अजीत कुमार, पूर्व महाधिवक्ता :
स्वर्गीय कैलाश प्रसाद देव को आरंभ से ही जानता था. अधिवक्ता के रूप में हमलोग साथ में काम करते थे. अधिवक्ता के रूप में भी एवं जज बनने के बाद भी उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं देखा. कहते हैं न कि ऊंचे पद पर जाने के बाद व्यक्ति पर कुर्सी हावी हो जाती है, परंतु उनके मामले में ऐसा नहीं था. वे अधिवक्ताओं एवं आम जनता की भावनाओं को समझने वाले जज थे. वे जनता की समस्याओं के संबंध में व्यथित हो जाते थे. महाधिवक्ता के ताैर पर जब मैं कार्य कर रहा था, तो भी कई एक ऐसे मामले आये, जिसमें उन्होंने मुझसे समाज सुलभ नीतियों के संबंध में सरकार की ओर से मुझसे सहयोग की अपेक्षा की और कई मामलों में उनके आदेशों से बड़े-बड़े कार्य भी हुए, जो कई वर्षों से लंबित चले आ रहे थे और राज्य सरकार की तत्कालीन नीतियों के कारण उलझे हुए थे.
आर्म्स एक्ट के मामलों से संबंधित पुलिस के पास सीज किये गये आर्म्स के डिस्पोजल को लेकर एक बड़ी समस्या थी. काफी लंबे समय से आर्म्स का डिस्पोजल नहीं होने के कारण कई बार पुलिस पर निर्दोष व्यक्तियों के संबंध में आर्म्स प्लांट करने का भी आरोप लगता था. उनके न्यायालय में सुने जा रहे एक मामले में उन्होंने मुझसे महाधिवक्ता के ताैर पर सहयोग करने की अपेक्षा की थी और कुछेक आदेशों के बाद तत्कालीन सरकार ने उचित व्यवस्था बनायी और काफी लंबे समय से अथवा बिहार के समय से चली आ रही पुरानी व्यवस्था का अंत हुआ. इसी तरह से उनके द्वारा सुने गये कुछ अन्य मामलों में स्थायी भगोड़े अपराधियों अथवा स्थायी वारंट किये गये मामलों के संबंध में भी पूर्ववर्ती सरकार एवं मेरे महाधिवक्ता के कार्यकाल में सकारात्मक कदम उठाये गये थे तथा काफी सारे मामलों का थाने के स्तर से ही निष्पादन किया गया था.
एक या एक से अधिक मामले में समाजपरक व राज्यपरक कार्रवाई कराना पूरे राज्य को लाभ पहुंचा रहा था. इसलिए उनके न्यायालय में यद्यपि मैं कहा करता था कि विषय से हट कर साधारण एवं आम आदेश पारित करना उचित नहीं होगा. फिर भी उनकी भावनाओं, जिसमें पूरे राज्य अथवा समाज का लाभ निहित था, मैं उनके सामने नतमस्तक हो जाता था. वे स्वच्छ सामाजिक भावना के वाहक एक ईमानदार जज के रूप में बराबर याद किये जायेंगे तथा उनकी कमी राज्य के संपूर्ण अधिवक्ता वर्ग द्वारा महसूस की जायेगी. न्यायालय के बाहर वे जब भी कभी मिलते थे, तो हमलोग बिल्कुल पूर्व की भांति व्यवहार करते थे. और जब कभी मैं आप अथवा माई लॉड कह कर संबोधित करता था, तो वे हाथ पकड़ कर ऐसा नहीं करने के लिए कहते थे और कहते थे कि ऐसा कहने से उन्हें लगता है कि मै उनका मजाक उड़ा रहा हूं. वास्तव में उनका व्यवहार इतना सरल था, जो आम ताैर पर नहीं देखा जाता है. मैंने अपना एक अभिन्न मित्र खोया है और संपूर्ण राज्य ने एक बेहतर जज और एक बेहतर इंसान खो दिया है.