Hartalika Teej 2023: हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. पहला हरत और दूसरा आलिका. जिसका अर्थ है ‘महिला मित्र का अपहरण’. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने 108 पुनर्जन्मों के बाद देवी पार्वती से विवाह करने का फैसला किया था. इसलिए इस दिन को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे शुभ अवसरों में से एक माना जाता है. इस दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं. वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती भी इस व्रत को रखने के बाद ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त की थी. इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. व्रती इस दिन सोलह श्रृंगार करके पूजा करने के बाद कथा पढ़ती है.
सनातन परंपरा के अनुसार, विवाहित महिलाओं में सोलह श्रृंगार करने का चलन प्राचीन काल से रहा है. हरतालिका तीज मुख्य रूप से माता पार्वती को समर्पित हैं. इसलिए 16 श्रृंगार भी उन्हीं से जुड़े हुए हैं. हरतालिका तीज का पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव के अटूट रिश्ते को ध्यान में रखकर मनाया जाता है. इस दिन 16 श्रृंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से सुहागिन महिलाओं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
शिव पुराण के अनुसार, चिरकाल में राजा दक्ष अपनी पुत्री सती के फैसले (भगवान शिव से विवाह) से प्रसन्न नहीं थे. अतः किसी भी शुभ कार्य में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया जाता था. एक बार राजा दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में भी भगवान शिव को नहीं बुलाया गया. भगवान शिव के लाख मना करने के बाद भी माता सती नहीं मानी तब भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी.
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भगवान शिव को भविष्य पता था. विधि के विधान के अनुरूप पति का अपमान सुनने के चलते माता सती ने यज्ञ कुंड में अपनी आहुति दे दी. इससे भगवान शिव का हृदय विदीर्ण हो गया. भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांति किया. अगले जन्म में माता सती, हिमालय के घर माता पार्वती के रूप में जन्म ली. हालांकि, माता पार्वती को पूर्वजन्म का स्मरण नहीं रहा. एक रात भगवान शिव स्वप्न में आकर माता पार्वती को याद दिलाया.
उस समय से माता पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति मान लिया, जब माता पार्वती बड़ी हुईं, तो उनके पिता ने विवाह के लिए नारद जी से सलाह ली. उस समय नारद जी के कहने पर माता पार्वती के पिता ने पुत्री की शादी भगवान विष्णु से तय कर दी. उस समय माता पार्वती को रिश्ता पसंद नहीं आया. इसके बाद माता पर्वती की सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं.
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मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया. इसके साथ ही उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया. ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली. पार्वती के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिया और इच्छा अनुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसलिए हर साल महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए इस व्रत को करती हैं.