रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ईडी की कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की. इसके साथ ही पत्र लिखकर ईडी को याचिका दायर करने की जानकारी दी और हाईकोर्ट का निर्देश आने तक इंतजार करने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री की ओर से दायर याचिका में पीएमएलए की धारा 50 और 63 को असंवैधानिक करार देने और उन्हें जारी किए गए सारे समन को निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. ईडी ने जमीन खरीद बिक्री मामले में मुख्यमंत्री को चौथा समन भेज कर पूछताछ के लिए 23 सितंबर को रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में हाजिर होने का निर्देश दिया था. दायर याचिका में कहा गया है कि पीएमएलए 2002 में निहित प्रावधानों के तहत ईडी के अधिकारी को जांच के दौरान किसी को समन करने का अधिकार प्राप्त है, जिसे धारा 50 के तहत समन जारी किया जाता है, उससे सच्चाई बताने की अपेक्षा की जाती है. उसका बयान दर्ज किया जाता है. इसके बाद इस बयान पर दंड या गिरफ्तारी के डर से उसे इस पर हस्ताक्षर करने की अपेक्षा की जाती है. यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है. संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के तहत किसी व्यक्ति को इस बात का हक है कि वह यह जाने कि उसे किस मामले में और क्यों समन किया गया है. ईडी ने उन्हें समन भेजा है, लेकिन वह इस बात की जानकारी नहीं दे रहा है कि उन्हें किस सिलसिले में बयान दर्ज करने के लिए बुलाया जा रहा है. मुख्यमंत्री की ओर से दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि अवैध खनन के मामले में ईडी द्वारा किए गए समन के आलोक में वह पूछताछ के लिए हाजिर हुए थे. उन्होंने अपनी और पारिवारिक संपत्ति का ब्योरा ईडी को सौंप दिया था. इसके बावजूद उन्हें परेशान किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में दी थी ईडी के समन को चुनौती
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उन्होंने ईडी की कार्रवाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट के सामने बात रखने की आजादी है. इसलिए उन्होंने अपनी मांग से संबंधित याचिका हाईकोर्ट में दायर की है. याचिका में ईडी द्वारा जारी किए गए समन को दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीति से प्रेरित बताया गया है. इसके साथ ही चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य से की गयी कार्रवाई बताया गया है. याचिका में पीएमएलए की धारा 50 और 63 को असंवैधानिक बताते हुए उसे निरस्त करने का अनुरोध किया गया है. इसके साथ ही उन्हें जारी किए गए सभी समन को निरस्त करने और न्यायालय के अगले आदेश तक किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं करने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है.
ईडी नहीं बता रही कि क्यों किया जा रहा है समन
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि पीएमएलए 2002 में निहित प्रावधानों के तहत ईडी के अधिकारी को जांच के दौरान किसी को समन करने का अधिकार प्राप्त है, जिसे धारा 50 के तहत समन जारी किया जाता है, उससे सच्चाई बताने की अपेक्षा की जाती है. उसका बयान दर्ज किया जाता है. इसके बाद इस बयान पर दंड या गिरफ्तारी के डर से उसे इस पर हस्ताक्षर करने की अपेक्षा की जाती है. यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है. संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के तहत किसी व्यक्ति को इस बात का हक है कि वह यह जाने कि उसे किस मामले में और क्यों समन किया गया है. ईडी ने उन्हें समन भेजा है, लेकिन वह इस बात की जानकारी नहीं दे रहा है कि उन्हें किस सिलसिले में बयान दर्ज करने के लिए बुलाया जा रहा है. ईडी की ओर से उन्हें ईसीआईआर की कॉपी भी नहीं दी जा रही है. सीआरपीसी 1973 में इस बात का प्रावधान किया गया है कि समन करनेवाली एजेंसी संबंधित व्यक्ति को यह बताए कि उसे अभियुक्त या गवाह के तौर पर समन क्यों किया जा रहा है? लेकिन पीएमएलए 2002 इस बिंदु पर पूरी तरह खामोश है. पीएमएलए की धारा 50 के के तहत जारी समन में इस बात की जानकारी नहीं दी जा रही है कि उन्हें किस रूप में समन दिया जा रहा है.
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परेशान कर रही है ईडी
इंडियन एविडेंस एक्चुअल 1873 और सीआरपीसी में सुरक्षा कारणों से इस बात का प्रावधान किया गया है कि जांच एजेंसी के समक्ष दिया गया बयान ट्रायल के समय कोर्ट में मान्य नहीं होगा, लेकिन पीएमएलए 2002 में लोगों को यह सुरक्षा नहीं दी गयी है. मुख्यमंत्री की ओर से दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि अवैध खनन के मामले में ईडी द्वारा किए गए समन के आलोक में वह पूछताछ के लिए हाजिर हुए थे. उन्होंने अपनी और पारिवारिक संपत्ति का ब्योरा ईडी को सौंप दिया था. इसके बावजूद उन्हें परेशान किया जा रहा है.
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