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हिंदू काॅलेज में हिंदी सप्ताह का आयोजन, प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा- हिंदी को अपनाकर ही होगा भारत का विकास

हिंदी में हस्ताक्षर अभियान में महाविद्यालय के शिक्षकों, सह शैक्षणिक कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों ने उत्साह से भाग लिया. छात्र संयोजक जसविंदर सिंह तथा उनके दल ने महाविद्यालय के सभी विभागों एवं कक्षा कक्षों में जाकर हिंदी में हस्ताक्षर करवाए.

हिंदी और अपनी देशज भाषाओं को अपनाकर ही हम सच्चे अर्थों में भारत का विकास कर सकते हैं क्योंकि अपनी भाषा में ही मनुष्य सबसे सहज होता है. नयी शिक्षा नीति ने मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की अभूतपूर्व पहल की है, जिसे अपनाना समय की जरूरत है. हिंदू महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो अंजू श्रीवास्तव ने महाविद्यालय में हिंदी सप्ताह के अंतर्गत हिंदी में हस्ताक्षर अभियान का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि हमारे यहां कहा गया है ‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल’ अतः हमें हिंदी को अपनाने में आगे आना होगा.

भाषा का संबंध मनुष्य के चित्त

इस अवसर पर हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ रामेश्वर राय ने कहा कि भाषा का संबंध मनुष्य के चित्त से होता है. भारतीय चित्त को समझने और उसका वास्तविक संधान करने के लिए हिंदी सबसे सहज रास्ता देती है. हिंदी में हस्ताक्षर अभियान में महाविद्यालय के शिक्षकों, सह शैक्षणिक कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों ने उत्साह से भाग लिया. छात्र संयोजक जसविंदर सिंह तथा उनके दल ने महाविद्यालय के सभी विभागों एवं कक्षा कक्षों में जाकर हिंदी में हस्ताक्षर करवाए.

हिंदी में हस्ताक्षर अभियान को प्रोत्साहन

हिंदी विभाग के प्रभारी तथा हिंदी सप्ताह के संयोजक डॉ पल्लव ने बताया कि महाविद्यालय में प्रतिदिन आयोजित गतिविधियों में विद्यार्थी उत्साह से भागीदारी कर रहे हैं जिनमें अहिंदी समझे जाने वाले राज्यों यथा केरल, कर्नाटक और पंजाब के विद्यार्थी भी शामिल हैं. हिंदी हस्ताक्षर अभियान में उप प्राचार्य डॉ रीना जैन, डॉ चंद्रचूड़ सिंह, डॉ तालीम, डॉ सांताक्रुज सिंह, डॉ वरुणेंद्र रावत, पुस्तकालयाध्यक्ष संजीव शर्मा, प्रशासनिक अधिकारी राजेश शर्मा, अनुभाग अधिकारी विजेंद्र तिवारी सहित अध्यापक और विद्यार्थी सम्मिलित हुए. अंत में हिंदी विभाग की डॉ नीलम सिंह ने आभार प्रदर्शन किया.

हिंदी को ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाना जरूरी

इससे पहले महाविद्यालय में हिंदी: अतीत और भविष्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसमें सुप्रसिद्ध लेखिका और आलोचक प्रो रीता रानी पालीवाल ने कहा था कि औपनिवेशिक दौर में हिंदी सत्ता के प्रतिरोध की भाषा थी और इसी तेवर ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का मान दिलाया. आज यदि मीडिया और राजनीति ने हमारी भाषाओं का अवमूल्यन किया है तो इससे हिंदी का वास्तविक महत्व कम नहीं हो जाता. हमें हिंदी का महत्व बढ़ाने के लिए इसे ज्ञान और विज्ञान की भाषा बनाना होगा. प्रो पालीवाल ने हिंदू महाविद्यालय में हिंदी सप्ताह के उद्घाटन समारोह में कहा कि यह हिंदी के लिए चिंता का विषय है कि शासक वर्ग अपनी भाषा में काम करता है और जनता उस भाषा को समझ नहीं पाती. उन्होंने भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद की अत्यधिक जरूरत पर बल देते हुए कहा कि अनेक भाषाओं को जानने वाले लोग भी हिंदी में पुस्तकों के अनुवाद में रुचि नहीं दिखाते. प्रो पालीवाल ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के बलिया भाषण की याद दिलाते हुए भारतीय समाज की उन्नति के लिए हिंदी की उन्नति को जरूरी बताया.

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