पटना. बिहार में अब सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी आयेगी. बिहार सरकार ने इस संबंध में कई नीतिगत फैसले लेने का काम किया है. केंद्र और राज्य के बीच संबंधों में खटास आने के कारण कई बार केंद्रांश मिलने में देरी होती है. ऐसे में कई योजनाएं पूरी नहीं हो पाती हैं. बिहार सरकार पहले केंद्रांश नहीं मिलने के कारण योजनाओं को पूरा नहीं करती थी, ऐसे में पैसे लौट जाने के मामले बढ़ जाते थे. अब बिहार सरकार केंद्र से राशि मिलने के इंतजार में बैठी नहीं रहेगी, बल्कि राज्य व केंद्र संपोषित शैक्षणिक योजनाओं को समय से पूरा कराने को प्राथमिकता देगी. सचिवालय सूत्रों की माने तो सरकार ने इसके लिए राज्य योजना निधि से पैसे का प्रबंध सुनिश्चित किया है. इसके मद्देनजर राज्य सरकार ने शिक्षा पर खर्च की जटिलता को कम करने के लिए प्रक्रिया भी बदल दी है. सरकार के इस फैसले से तत्काल राज्य को दो लाभ होंगे. पहला लाभ तो यह होगा कि खर्च के लिए केंद्रांश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी, अधिकारी राज्य योजना निधि से पैसे निकाल कर योजनाओं को पूरा कर लेंगे. दूसरा लाभ यह होगा कि खर्च की जटिल प्रक्रिया के चलते बड़ी मात्रा में राशि सरेंडर करने की नौबत आ जाती थी, जटिलता को खत्म करने के कारण अब राशि लौटाने जैसी नौबत नहीं आयेगी.
पिछले तीन वर्षों में 3,605 करोड़ रुपये सरेंडर
शिक्षा विभाग में सबसे अधिक राशि खर्च होती है और यहां राशि खर्च करने में प्रक्रियागत जटिलता भी बहुत है. ऐसे में इस विभाग की कई योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं. इसके कारण हर वर्ष राशि लौटाने की नौबत आ जाती है. पिछले तीन वर्षों में ही करीब 3,605 करोड़ रुपये सरेंडर करने पड़े हैं. शिक्षा विभाग के योजना अधिकारी की माने तो बिहार में शिक्षा बजट की 15 प्रतिशत राशि ही केंद्र से मिलती है. शेष 85 प्रतिशत राशि बिहार सरकार वहन करती है. ऐसे में अब बिहार सरकार का मानना है कि जब बजट का 85 प्रतिशत भाग बिहार सरकार को ही खर्च करना है, तो केंद्रांश मिलने के इंतजार क्यों किया जाये. योजनाओं को देर से क्यों शुरू किया जाये. उन्होंने कहा कि इसपर गहन मंथन के बाद शिक्षा विभाग ने तय किया है कि अप्रैल-मई से ही योजनाओं के क्रियान्वयन कराने से ससमय इसे पूरा किया जा सकेगा.
प्रक्रिया बदलने से हेडमास्टर से लेकर डीएम तक के बढ़े अधिकार
इस नयी व्यवस्था के तहत शिक्षा विभाग में केंद्रीयकृत तरीके से योजनाओं की स्वीकृति की प्रक्रिया को बदल दिया गया है. राशि खर्च करने की प्रक्रिया में जटिलता के कारण अधिसंख्य योजनाएं समय से प्रारंभ ही नहीं हो पा रही थीं. केंद्रीयकृत व्यवस्था की जटिलता के कारण कई योजनाओं के क्रियान्वयन में मुश्किलें आती थी. अब वो व्यवस्थाएं बदली गई है. शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी ने बताया कि खर्च की पुरानी प्रक्रिया से शिक्षा विभाग की बड़ी राशि व्ययगत हो जा रही थी. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विद्यालयों में फर्नीचर खरीदने की केंद्रीयकृत प्रक्रिया के कारण पिछले तीन वर्षों में 160 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर हो गई, जबकि कई विद्यालयों में फर्नीचर का अभाव है और बच्चे फर्श पर बैठ रहे हैं.
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सरकारी स्कूलों में चल रही मॉनिटरिंग
शिक्षा विभाग के केके पाठक के आने के बाद गत जुलाई से सरकारी स्कूलों की स्थायी रूप से गहन मॉनिटरिंग चल रही है. इससे शिक्षकों एवं छात्रों की उपस्थिति में आशातीत सुधार हुआ है और कई मध्य और माध्यमिक विद्यालयों में द्वितीय पाली चलाने की आवश्यकता आन पड़ी है. इसके मद्देनजर युद्धस्तर पर प्रीफेब स्ट्रक्चर का निर्माण, अधूरे पड़े कमरों का निर्माण तथा अतिरिक्त कमरों की व्यवस्था और फर्नीचर की उपलब्धता आवश्यक है. इन आधारभूत संरचना के सुदृढ़ीकरण के लिए अब तक परंपरागत तरीके से शिक्षा विभाग राशि या तो बीईपी (बिहार शिक्षा परियोजना परिषद) अथवा बीएसईआइडीसी (बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम) को देता था. ये दोनों संस्थाएं केंद्रीयकृत तरीके से प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त करते हुए टेंडर निकालती थी और काम करती थीं. केंद्रीयकृत तरीके से प्रशासनिक स्वीकृति विभाग द्वारा दी जाती थी. इसकी प्रक्रिया जटिलताओं से भरी थी. इसी प्रकार केंद्रीयकृत टेंडर प्रणाली भी जटिलताओं से भरी थी. इससे पिछले तीन वर्षों से विद्यालयों में कक्ष निर्माण, फर्नीचर, लैब इत्यादि मदों में योजना एवं गैर योजना शीर्ष विभाग से 3,445 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर की गई, क्योंकि ससमय पूरी प्रशासनिक एवं निविदा प्रक्रियाओं का पालन करते हुए निर्णय लिया जाना संभव नहीं हो सका. अब इस व्यवस्था को बदल दिया गया है.