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Pitru Paksha 2023: पितृदोष निवारण के लिए करें जरूर करें नारायण नागबलि, जानें क्यों की जाती है यह पूजा

Pitru Paksha 2023: नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए. लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है. नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है.

Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष में यह दोष का शांति करने का बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है .इस समय कोई मुहूत नहीं देखा जाता है. जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है. ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए तबतक शांति नहीं मिलती ,मानसिक परेशानी बना रहता है .परिवार के सद्श्यो को विवाह होने में देर होती है .नौकरी में परेशानी होती है .

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किसको करना चाहिए नारायण नाग्बली

  • प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है.

  • परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो. आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है.

क्यों की जाती है यह पूजा

शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है. यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है. यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है. जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं.

संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए. यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है.

यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है. घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं. माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है.

कब नहीं की जा सकती है नारायण-नागबलि

नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए. लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है. नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है.

धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं. इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है.

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संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594 /9545290847

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