बर्दवान/पानागढ़, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के कालना थाना इलाके के बडधमास गांव में विगत पांच सौ वर्षो से अपने प्राचीन पारंपरिक रूप में दो भुजाओं के साथ मां दुर्गा की पूजा बेने मां के रूप में निरंतर जारी है. एक समय था जब उस गांव में कोई दुर्गापूजा नहीं होता था. लेकिन पांच सौ वर्ष पहले गांव के एक सिद्ध पंडित गिरीस चंद्र हालदार ने स्वप्न के बाद दस भुजाओं वाली नहीं बल्कि दो भुजाओं वाली मां दुर्गा की पूजा मां बेने मां के रूप में शुरू किया था. 100 वर्षों से लगातार दो भुजा वाली मां दुर्गा की प्रतिमा तथा उनके साथ भगवान गणेश लक्ष्मी और सरस्वती के साथ सीमा की मां दुर्गा की सवारी सिर की जगह नंदी गाय पर ही मां दुर्गा महादेव शिव के साथ विराजमान होती है.
यहां एक ही चाला खाचे में सभी प्रतिमाएं मौजूद रहती है.भगवान गणेश अथवा अन्य देवी देवताओं का भी केवल दो ही भुजा मौजूद रहता है. यहां मां दुर्गा को बेने मां के रूप में ही पूजा जाता है. ग्रामीणों का कहना है की सप्तमी के बाद दशमी तक गन्ना,केला,नींबू, खीरा,कुम्हड़ा आदि फल और सब्जी को मिलाकर नौ बली की प्रथा भी है. यह प्रथा पुराने रीति रिवाज के साथ आज भी जारी है. ग्रामीणों का कहना है की नवमी के दिन गांव का कोई भी व्यक्ति, महिला, बच्चे पूजा छोड़कर गांव से बाहर नहीं जाते हैं .इससे पहले कई बार नवमी के दिन पूजा छोड़कर गांव से बाहर गए लोगों के साथ कुछ न कुछ अपघटन की घटना घटी है. इसलिए आज भी नवमी को ग्रामीण गांव के बाहर नहीं जाते है.
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बताया जाता है की बेने परिवार के द्वारा इस दुर्गा पूजा को किए जाने के कारण ही समूचे आसपास के इलाके में यहां आयोजित मां दुर्गा की पूजा अब बेने मां की पूजा के रूप में ही प्रचलित हो गई है. बेने परिवार के लोग अब अन्य प्रांत हरियाणा में रहते है लेकिन आज भी दुर्गापूजा के समय इस परिवार के लोग गांव पहुंच जाते है. दुर्गा पूजा के खर्च का वहन आज भी इस परिवार का ही ज्यादा रहता है. दुर्गापूजा को लेकर तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई है प्रतिमा बनाने का काम भी शुरू हो गया है. गांव के लोगों में उत्साह देखा जा रहा है.
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