16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड : चीन समेत कई देशों में खरसावां से जाते थे सिल्क के कपड़े, अब बदहाल हैं किसान व बुनकर

साल 2005 से 2013 के दौरान खरसावां और कुचाई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तसर की खेती होती थी. चीन समेत करीब एक दर्जन देशों में यहां के सिल्क कपड़ों का एक्सपोर्ट होता था, लेकिन अब कुचाई सिल्क की खेती से जुड़े किसान व बुनकर बदहाल हैं. कुचाई सिल्क को विशेष आर्थिक पैकेज मिले तो यहां की तस्वीर बदल सकती है.

खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : खरसावां-कुचाई का ऑर्गेनिक तसर सिल्क देश-विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है, लेकिन हाल के वर्षों में तसर कोसा की खेती से लेकर सूत कताई व कपड़ों की बुनाई का कार्य प्रभावित हुआ है. कुचाई सिल्क की खेती से जुड़े किसान व बुनकरों की हालत बढ़िया नहीं है. झारखंड सरकार के उद्योग विभाग की ओर से कुचाई सिल्क के लिये विशेष आर्थिक पैकेज की व्यवस्था कर योजनाबद्ध तरीके से काम हो तो क्षेत्र के गांवों की अर्थव्यवस्था बदल सकती है. साथ ही ग्रामीणों को काम के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

चीन समेत कई देशों में जाते थे खरसावां से सिल्क के कपड़े

साल 2005 से 2013 के दौरान खरसावां और कुचाई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तसर की खेती होती थी. राजनगर और चांडिल क्षेत्र में भी तसर की खेती होती है. करीब एक दर्जन देशों में यहां के सिल्क कपड़ों का एक्सपोर्ट होता था. यहां तक की विश्व की सर्वाधिक सिल्क उत्पादक चीन भी यहां से सिल्क के कपड़ों का आयात करता था. एक दशक पूर्व जिला में करीब आठ करोड़ तसर कोसा का उत्पादन होता था, परंतु हाल के वर्षों में तसर कोसा का उत्पादन लगातार घट रहा है. यहां सिल्क का सालाना कारोबार करीब 20 से 25 करोड़ रुपये के आस पास का है. तसर की खेती को जानने व देखने के लिये देश विदेश से लोग पहुंचते हैं. तसर की खेती के लिये धान के खेत में मेढ़ पर अर्जुन व आसन के पौधे लगाकर तसर की खेती हो जाती है. किसान धान के साथ तसर का भी उत्पादन कर लेते हैं.

Undefined
झारखंड : चीन समेत कई देशों में खरसावां से जाते थे सिल्क के कपड़े, अब बदहाल हैं किसान व बुनकर 3

अधूरा रह गया खरसावां व राजनगर का सिल्क पार्क

सिल्क को बढ़ावा देने के लिये करीब 12 वर्ष पूर्व खरसावां व राजनगर में सिल्क पार्क का शिलान्यास किया गया था. परंतु अब यहां चारदिवारी निर्माण से आगे कार्य नहीं बढ़ सका. दोनों ही सिल्क पार्क का निर्माण कार्य अधुरा रहा गया. सरकार ने सिल्क पार्क में तसर कोसा से सुत कताई से लेकर कपड़े की बुनाई, डीजाइनिंग का कार्य करने की योजना थी. परंतु 12 साल गुजर जाने के बाद भी सिल्क पार्क का कार्य आगे नहीं बढ़ सका. इस पार्क के बन जाने से क्षेत्र के सैकडों लोगों को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होते.

Undefined
झारखंड : चीन समेत कई देशों में खरसावां से जाते थे सिल्क के कपड़े, अब बदहाल हैं किसान व बुनकर 4

बंद सीएफसी खुले तो यहां घर की महिलाओं को मिल सकता है रोजगार

किसान अर्जुन आसन के पेड़ों पर विशेष प्रकार के कीट पालन कर तसर कोसा तैयार करते हैं, फिर तसर कोसा से सूत कताई कर रेशम के धागे तैयार होते हैं. इन धागों से कपड़ा तैयार होता है. इस प्रकार से देखा जाए तो इससे कई स्तर पर स्वरोजगार संभव है. पहले यहां गांवों में खोले गये सामान्य सुलभ केंद्रों (सीएफसी) में महिलाएं धागा बनाने का काम करती थीं. कुछ केंद्रों पर धागा से तसर कपड़ों की भी बुनाई होती थी. परंतु अब खरसावां, कुचाई, राजनगर व चांडिल में पूर्व में खोले गये अधिकांश सीएफसी पर ताला लटका हुआ है. सिर्फ खरसावां-कुचाई में 37 सीएफसी संचालित थे, उसमें से अब सिर्फ दो सीएफसी नाम मात्र के चलते थे. इससे बड़ी संख्या में महिलाएं रोजगार से वंचित हो गयी हैं. पहले यहां सूत कातने वाली महिलाओं को हर माह करीब 12 हजार रुपये की आमदनी होती थी. आज भी सूत कताई शुरू हो जाए तो घर-घर महिलाओं को काम मिल सकता है. सीएफसी बंद होने से वहां लगाये गये मशीनों में रख रखाव के अभाव में खराब हो रहे हैं.

