16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Rajasthan Election 2023: वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करके क्या राजस्थान में बीजेपी जीत सकती है विधानसभा चुनाव?

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में चंद दिन रह गये हैं. इससे पहले प्रदेश में बीजेपी की टेंशन बढ़ गई है. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक और विरोधी पार्टी की परेशानी का सबब बनते नजर आ रहे हैं. यहां जानें कैसे

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले प्रदेश में बीजेपी फूंक-फूंककर कदम रख रही है. यह तो साफ है कि चुनाव में बीजेपी बिना किसी मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनावी समर में उतरेगी. यानी बीजेपी का कोई सीएम फेस चुनाव में नहीं होगी. सीएम फेस को लेकर कोई संदेह नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों जयपुर में एक रैली में कहा था कि मैं हर बीजेपी कार्यकर्ता से कहना चाहता हूं कि हमारी पहचान और शान केवल कमल है. आपको बता दें कि यह रैली महिलाओं पर केंद्रित था लेकिन पीएम मोदी के अलावा कोई भी स्पष्ट मंच से रैली को संबोधित करता नहीं दिखा. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को भी स्पष्ट रूप से बोलने का अवसर प्रदान नहीं किया गया. यही नहीं प्रधानमंत्री ने अपने आधे घंटे के संबोधन के दौरान एक बार भी वसुंधरा राजे की सरकार का जिक्र किया और न ही मौजूदा सीएम अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार से इसकी तुलना की. इसके अलावा, रैली में कुछ अलग चीज भी देखने को मिली. दरअसल, बीजेपी सांसद दीया कुमारी और पार्टी की राष्ट्रीय सचिव अलका गुर्जर द्वारा कार्यक्रम की एंकरिंग की गई जिससे यह कयास लगाये जा रहे हैं कि बीजेपी नए नेताओं और नई महिला नेताओं को लाना चाहती है.

वसुंधरा राजे पर क्या लगा है आरोप

ऐसी अटकलें थीं कि बीजेपी कर्नाटक के बाद राजस्थान में अपना रुख बदल सकती है. आपको बता दें कि कर्नाटक में बीजेपी की हार के लिए राज्य के क्षत्रपों, खासकर पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को दरकिनार करने को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया गया था, लेकिन राजस्थान में पार्टी ने फिर से केंद्रीय नेतृत्व को चुना है. राजस्थान में अभियान के नेतृत्व से यह झलक रहा है कि वसुन्धरा राजे को दरकिनार कर दिया गया है जिनका प्रदेश में अच्छा जनाधार माना जाता है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपसी सहमति से बीजेपी ने राजे को अपने कार्यक्रमों से एक हाथ की दूरी पर रखा है, जबकि पूर्व सीएम राजे ने भी दूरी बनाए रखने पर रजामंदी दी है. राजे विरोधी खेमे का कहना है कि उन्हें पिछले साढ़े चार साल में पार्टी के लिए और अधिक एक्टिव रहना चाहिए था, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि जिन कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने का उन पर आरोप है, उनमें उन्हें कभी आमंत्रित नहीं किया गया. राजे पर प्रदेश में हुए नौ उपचुनाव, पिछले साल जन आक्रोश यात्रा और हाल ही में परिवर्तन संकल्प यात्रा में योगदान नहीं देने का आरोप लगा है.

2018 के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को हुआ फायदा

2018 के बाद हुए उपचुनाव की बात करें तो इस दौरान नौ उपचुनाव हुए जिसमें से सात में कांग्रेस और एक में बीजेपी ने जीत हासिल की, जबकि एक सीट पर बीजेपी समर्थित आरएलपी को जीत मिली. इन सीटों में से, कांग्रेस ने तीन सीटें बीजेपी से छीनने का काम किया और चार बरकरार रखीं, जबकि बीजेपी और आरएलपी ने एक-एक सीट बरकरार रखी.

Undefined
Rajasthan election 2023: वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करके क्या राजस्थान में बीजेपी जीत सकती है विधानसभा चुनाव? 3

जन आक्रोश यात्रा को लेकर क्या हुआ था

पिछले साल दिसंबर में जन आक्रोश यात्रा निकाली गई थी. इस यात्रा का नेतृत्व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने किया था. आखिरकार, बीजेपी के राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह ने यह कहकर यात्रा को निलंबित कर दिया कि कोविड प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए इस यात्रा को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है, हालांकि इसका एक कारण खराब जनता का खराब रिस्पांस मिलना बताया जाता है. इसके बाद पूनिया और सिंह द्वारा यात्रा के बारे में कई गलतियां की गईं, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई. बताया जाता है कि प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस यात्रा से गायब थीं.

परिवर्तन यात्रा को नहीं मिला जनता का साथ ?

हाल की घटना का जिक्र करें तो, बीजेपी की हाल ही में संपन्न हुई परिवर्तन यात्राओं को वह प्रतिक्रिया जनता से नहीं मिली जिसकी पार्टी उम्मीद कर रही थी. जोधपुर, फ़तेहपुर, मेड़ता, दौसा, धौलपुर आदि कई जगहों से खाली कुर्सियों की तस्वीरें आईं जिसने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. कहा जा रहा है कि आम तौर पर, टिकट के इच्छुक उम्मीदवार अपनी ताकत दिखाने के लिए आयोजनों में कतार में लगे होंगे. हालांकि वसुंधरा राजे ने चार जगह से यात्रा के शुरू होने वाले कार्यक्रम में भाग लिया था, लेकिन उसके बाद उन्होंने इससे दूरी बना ली थी.

