी में था. जिसमें 20 ओपीआई सहित कई मशीन थी. यह अलीगढ़ की पहली प्रेस थी.

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