बंबू क्राफ्ट, लेदर क्राफ्ट का कार्य भी बंद

झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के झारक्राफ्ट की ओर से लाह से चुड़िया बनाने, बंबू क्राफ्ट (बांस के सामान बनाने), लेदर क्राफ्ट (लेदर से जूते, बैग आदि) के कार्य पूरी तरह से बंद है. कपड़ों की एंब्रोडोरी का कार्य भी बंद है. इससे महिलाओं के रोजगार पर असर पड़ा है. पहले बड़ी संख्या में लोग बांस की कारीगरी कर रोजगार करते थे. ग्रामीण अंचलों में बंबू क्राफ्ट, लेदर क्राफ्ट से जुड़े शिल्पकार भी बेरोजगार हो गये है.

मलबाड़ी सिल्क के खेती की योजना खटाई में

कुचाई के गांवों में मलबाड़ी सिल्क की खेती कराने की योजना खटाई में पड़ता नजर आ रहा है. पूर्व में कुचाई के पगारडीह, सांकोडीह, बाईडीह व तिलोपदा में करीब 40 एकड़ जमीन पर शहतूत के पौधरोपण किया गया था. देखभाल की कमी के कारण अधिकांश पौधे खराब हो गये. सिल्क के चार किस्मों में मलबाड़ी सिल्क सबसे उन्नत व विश्व में सर्वाधिक पसंद किये जाने वाला सिल्क कपड़ा है. झारखंड में इसकी खेती काफी कम होती है. मलबाड़ी सिल्क मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में होता है.

ऑर्गेनिक तसर का मिल चुका है दर्जा

खरसावां और कुचाई क्षेत्र में तैयार होने वाले तसर को आर्गेनिक तसर का दर्जा भी मिल चुका है. इस कारण यहां के तसर से बने रेशम के कपड़ों की न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी काफी मांग है। करीब दस वर्ष पहले तक बड़े पैमाने पर यहां से सिल्क का कपड़ा निर्यात होता था. यहां के कृषक गर्व से कहते हैं कि एक समय चीन, जर्मनी व मास्को भी कुचाई सिल्क के दीवाने हुआ करते थे, हमारे प्रोडक्ट भी एक्सपोर्ट होते है. परंतु अब यह सपनों जैसी बात है. सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. धीरे-धीरे सबकुछ खत्म होता चला गया. यदि सरकार ध्यान दे तो इसे अब भी पुनर्जीवित करना संभव है.

Also Read: झारखंड : सरायकेला-खरसावां जिले में सुखाड़ की आशंका, धान के साथ मोटे अनाजों की खेती पर भी पड़ रहा असर

2006 में तैयार हुआ था कुचाई सिल्क के नाम से पहला उत्पाद

जिले के कुचाई प्रखंड में सबसे अधिक सिल्क का उत्पादन होता रहा है. यहां हर पंचायत में किसान कोकून की खेती करते थे. तसर तैयार करते थे. ऐसा माना जाता रहा है कि यहां सबसे अच्छा उत्पाद होता है. यही वजह है कि यह उत्पाद कुचाई सिल्क के नाम से मशहूर हो गया. वर्ष 2006 झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के झारक्राफ्ट की ओर से कुचाई सिल्क के नाम से सिल्क साढ़ी तैयार कर देश-विदेशों में बिक्री के लिये भेजा गया था.

कुचाई सिल्क देखने के लिए मारंगहातू आए थे राष्ट्रपति भी

वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम जब झारखंड दौरे पर आए थे, तो कुचाई सिल्क देखने के लिए खरसावां प्रखंड के मारंगहातू गांव भी गए थे. इस दौरान डॉ. कलाम ने कुचाई सिल्क को आगे बढ़ाने के लिए कई तकनीकी सुझाव भी दिए थे.

Also Read: बोकारो : बेरोजगारी और पलायन का दर्द झेल रहे परिवारों ने चुनी खेती की राह, चाचा-भतीजे की मेहनत से लहलहायेगी फसल

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें