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Ganesh Visarjan 2023: आज होगी विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की विदाई, जानें विसर्जन का शुभ मुहूर्त और महत्व

Ganesh Visarjan 2023: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ गणेशजी की प्रतिमा को अपने घर लाकर उनकी स्थापना करते हैं और पूरी धूम-धाम के साथ भक्त इनकी पूजा-अर्चना करते है. विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की विदाई की जाएगी.

Ganesh Visarjan: हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है. यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक है. कहा जाता है कि विघ्नहर्ता भगवान गणेश अपने भक्तों को सभी प्रकार के विघ्नों का नाश कर देते है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ गणेशजी की प्रतिमा को अपने घर लाकर उनकी स्थापना करते हैं और पूरी धूम-धाम के साथ भक्त इनकी पूजा-अर्चना करते है. इसके साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन करते है. इसके साथ ही दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का समापन भी हो जाता है. इस बार अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 को मनायी जाएगी. इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं. भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से पंचामृत, मौसमी फल एवं तुलसीदल से की जाती है.

इस शुभ मुहूर्त में की जाएगी गणपति विसर्जन

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष 28 सितंबर 2023 को अनंत चतुर्दशी वाले दिन गणपति विसर्जन के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं. इस दिन प्रातः काल 06 बजकर 16 मिनट से 07 बजकर 40 मिनट के बीच विसर्जन कर सकते है. इसके बाद फिर दिन में 10 बजकर 42 मिनट से दोपहर 02 बजकर 10 मिनट तक और शाम 04 बजकर 41 मिनट से रात्रि में 09 बजकर 10 मिनट तक विसर्जन कर सकते है. इन तीनों शुभ मुहूर्त में आप बप्पा का विसर्जन कर सकते हैं.

महाभारत से जुड़ी है मूर्ति विसर्जित का इतिहास

गणपति बप्पा की मूर्ति को दस दिन तक पूजा- अर्चना करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन जल में विसर्जित कर दिया जाता है. कहा जाता है कि इसके पीछे की मुख्य कारण महाभारतकाल से जुड़ी हुई है. दरअसल, महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से इसे लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी. भगवान गणेश ने उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार किया था और महाभारत लेखन का कार्य गणेश चतुर्थी के दिन से ही शुरू किया गया था और इसकी समाप्ति अगले 10वें दिन यानि अनंत चतुर्दशी के दिन किया गया था, जिसके कारण तब से लेकर आज तक इस पर्व को 10 दिनों तक काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है.

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भगवान गणेश ने रखी थी ये शर्त

मान्यता है कि, भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास की प्रार्थना को तो मान लिया था, लेकिन उन्होंने महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए एक शर्त रखी थी ‘कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा’. तब वेदव्यासजी ने कहा कि भगवन आप देवताओं में अग्रणी हैं, विद्या और बुद्धि के दाता हैं और मैं एक साधारण ऋषि हूं. यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाय तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें. गणपति जी ने सहमति दी और फिर दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था, जिसके कारण गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की, जिसके बाद महाभारत लेखन का कार्य शुरू हुआ. इसे पूरा होने में करीबन 10 दिन लग गए. कहा जाता है कि इसी 10वें दिन भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन किया गया. इसीलिए 10 दिनों तक बप्पा की पूजा करने के बाद विसर्जन कर दिया जाता है.

10 दिनों तक पूजा करने से थक जाते है बप्पा

महाभारत लेखन का कार्य जिस दिन गणेश जी ने पूरा किया, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी. लेकिन लगातार दस दिनों तक बिना रूके लिखने के कारण भगवान गणेश का शरीर जड़वत हो चुका था. मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा. वेदव्यास ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया. इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए. यही कारण है कि गणपति स्थापना के 10 दिन के लिए की जाती है और फिर 10 दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है.

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गणेश विसर्जन का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा में तीन चरण शामिल होते हैं- पहला आवाहन (निमंत्रण या आह्वान), दूसरा पूजा (पूजा), और तीसरा यथास्थान (भेजना). मनुष्य जब भी किसी भगवान की प्रतिमा स्थापित करते है तो यहीं तीनों रूप में पूजा करते है. आह्वान के दौरान, पूजा के मुख्य देवता को एक ऊंचे मंच पर रखा जाता है, और उसके ऊपर पानी, पान के पत्ते और नारियल से भरा एक कलश (पवित्र बर्तन) रखा जाता है. पूजा परंपरा के अनुसार होती है और परिवार द्वारा की जाती है. प्रार्थना के बाद देवता को सम्मानजनक तरीके से विदा करना और भगवान को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देना. इसीलिए किसी भी मूर्ति को समय के अनुसार पूजा- पाठ करने के बाद एक निश्चित समय से शुद्ध जल में विसर्जन कर दिया जाता है और पुनः एक साल के बाद पुनः दुबारा उनका आवाहन किया जाता है.

घर में ऐसे करें गणेश विसर्जन

पारिवारिक परंपरा के अनुसार, वैसे तो गणेश विसर्जन 10 दिन किया जाता है. लेकिन भक्त कभी- कभी अपने सुविधा अनुसार भी कर देते है. गणेश विसर्जन के दिन, परिवार मूर्ति के सामने इकट्ठा होता है और पुष्प, दीये, अगरबत्ती, मोदक आदि अर्पित की जाती है. दिन के लिए तैयार किए गए अन्य खाद्य पदार्थों के साथ अंतिम पूजा किया जाता है. पूजा मूर्ति के सामने कपूर की आरती दिखाई जाती है. इसके बाद पूरा परिवार भगवान गणपति से खुशिहाली का प्रार्थना करता है. फिर परिवार का मुखिया मूर्ति पर हल्दी चावल (अक्षद) छिड़कता है और अंत में नमस्कार करता है. परिवार का सबसे बड़ा पुरुष सदस्य विदाई यात्रा शुरू करने के प्रतीक के रूप में मूर्ति को छूता है और धीरे से उसे हिलाता है ताकि प्रतिमा खंडित न हो.

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नम आंखों से करते है मूर्ति विसर्जन

  • भगवान गणेश को विदा करते समय उन्हें दही और मोदक अवश्य अर्पित करें. क्यों भगवान गणेश को मिष्ठान में सबसे प्रिय मोदक लगता है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. परिवार उनके निवास स्थान की यात्रा के दौरान उनके साथ जाने के लिए एक लाल कपड़े में कुछ चावल और अनाज बांधता है.

  • फिर परिवार गणेश के श्लोकों का जाप करता है. नामित पुरुष सदस्य मूर्ति को ले जाता है और मूर्ति को अंतिम चक्कर के लिए घर के चारों ओर ले जाता है.

मूर्ति विसर्जन की मुख्य बातें

  • विसर्जन के लिए अधिक सदस्य एकत्रित होते हैं और भगवान को विदाई देने के लिए निकल पड़ते हैं. विसर्जन स्थल पर पहुंचने पर, जो आमतौर पर नदी, झील, तालाब या समुद्र जैसा जल निकाय होता है, जहां गणेश जी की प्रतिमा को सम्मानपूर्वक गणेश नामों और नारों के साथ पानी में विसर्जित कर दिया जाता है.

  • भक्त भगवान गणेश से उनके परिवारों को आशीर्वाद देने और अगले साल पुनः पूजा के लिए वापस आने की प्रार्थना करते हैं.

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