Also Read: Rajasthan: मंच पर जेपी नड्डा के सामने मुस्कुराते नजर आये शेखावत-वसुंधरा राजे, क्या हैं इसके सियासी मायने

वसुंधरा राजे के करीबी लोगों का मामले को लेकर बयान आ रहा है. उनके समर्थक इस बात से इनकार कर रहे हैं कि वह जानबूझकर बीजेपी के कार्यक्रमों से बच रही हैं. पार्टी के एक नेता की मानें तो, यदि प्रदेश का नेतृत्व उन्हें किसी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं करेगा तो वह इसमें क्यों शामिल होंगी? एक अन्य नेता ने कहा कि यदि हमारी नेता को पूछा नहीं जाएगा तो वह क्यों आएंगी. यदि वह प्रचार नहीं करती हैं, तो इससे अंततः पार्टी का नुकसान है, जैसा कि जन आक्रोश यात्राओं या उपचुनाव परिणामों में साफ नजर आया.

Undefined
Rajasthan election 2023: वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करके क्या राजस्थान में बीजेपी जीत सकती है विधानसभा चुनाव? 4

घोषणापत्र और चुनाव प्रबंधन समितियों में जगह नहीं

वसुंधरा राजे को पहले बीजेपी के घोषणापत्र और चुनाव प्रबंधन समितियों में जगह नहीं दी गई. पार्टी की ओर से यह कहा गया कि पैनल में इसलिए जगह नहीं दी गई क्योंकि ये राजे के स्टेटस के अनुरूप नहीं था. आपको बता दें कि राजे का मोदी-शाह नेतृत्व के साथ कभी भी बहुत मधुर संबंध नहीं देखने को मिला और सीएम के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान संघ के साथ उनकी अनबन हुई थी. पिछले कुछ समय से ऐसा देखने को मिला कि बीजेपी ने वसुंधरा राजे के वफादारों रोहिताश शर्मा और देवी सिंह भाटी को पार्टी से निष्कासित कर दिया है और हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को निलंबित कर दिया. पार्टी में ऊपर से नीचे तक विभाजन का दावा करते हुए मेघवाल कहते हैं कि वसुंधराजी के समर्थकों को या तो अलग कर दिया गया, हटा दिया गया…या उन्हें कम कर दिया गया…

Also Read: राजस्थान : आखिर वसुंधरा राजे को क्यों भाव नहीं दे रही बीजेपी ? चुनाव प्रबंधन व घोषणा पत्र समिति में नाम नहीं

इस बीच, बीजेपी अब जरा संभलकर राजस्थान में चल रही है. बीजेपी नहीं चाहती है कि राजे को हाशिए पर धकेल दिया जाए. यही वजह है कि कभी-कभी पार्टी की ओर से संकेत दिये जाते रहे हैं कि चीजें ठीक हो सकती है. जैसे- वसुंधरा राजे के आलोचक गुलाब चंद कटारिया को राजस्थान से बाहर ले जाया गया और असम का राज्यपाल बना दिया गया. ऐसे ही राजे विरोधी खेमे के एक अन्य नेता सतीश पूनिया की जगह सीपी जोशी को प्रदेश बीजेपी का प्रमुख बनाया गया. कर्नाटक नतीजों के बाद अजमेर रैली में मोदी के साथ राजे की करीबी भी इस बात का संदेश देने का प्रयास था कि चीजें संभल सकती है.

2018 के चुनाव के बाद बनी थी कांग्रेस की सरकार

गौर हो कि 2018 में 200 सदस्यीय सदन में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी 73 सीट पर सिमट गयी थी. अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने निर्दलीय और बसपा के समर्थन से सरकार बनाई थी और सूबे की कमान अशोक गहलोत के हाथों में दी गयी थी. सरकार ने अपने पांच साल पूरे कर रही है.

Also Read: Rajasthan Election: राजस्थान में भी बीजेपी चौंका देगी सबको? जानें उम्मीदवारों के चयन पर क्या बोले प्रहलाद जोशी

क्या है राजस्थान का ट्रेंड

पिछले छह विधानसभा चुनाव का इतिहास को उठाकर देख लें तो राजस्थान का ट्रेंड समझ में आ जाता है. जनता हर साल सरकार बदल देती है.

1. अशोक गहलोत (कांग्रेस)-17 दिसंबर 2018 से अबक

2. वसुंधरा राजे सिंधिया(बीजेपी)-13 दिसंबर 2013 से 16 दिसंबर 2018

3. अशोक गहलोत (कांग्रेस)-12 दिसंबर 2008 से 13 दिसंबर 2013

4. वसुंधरा राजे सिंधिया (बीजेपी)-08 दिसंबर 2003 से 11 दिसंबर 2008

5. अशोक गहलोत(कांग्रेस)-01 दिसंबर 1998 से 08 दिसंबर 2003

6. भैरों सिंह शेखावत(बीजेपी)-04 दिसंबर 1993 से 29 नवंबर 1998

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें