जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन पूरे दिन उपवास रखकर जीमूतवाहन की पूजा करती है और पुत्र की लंबी आयु के लिए कामना करती है .
देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत के नाम से जाना जाता है. व्रत के एक दिन पहले नहाय खाए का विधान होता है.
जिस दिन नहाय खाए होता है जो भी स्त्री इस व्रत को रखती है़ एक दिन पहले से पकवान बनाती है़ सेंधा नमक से और बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्धता से बना कर खाती है़.
व्रत कथा के अनुसार उदयातिथि की अष्टमी को व्रत करे शुद्ध अष्टमी को व्रत करे और नवमी में पारण करें. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें.
जिवितपुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.
दूसरी कथा चील-सियार की कथा है जिसमें जिउतिया के पूजा की कथा सुनने से किस तरह अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. फिर से जिवितपुत्रिका व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.
इस साल व्रत का उपवास 6 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 7 अक्टूबर दिन शनिवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण गाय के दूध से ही करे तथा सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.
जितिया व्रत में नहाय खाए के दिन मडुआ की रोटी गेहूं के आटे की दूध-पिट्ठी, देसी मटर करी, झिंगली-तोरी की सब्जी, अरबी की सब्जी, नोनी साग, पोई साग के पकौड़े, काशीफल की सब्जी, खीरे का रायता और न जाने कितने व्यंजन खाये और खिलाये जाते हैं.
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