फिल्म : द ग्रेट इंडियन फैमिली
कलाकार : विकी कौशल, मानुषी छिल्लर,मनोज पाहवा, उज्जवल, सादिया सिद्दीकी
निर्देशक : विजय कृष्ण आचार्य
प्लैटफ़ॉर्म- सिनेमाघर
रेटिंग : ढाई स्टार्स
एक्शन और फैमिली ड्रामा आजकल सभी की पसंद बन चुका है, खासतौर से फैमिली फिल्म की एक बार फिर से वापसी हुई है, इसी क्रम में यशराज फिल्म्स की नयी पेशकश आपके सामने लेकर आये हैं विजय आचार्य फिल्म द ग्रेट इंडियन फैमिली के रूप में. इस फिल्म की अच्छी बात यह है कि कहानी में नयापन तो है ही, वर्तमान दौर की स्थिति को व्यंग्यात्मक तरीके और हास्य के पुट देकर समझाने की कोशिश की है. यह फिल्म आपसी अपनी सौहार्द और धर्म निरपेक्षता की पाठ पढ़ाने की कोशिश भी करती है. लेकिन अफसोस की बात है कि कहानी अच्छी सोच के साथ बनने के बावजूद पूरी तरह से मुकम्मल नहीं हो पाती है.
कहानी बलरामपुर में रहने वाले विक्की कौशल के किरदार वेद ब्यास त्रिपाठी उर्फ़ भजन कुमार के जीवन पर आधारित है, यह एक ऐसा लड़का रहता है, जो जन्म से मुस्लिम है, लेकिन उसे परिवार हिन्दू का मिलता है, वह भी शुद्ध रूप से पंडित का परिवार और फिर यहां से कैसे धर्म और समाज की पूरी कहानी दर्शकों तक पहुंचाई गई है. एक भारतीय परिवार में किस तरह की चीजें चलती हैं, ढांचा क्या है, किन पहलुओं पर एक परिवार चलता है, इसे बखूबी दिखाया गया है. खासतौर से किसी आपातकालीन स्थिति में क्या होता है, इसे भी पूरी तरह से दर्शाया गया है. वेद उर्फ़ भजन कुमार एक बड़ा सिंगर बनना चाहता है, जो कि अपने इलाके में भजन और जगरातों में जाता है, लेकिन आखिर उसकी जिंदगी में क्या ट्विस्ट आता है, जब उसके सामने यह राज खुलता है और सच सामने आता है कि वह तो एक मुस्लिम परिवार का लड़का है और कैसे वह परिवार में सबकी आंखों का तारा बने रहने वाला अचानक से लोगों की आंखों की किरकिरी बन जाता है, यह निर्देशक ने दिलचस्प तरीके से दर्शाने की कोशिश की है. यह बात उनके सामने एक चिट्ठी के जरिए आती है. निर्देशक ने अच्छे कलाकारों के साथ एक अच्छा विजन तलाशा है, लेकिन उसे प्रस्तुत करने में उनसे खामियां रह गई हैं. इसलिए कहानी दिल को छूने की बजाय ओवर ड्रामेटिक अधिक नजर आती है. कहानी उम्मीद के मुताबिक चलती रहती है. फिल्म का गीत संगीत कमज़ोर रह गया है.
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अभिनय की बात करें तो विकी जितने प्रभावशाली एक्टर हैं, उस हिसाब से उन्होंने इस फिल्म में बेवजह काफी लाउड किरदार निभा लिया है. वह अपने बाकी के दमदार किरदारों में से इस फिल्म में कम साबित हुए हैं. मानुषी इस फिल्म में भी इंफ्रेस नहीं कर पाती हैं. उन्हें जरूरत है कि वह कोई अच्छा एक्टिंग कोच करें. कुमुद मिश्रा और मनोज पाहवा ने भी ढर्रे वाली एक्टिंग की है. सिर्फ सादिया सिद्धिकी ने अपने किरदार से नयापन लाने की कोशिश की है. नए कलाकार उज्ज्वल का किरदार ध्यान खींचता है. कुल मिला कर फिल्म में नयापन कुछ नहीं है. लेकिन एक अच्छी सोच से बनी फिल्म के लिए यह एक बार देखी जा सकती है.