सिजुआ (धनबाद), इंद्रजीत पासवान : बीसीसीएल के गजलीटांड़ खान हादसे की आज 28वीं बरसी है. इस हादसे में खदान में दूसरी पाली में काम कर रहे 64 मजदूरों की जलसमाधि हो गयी थी. दरअसल, 25 सितंबर 1995 की रात हुई मूसलधार बारिश से कतरी नदी में बाढ़ आ गयी थी. पानी का वेग इतना ज्यादा हो गया कि वह गजलीटांड़ खदान में प्रवेश कर गया. कतरी नदी के पानी का करंट इतना तेज था कि किसी को संभलने का मौका नहीं मिला. और गजलीटांड़ खदान में दूसरी पाली में कार्यरत 64 मजदूरों की जलसमाधि हो गयी. इस हादसे के बाद सुरक्षा के कई उपाय हुए. हर साल गजलीटांड़ के शहीद स्तंभ पर बीसीसीएल के उच्च अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधि, मजदूर व अन्य लोग आकर इस हादसे के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं. साथ हीं सुरक्षित कोयला उत्पादन का संकल्प दुहराया जाता है. इस हादसे के पीड़ितों में से एक थे सुरेश भुइयां. सुरेश की नौकरी के मात्र पांच दिन हुए थे. अपने छोटे-छोटे बच्चों व पत्नी से विदा लेकर वह काम पर गये, तो वापस नहीं आ सकें. पढ़ें इस हादसे की कहानी सुरेश भुइयां की पत्नी बेलपतिया देवी की जुबानी.
बेलपतिया देवी घटना को याद करते हुए कहती हैं कि रविवार होने के बाद सभी लोगों की ड्यूटी बदल जाती थी, लेकिन उनके पति की ड्यूटी नहीं बदली थी. इस वजह से उन्हें फिर से दूसरी पाली में ही ड्यूटी मिल गयी थी. जब उन्होंने लगातार दूसरे सप्ताह भी दूसरी पाली में ड्यूटी पर जाने का कारण पूछा, तो सुरेश ने समझाया कि उसकी नयी नौकरी है, इसलिए साहब लोगों ने दूसरे सप्ताह वाली डयूटी भी दूसरी पाली में ही करने को कहा है. कुछ देर चुप रहने के बाद बेलपतिया देवी कहती हैं कि 25 सितंबर को जब उनके पति सुरेश ड्यूटी पर जाने लगे, तो तीनों बच्चों को गले लगाया. खूब लाड़-प्यार किया, फिर उनसे कहा कि बच्चों का अच्छे से ख्याल रखना, आता हूं ड्यूटी से. वह घर में पति के आने का इंतजार करती रहीं, पर रात गुजरी, वह नहीं आये. सुबह पता चला कि जिस खदान में उनके पति काम करते थे, उसमें पानी भर गया है. किसी को खदान से बाहर नहीं निकाला जा सका है. उन पर पहाड़ टूट पडा.
वह गोद में बेटा व दोनों बेटियों को लेकर जैसे-तैसे खदान तक पहुंची. वहां उन्हें और अन्य सभी प्रभावित लोगों के परिजनों बताया गया कि धैर्य रखें, खदान में पानी घुस गया है. निकालने में 14 दिन लगेंगे. इसके बाद भूखे-प्यासे वह सभी लोगों के साथ वहीं रहने लगी. रोज लगता कि आज पति आ जायेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. इस बीच कई बड़े-बड़े लोग आये, आश्वासन मिला कि 14 लाख नगद, एक आवास के अलावा बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई सरकार करायेगी. मगर दिन बीतता चला गया, बीसीसीएल में नौकरी के सिवा कुछ नहीं मिला. हां, एक बार 75 हजार रुपये का चेक, गेहूं तथा साड़ी उन लोगों को जरूर मिला था. किस विभाग ने इसे दिया था, वह उन्हें पता नहीं. वह कहती है कि वह चाहती हैं कि उनकी नौकरी कंपनी उनके बेटे को दे. हर साल घटना की बरसी पर साहब लोगों को यह बात वह कहती हैं, पर अब उनका कौन सुनता है.
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कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में भी साबित नहीं हो पाया था दोषी
गजलीटांड़ हादसे में बीसीसीएल की मॉनसून को लेकर तैयारियों का सच सामने आया था. कतरी नदी की धारा के मुड़ कर सीधे छह नंबर चानक में चले जाने से 64 श्रमिकों की जलसमाधि के बाद काफी हंगामा हुआ था. पूर्व सांसद एके राय की पहल पर बांकुड़ा के तत्कालीन सांसद वासुदेव आचार्य ने संसद में दोषी माइनिंग अधिकारियों को सजा दिलाने की मांग की थी. सीटू नेता का प्रतिनिधिमंडल घटना के बाद कोयला मंत्री व कोयला सचिव से मिला था. उसके बाद कोयला मंत्री जगदीश टाइटलर ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी गठित की थी. लेकिन, हुआ कुछ नहीं. जांच का निष्कर्ष भी नहीं निकल पाया. दोषियों पर कार्रवाई तो हुई नहीं, घटना में संलिप्त दोषियों को प्रमोशन तक मिल गया. उस पर भी मुद्दा भी गर्म हुआ, लेकिन कुछ नहीं हुआ.
आज भी सहम जाती हूं हादसे को याद कर : बेलपतिया देवी
गजलीटांड़ हादसे में शहीद हुए सुरेश भुइयां की पत्नी बेलपतिया देवी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली है. जब घटना हुई, तब वह इस इलाके के लिए नयी-नयी थीं. उनके पति सुरेश भुइयां को अपनी मां (बेलपतिया देवी की सास) की जगह नौकरी मिली थी. बेलपतिया देवी घटना को याद कर अब भी सहम जाती हैं. उन्होंने बताया कि उनके पति को उनकी सास समुद्री भुइयां के बदले नियोजन मिला था. उस वक्त उनको तीन बच्चे थे. पहली बेटी पांच साल, दूसरी बेटी दो साल व छह माह का बेटा काजल था. उनके पति सुरेश भुइयां को नयी- नयी नौकरी मिली थी. वो लोग काफी खुश थे. जीवन के कई सपने देखे थे, पर सपना चूर हो गया. मात्र पांच दिन ही नौकरी करते हुए थे और उनकी मौत हो गयी.