रांची: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिन 11 अक्तूबर को है. इनकी फिल्मों का लोगों के बीच एक अलग ही क्रेज हुआ करता था, जो आज बरकरार भी है. इनके सामने कोई भी हीरो टीक नहीं पाये. यह कहना है हमारी रांची के पुराने सिनेमा हॉल से जुड़े कर्मियों का. कर्मी बताते हैं कि पहले अमिताभ बच्चन की फिल्मों के लिए मार तक हो जाती थी. फिल्म लगने के पहले थाने को खबर करनी पड़ती थी. अमिताभ का क्रेज ही अलग हुआ करता था. उनके जमाने में कोई और हीरो नहीं टिक पाया. 70 से लेकर 90 के दशक में केवल अमिताभ का बाजार था. लोगों में अमिताभ की फिल्मों का फर्स्ट शो देखने का बहुत क्रेज था. लोग सबसे पहले उनका पहला शो देखना चाहते थे. टिकट मिलने पर ऐसी खुशी होती थी, जैसे उन्हें कुछ बहुत बड़ी चीज मिल गयी हो.
70-90 के दशक में सिर्फ अमिताभ चले
सुजाता सिनेमा के ऑपरेटर दुर्गा वर्मा सुजाता सिनेमा में पिछले 34 सालों से अपनी सेवा दे रहे हैं. अमिताभ बच्चन की फिल्मों के स्क्रीनिंग के गवाह रहे हैं. वह अपने संस्मरण में बताते हैं कि सुजाता सिनेमा 1974 में खुला. फिल्में तो चलती ही थीं, लेकिन जब से थियेटर में अमिताभ बच्चन की फिल्में आने लगी, लोगों का फिल्मों के प्रति क्रेज और बढ़ गया. इनकी फिल्मों के आगे कोई फिल्म नहीं चलती थी. वह दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय थे. इनकी फिल्मों में भीड़ ऐसी होती थी कि हमें थाना को पहले खबर देनी होती थी. तब भीड़ को कंट्रोल करने के लिए 60-70 स्टाफ को लगना पड़ता था. तब सुजाता में 70 स्टाफ काम करते थे. तब ब्लैक में टिकट मिलना आम बात होती थी. इनकी फिल्में देखने के लिए हर कोई सिनेमा हॉल पहुंच जाता था. अमिताभ का क्रेज ही अलग हुआ करता था. उनके जमाने में कोई और हीरो नहीं टिक पाया. 70 से लेकर 90 के दशक में केवल अमिताभ का बाजार था.
लोग घर तक टिकट लेने के लिए पहुंच जाते
प्लाजा सिनेमा के मैनेजर दीपक कुमार चौधरी कहते हैं कि प्लाजा सिनेमा 1970 – 72 में खुला. तब अमिताभ बच्चन का भी दौर आया. जब भी प्लाजा में अमिताभ की फिल्म लगती थी, तो सड़क तक लंबी लाइनें लगी होती थीं. टिकट काउंटर दस बजे खुलता था, तो लोग सुबह आठ बजे से ही लाइन लगाने लगते थे. उनकी फिल्मों की टिकट ब्लैक में तो बिकती ही थी, आलम यह था कि लोग एक दिन पहले टिकट चेकर के घर पर टिकट लेने पहुंच जाते थे. लोगों में अमिताभ की फिल्मों का फर्स्ट शो देखने का बहुत क्रेज था. लोग सबसे पहले उनका पहला शो देखना चाहते थे. टिकट मिलने पर ऐसी खुशी होती थी, जैसे उन्हें कुछ बहुत बड़ी चीज मिल गयी हो. प्लाजा सिनेमा का आरंभ से हीं मैनेजर रहा हूं, तो लोग मेरे घर का पता करके मेरे घर तक टिकट लेने के लिए पहुंच जाते थे.