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उच्चैठ काली मंदिर पर 26 साल बाद आया कोर्ट का फैसला, बिहार धार्मिक न्यास परिषद को मिला देखरेख का अधिकार

मंदिर के पंडित देव कुमार गिरि का दावा था कि मंदिर वाली जमीन पूर्वजों को दान में मिली है. इसका सर्वे खतियान भी है. जमीन हमारा है इसलिए मंदिर पर अधिकार मेरा है. वहीं दूसरी ओर बिहार हिंदू न्यायिक धार्मिक परिषद का कहना था कि मंदिर पब्लिक ट्रस्ट का है.

मधुबनी. जिले के बेनीपट्टी प्रखंड क्षेत्र के उच्चैठ स्थित प्रसिद्ध भगवती मंदिर की देखरेख, आय व्यय सहित अन्य व्यवस्था का अधिकार धार्मिक न्याय परिषद को दिया गया है. यह अधिकार अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम सह विशेष न्यायाधीश अनिल कुमार मिश्रा ने मंदिर के पंडा द्वारा मालिकाना हक के लिए दायर की गई विविध वाद की सुनवाई के बाद पंडा के दावे को खारिज करते हुए धार्मिक न्यास परिषद के पक्ष में फैसला सुनाया. मिली जानकारी के अनुसार मंदिर के पंडित देव कुमार गिरि का दावा था कि मंदिर वाली जमीन पूर्वजों को दान में मिली है. इसका सर्वे खतियान भी है. जमीन हमारा है इसलिए मंदिर पर अधिकार मेरा है. वहीं दूसरी ओर बिहार हिंदू न्यायिक धार्मिक परिषद का कहना था कि मंदिर पब्लिक ट्रस्ट का है.

पंडा को दिया गया था नोटिस

धार्मिक न्यास परिषद मंदिर व जमीन को पब्लिक ट्रस्ट का मानते हुए 7 नवंबर 1994 को तत्कालीन पंडा को नोटिस देकर मंदिर का हिसाब-किताब देने को कहा था. साथ ही परिषद ने मंदिर संचालन की योजना तैयार कर दी थी. लेकिन तत्कालीन पंडा ने परिषद के आदेश को उच्च न्यायालय पटना में चुनौती दी थी.

उच्च न्यायालय पुनः सुनवाई का दिया था आदेश

धार्मिक न्यास परिषद के आदेश को उच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुए फिर दुबारा सुनवाई करने का निर्देश दिया. धार्मिक न्याय परिषद ने दोनों पक्षों को पुनः सुनकर मंदिर संचालन के लिए पुनः योजना बनाकर दिया. फिर योजना से असहमति जताते हुए पुनः तत्कालीन पंडा उच्च न्यायालय चले गए. बाद में पंडा ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका वापस लेकर 1 मार्च 1997 को जिला एवं सत्र न्यायालय में विविध वाद दायर किया. जिसे तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने प्रथम एडीजे के न्यायालय में सुनवाई के लिए भेज दिया.

26 वर्ष बाद आया फैसला

मामले को लेकर न्यायालय में 26 वर्ष तक सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद न्यायालय ने पंडा द्वारा दायर विविध वाद को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि धार्मिक न्यास परिषद का मंदिर संचालन की योजना सही है. साथ ही न्यायालय ने धार्मिक न्यास परिषद को मंदिर की देखरेख, आय-व्यय सहित सभी व्यवस्था का अधिकार दे दिया.

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महाकवि कालीदास से जुड़ी है उच्चैठ भगवती

उच्चैठ भगवती मंदिर का इतिहास महाकवि कालीदास से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि भगवती मंदिर थुम्हानी नदी के किनारे थी. वहीं नदी के दूसरी ओर गुरुकुल था. जहां कालिदास सेवक के रूप काम करते थे. गुरुकुल के छात्र उन्हें कलिया के नाम से पुकारा करते थे. गुरुकुल के छात्र प्रतिदिन शाम में मंदिर में दीपक जलाते थे. एक बार बरसात के समय नदी लबालब भरा हुआ था. गुरुकुल के छात्रों ने कालिदास को दीपक जलाने मंदिर भेजा. जहां भगवती ने उन्हें दर्शन दिया और विद्वान होने का वरदान दिया. इसके बाद महामूर्ख कलिया महाकवि कालिदास के रूप में प्रसिद्ध हुए.

लाखों श्रद्धालु आते हैं मंदिर, करोड़ में है आमदनी

कहा जाता है कि कालीदास के प्रकरण के वाद क्षेत्र में भगवती मंदिर की खूब चर्चा होने लगी. आलम यह है कि अभी नेपाल सहित अन्य दूर दराज जगहों से लाखों श्रद्वालु उच्चैठ भगवती को दर्शन करते हैं. एक दिन की आमदनी लाखों रुपये है. वहीं दुर्गा पूजा में आमदनी करोड़ में होने की बात कही जा रही है.

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