Caste Survey Bihar: बिहार में जातीय सर्वे के आंकड़ों को जारी कर दिया गया है. बीते 2 अक्टूबर को राज्य सरकार ने इस आंकड़े को जारी किया तो सभी जातियों की भागिदारी सामने आयी है. इस आंकड़े में बताया गया है कि किस जाति में कितने लोग हैं. वहीं जातीय सर्वे के आंकड़े जारी करने के बाद से ही प्रदेश में सियासी घमासान शुरू हो गया जो लगातार जारी ही है. सत्ताधारी गठबंधन और विपक्ष आमने-सामने है. सत्ताधारी पार्टी एक तरफ जहां विपक्षी दलों की नीयत पर सवाल खड़े करके उन्हें घेर रही है तो दूसरी ओर भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस आंकड़े की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं. एनडीए जातीय सर्वे के इस आंकड़े में त्रुटियां गिना रहा है. सत्ताधारी दल पर चुनावी लाभ के लिए पक्षपात करने और गलत आंकड़े पेश करने का आरोप लग रहा है. वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी दल की ओर से साफ किया गया है कि तमाम आरोप निराधार हैं और भाजपा इस आंकड़े से घबरायी हुई है. इसलिए विरोध किया जा रहा है. इस तमाम उठापठक के बीच बिहार के प्रधान सचिव की ओर से भी जातीय सर्वे के आंकड़े को लेकर बड़ा दावा सामने आया है. एक्सपर्ट से भी जानिए इस आंकड़े के बारे में…
बिहार सरकार द्वारा जारी जाति गणना 2022 की रिपोर्ट को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों की ओर से इसकी समीक्षा की मांग की जा रही है. इसको लेकर राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अभी इस रिपोर्ट की समीक्षा की जरूरत नहीं है. मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने इसे लेकर कहा कि सरकार की ओर से जारी की गयी जाति आधारित गणना रिपोर्ट, 2022 की किसी स्तर पर समीक्षा की कोई जरूरत महसूस नहीं की जा रही है. यह अपने तरह का पहला सर्वे है जिसको वैज्ञानिक तरीके से किया गया है. ऐसे में इसकी समीक्षा की आवश्यकता नहीं है. बता दें कि राज्य सरकार द्वारा सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद से ही इसको लेकर विभिन्न दलों के नेता और जातीय संगठन की ओर से आपत्ति जतायी जा रही है. प्रदेश के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा है कि भाजपा के लोग जनता को गुमराह करने के लिए जाति गणना पर भ्रामक बातें कह रहे हैं.
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इधर, बिहार में जाति गणना के आंकड़ों पर जारी दावे- प्रतिदावे के बीच आखिर इसके आंकड़ों को कैसे देखा जाये, इस सवाल पर अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान में अर्थशास्त्र के सहायक प्राध्यापक डॉ विप्लब ढक कहते हैं, बिहार सरकार का दावा है कि वर्तमान जातीय जनगणना में भारतीय जनगणना के चार्ज रजिस्टर के की वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल किया गया है. अगर इस पद्धति का सख्ती से पालन किया गया है, तब हमारे पास इस प्रक्रिया पर सवाल उठाने का कोई ठोस आधार नहीं है. किसी भी सर्वेक्षण में मानवीय भूल का अंदेशा हमेशा रहता है और इसे हम सर्वेक्षण में मानकर चलते हैं.
डॉ ढक कहते हैं कि जातिगत गणना का सबसे पहला आधिकारिक आंकड़ा हमारे पास 1931 का है और आज का अनुमान उसी पर आधारित है. ऐसे में अनुमान की तुलना जनगणना के आंकड़े से नहीं की जा सकती. तो क्या इथनोग्राफी के आंकड़ों के आधार पर वर्तमान जनसंख्या का आंकलन किया जा सकता है? इस पर एएन सिन्हा संस्थान में ही सोशल एंथ्रोपोलॉजी के सहायक प्राध्यापक डॉ राजीव कमल कुमार कहते हैं कि इथनोग्राफिक अध्ययन में हम मूल रूप से जातियों की गहराई से अध्ययन करते हैं. उसमें हमारा मूल उद्देश्य उनके प्रथागत संस्कृति का अध्ययन करना होता है. इसमें हम उनकी सामाजिक जीवन की जड़ें और उनका सामाजिक उदभव समझने की कोशिश करते हैं. आम तौर पर इथनोग्राफी अध्ययन में जनसंख्या संबंधी आंकड़ों का आधार द्वितियक स्रोत होते हैं और यह अनुमानित होता है. इसके आधार पर हम जनसंख्या का आकलन नहीं कर सकते. इथनोग्राफी अध्ययन का लक्ष्य संख्या पता करना नहीं बल्कि उनके जीवन-पद्धति और संस्कृति का अध्ययन होता है.
डॉ ढक कहते हैं कि कुछ लोग इथनोग्राफी के आंकड़ों की तुलना जाति गणना के आंकड़ों से कर रहे हैं. संस्थान के पुस्तकालय में पड़ी इथनोग्राफी की रिपोर्ट की अध्ययन पद्धति बताती है कि उस अध्ययन में जाति की जनसंख्या का आधार अनुमानित है और इसका आधार नमूना सर्वेक्षण और उन जातियों के नेताओं और प्रबुद्ध लागों का साक्षात्कार है. इथनोग्राफी आंकड़ों में वर्णित अनुमानित जनसंख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कि वर्तमान जाति गणना में उक्त जातियों की जनसंख्या में कमी आयी है यह बिल्कुल प्रासांगिक नहीं है.