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जीवित्पुत्रिका व्रत 06 अक्तूबर 2023 को या 07अक्तूबर 2023 कब किया जाये इसमें असमंजस है
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यहां जानें क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि
Jitiya Vrat 2023: जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर बहुत ही लोग असमंजस में बना हुआ है यह त्योहार कब किया जाये 06 अक्तूबर 2023 को या 07अक्तूबर 2023 को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाये.यह व्रत महिलायें के लिए बहुत ही कष्टकारी तथा बहुत कठिन व्रत है. इस दिन महिलाये निर्जला व्रत रहती है. यानि पूरे दिन उपवास रहकर जीमूतवाहन महराज का पूजन करती है और अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिए कामना करती है. भविष्य पुराण के अनुसार तथा राजा मार्तंड के अनुसार तिथी पर विचार करने के बाद निर्णय लिया गाया है कि यह व्रत 07 अक्तूबर को मनाया जायेगा. आपको बता दें यूपी, बिहार और झारखंड में इस पर्व को लेकर संशय बना है इसलिए ये पर्व कहीं पर 6 अक्टूबर तो कहीं 7 अक्टूबर मनाने की बात सामने आ रही है.
कब किया जाये जीवित्पुत्रिका व्रत
यह व्रत तीन दिन तक चलने वाला व्रत है इस व्रत के कथा अनुसार मान्य यह है यह व्रत सप्तमी विद अष्टमी को यह व्रत नहीं करे जिस दिन अष्टमी हो उस दिन अगर व्रत किया जाये उसका फल विशेष मिलता है .
तिथि के अनुसार निर्णय
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा के अनुसार इस व्रत को सप्तमी विद अष्टमी को व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी में व्रत करे,शुद्ध अष्टमी कैसे माने जिस तिथि में सूर्योदय हो उस तिथि को पूरा दिन माना जाता है.
07 अक्तूबर 2023 दिन शनिवार को सूर्योदय 05:44 मिनट पर हो रहा है और अष्टमी तिथि की समाप्ति सुबह में 08 :08 मिनट पर हो रहा है. उसके बाद नवमी तिथी लग जायेगी. नवमी तिथी का आरंभ 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को सुबह 08:08 से अगले दिन 08 अक्टूबर 2023 दिन रविवार सुबह 10:12 मिनट तक. भ्रांति कहा से बन रहा है. जो महिलायें आश्विन कृष्णपक्ष के दुर्गा अष्टमी व्रत करती है उनको सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत करना पड़ता है और दुर्गा अष्टमी का त्योहार 06 अक्तूबर 2023 को किया जायेगा क्योकि अष्टमी तिथि का पूजन प्रदोष काल में किया जाता है.
व्रत कैसे करें
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें.
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जिवितपुत्रिका व्रत का कथा
जिवितपुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली.अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.
दूसरी कथा यह है
चील-सियार की कथा- मिथिलांचन सहित कई इलाकों में प्रचलित इस कथा के अनुसार एक समय एक वन में के पेड़ पर एक चील रहती थी. पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी. दोनों में खूब दोस्ती थी. चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन के लिए जरूर हिस्सा रखती. सियारिन भी चिल्हो का ऐसा ही ध्यान रखती. एक बार की बात है. वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी. चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी सखी सियारिन को बताई. दोनों ने इसके बाद जिवितपुत्रिका का व्रत रखा. दोनों दिनभर भूखे-प्यासे रहे मंगल कामना करते हुए व्रत किया लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी.सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जंगल में जाकर उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया.
चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में पूछा. सियारिन ने सारी बात बता दी. चिल्हो ने इस पर सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता था तो संकल्प क्यों लिया था! सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने भूखे-प्यासे रहकर व्रत पूरा किया. कथा के अनुसार अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई. वहीं, चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्रीपुत्र से हुई. बाद में दोनों राजा और मंत्री बने. सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते. इससे उसे जलन होती. ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी बार बार उसने अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी. बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा मांगी. बहन के बताने पर उसने फिर से जिवितपुत्रिका व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.
जिवितपुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त व पारण का समय
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अष्टमी तिथि प्रारंभ- 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार सुबह 6 बजकर 34 मिनट से
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अष्टमी तिथि समाप्त- 07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार की सुबह 08 बजकर 08 मिनट तक
व्रत का उपवास शानिवार को रखा जाएगा
जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 08 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण गाय के दूध से ही करे तथा सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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