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PHOTOS: गया की प्रेतशिला जहां प्रेतों का रहता है डेरा, पत्थर से निकली आत्मा और पिंड लेकर हो गयी वापस..

गया में पितृपक्ष मेले के दौरान तीर्थयात्री प्रेतशिला पहुंचे और अपने पूर्वजों को पिंड दिया. कहा जाता है कि यहां प्रेतों का डेरा रहता है. वो पिंड लेने के लिए पत्थर से बाहर निकलते हैं और पिंड लेकर फिर चले जाते हैं. देखिए खास तस्वीरें...

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गया में पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन शनिवार को तीर्थयात्रियों ने प्रेतशिला, रामशिला व कागबली वेदियों व ब्रह्म सरोवर में पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण किया. वायु पुराण व अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए यहां कर्मकांड किया जाता है. इस विधान के तहत देश के विभिन्न राज्यों से आये डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पिंडदान का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में किया.

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पहासवर से प्रेतशिला तक करीब छह किलोमीटर की दूरी तय करने में वाहनों को दो से पांच घंटे तक का समय लग रहा था. पौराणिक व धार्मिक मान्यता है कि कि प्रेतशिला पर्वत पर पितर पिंडदान ग्रहण करने के लिए आने से इसे आत्माओं का पहाड़ भी कहा जाता है. इस पहाड़ पर आज भी भूत व प्रेत का वास रहता है. प्रेतशिला पहाड़ पर जाने के लिए 676 सीढ़ियां बनी हुई हैं.

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धामी पंडा के अनुसार जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनके यहां सूतक लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है. उसका सेवन पिंडदान करने के बाद ही किया जाता है. प्रेतशिला वेदी पर आकर तिल मिश्रित सत्तू उड़ाते व प्रेत आत्माओं से आशीर्वाद व मंगलकामनाएं मांगते हैं.

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इस पर्वत के शिखर पर प्रेतशिला वेदी है. कहा जाता है कि अकाल मृत्यु पर प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध व पिंडदान करने का विशेष महत्व है. इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं. इससे पितरों को कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है.

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इस पर्वत पर धर्मशिला है जिस पर पिंडदानी ब्रह्मा जी के पद चिह्न पर पिंडदान करके धर्मशिला पर तिल मिश्रित सत्तू उड़ाकर कहते है- ‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाने की मान्यता रही है.

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भीड़ अधिक रहने से काफी श्रद्धालुओं ने प्रेतशिला क्षेत्र के बाहर स्थित खेतों व मैदानों में बैठकर कर्मकांड पूरा किया. दूसरी तरफ तीर्थयात्रियों की इस भीड़ से प्रेतशिला से लेकर पहासवर मोड़ तक ट्रैफिक व्यवस्था घंटों प्रभावित रही.

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प्रेतशिला पर्वत की जमीनी सतह पर ब्रह्मकुंड यानी ब्रह्म सरोवर स्थित है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार ब्रह्मा जी द्वारा किया गया था. यहां तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को ब्रह्म लोक की प्राप्ति की मान्यता है. रामशिला, राम कुंड में पिंडदान व श्राद्धकर्म से पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. जबकि कागबली वेदी स्थल पर पिंडदान से पितरों को प्रेत बाधा से छुटकारा मिलने की मान्यता है.

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इस धर्मशिला में एक दरार है जिसमें सत्तू का कण जरूर जाना चाहिए. मान्यता है कि यह दरार यमलोक तक जाता है. इस चट्टान के चारों तरफ परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मरे पूर्वजों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है. यहां भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोग की तस्वीर विष्णु चरण में रखकर उनके मोक्ष की कामना करते हैं.

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पिंडदान के कर्मकांड से जुड़े लोगों ने बताया कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा रहता है. मध्य रात में यहां प्रेत आते हैं. इसके कारण इस क्षेत्र में शाम ढलने के बाद लोगों की आवाजाही काफी कम हो जाती है.

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प्रेतशिला के पास स्थित पत्थरों में छिद्र व दरारें हैं. इसके बारे में कहा जाता प्रेत आत्माएं इनसे होकर आती हैं व परिजनों द्वारा किये गये पिंडदान को ग्रहण कर वापस चली जाती हैं. किदवंती है कि है कि लोग जब यहां पिंडदान करने पहुंचते हैं तो उनके पूर्वजों की आत्माएं भी उनके साथ चली आती हैं.

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