बरेली : बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक काशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हुआ था. 9 अक्टूबर यानी आज उनकी जयंती है. उनकी जयंती को बसपा के साथ ही सपा ने भी मनाने का फैसला लिया है. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी दलों की निगाह दलित वोट पर लगी है, जो काशीराम की जयंती के बहाने सेंधमारी की कोशिश में हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव 2022 में दलित मतदाताओं के सहारे यूपी की सत्ता हासिल करने की बात कह चुके हैं. बोले, चूक हुई थी. दलित मतदाताओं को जोड़ा होता, तो सत्ता में आते. मगर, उन्होंने दलितों पर काम शुरू कर दिया. जिसके चलते काशीराम की जयंती पर सपा यूपी के सभी प्रदेश कार्यालयों पर कार्यक्रम आयोजन कर रही है.
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उनकी जिंदगी पर रोशनी डाली जाएगी. इसके साथ ही कांग्रेस ने सोमवार से दलित संवाद कार्यक्रम का आगाज किया है. काशीराम दलित समाज में चमार (जाटव) जाति के थे. उनके परिवार ने जन्म के बाद धर्म परिवर्तन कर लिया. इसलिए उन्हें सामाजिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा. उनके ऊपर ‘बहनजी’ नाम की किताब लिखने वाले अजय बोस लिखते हैं, “सिख समाज में धर्म परिवर्तन करके शामिल हुए दलितों की वह हैसियत, तो नहीं होती जो ऊंची जातियों की होती है. मगर, उन्हें हिन्दू समाज के दलितों की तरह लगातार अपमान और दमन का सामना नहीं करना पड़ता था.
1956 में कांशीराम ग्रेजुएट हो गए. उसी साल आरक्षित कोटे से केंद्रीय सरकार में नौकरी लग गई. 1958 में उनकी नौकरी पुणे के पास स्थित किरकी के डीआरडीओ में लगी. यहां वह गोला-बारूद फैक्ट्री की लेबोरेट्री में असिस्टेंट के पद पर थे. यहां उनके साथ जातीय स्तर पर भेदभाव शुरू हो गया. कांशीराम यह बर्दाश्त नहीं कर सके और 1964 में नौकरी छोड़ दी. पुणे के बाकी इलाको में गए, और देखा कि दलित जातियों का आर्थिक शोषण और सामाजिक दमन किया जा रहा है.
कांशीराम और उनके साथियों ने दलित समाज के अहवाह्नन को कई नारे दिए थे, जो अब तक चल रहे हैं. काशीराम ने ही एक नारा दिया था. वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा नहीं चलेगा. इसके साथ ही जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी का नारा भी उन्होंने ही दिया था.
कांशीराम देशभर के दलितों को एकजुट करना चाहते थे. युवाओं पर उनकी खास नजर थी.14 अप्रैल 1973 को ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉईज फेडरेशन का गठन किया. इसे शॉर्ट में बामसेफ कहा गया.1981 के अंत में इस संगठन को नया किया और नाम दिया दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी DS-4, जिस दिन गठन हुआ उस दिन नारा दिया, “ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़, बाकी सब हैं DS-4”.यह खासतौर से सवर्ण जातियों के खिलाफ बनाई गई थी.
उन्होंने1983 में सौ नेताओं के साथ दिल्ली के आसपास के 7 जिलों में लगातार 40 दिन तक साईकिल के जरिए यात्रा की. इन यात्राओं के दौरान उन्होंने गांव में दलितों के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव को देखा. मन व्यथित हुआ तो नारा दिया, तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार. यह नारा एक तरह से दलितों के लिए आह्वान था. ऊंची जाति के लोग हक्के-बक्के रह गए.
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कांग्रेस बसपा संस्थापक को याद करते हुए दलित गौरव संवाद कार्यक्रम शुरू कर रही है. यह आयोजन यूपी के 18 मंडल मुख्यालयों पर होंगे. पार्टी ने तय किया है कि 26 नवंबर यानी संविधान दिवस तक कांग्रेस पदाधिकारी और कार्यकर्ता दलित बस्तियों में रात्रि चौपाल भी करेंगे. इस दौरान एक लाख दलित अधिकार पत्र भरवाने का भी लक्ष्य है. उल्लेखनीय है कि इसके माध्यम से कांग्रेस अपने उस पुराने दलित वोट बैंक को फिर अपने करीब लाना चाहती है, जो बसपा के उभार से पहले कांग्रेस की ही मजबूत मुट्ठी में रहा.
दलित नेता, और बसपा संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर जिस तरह से राजनीतिक दलों की तैयारी दिख रही है. इससे साफ है कि यह तैयारी 2024 की है. लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन के जातिवार गणना के दांव से और उफान पर आई जाति की राजनीति में सभी दलों की नजर बसपा के ‘दलितों’ पर भी लगी हुई है. यूपी में दलितों की आबादी लगभग 22 प्रतिशत है.
दलितों को रिझाने के लिए ही कांग्रेस कांशीराम की जयंती से दलित गौरव संवाद कार्यक्रम शुरू करने जा रही है. यूपी में सबसे अधिक करीब 50 प्रतिशत आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की भी है. हालांकि,इस वोट बैंक में भारी सेंध 2014 के लोकसभा चुनाव से भाजपा ने लगाई है. इसका परिणाम 2014 के बाद के चुनावों में भी देखने को मिला. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 17 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.2019 में इनमें से 15 सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी.
रिपोर्ट-मुहम्मद साजिद, बरेली
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