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झारखंड हाइकोर्ट ने रिपोर्ट पेश करने के लिए विधानसभा को दिया एक और मौका, अब 9 नंवबर को होगी सुनवाई

जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग से जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की जांच की मूल रिपोर्ट मांगी गयी है. पूर्व में मंत्रिमंडल सचिवालय से जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट मांगी जा रही थी.

रांची: हाइकोर्ट ने झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान झारखंड विधानसभा सचिव का पक्ष सुना. इसके बाद खंडपीठ ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विधानसभा सचिव को एक और अवसर दिया. मामले की अगली सुनवाई नाै नवंबर को होगी.

इससे पूर्व विधानसभा के प्रभारी सचिव की ओर से अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश व अधिवक्ता अनिल कुमार ने शपथ पत्र दायर कर बताया कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट विधानसभा सचिवालय को अब तक प्राप्त नहीं हुई. जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग से जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की जांच की मूल रिपोर्ट मांगी गयी है. पूर्व में मंत्रिमंडल सचिवालय से जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट मांगी जा रही थी. मंत्रिमंडल सचिवालय की सलाह पर विधानसभा सचिवालय ने जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग से जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की जांच रिपोर्ट मांगी है.

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अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश ने कहा कि अवमानना का मामला नहीं बनता है, क्योंकि आयोग की जांच रिपोर्ट विधानसभा सचिवालय में नहीं है. जान-बूझकर ऐसा नहीं किया जा रहा है. इसलिए इस मामले में अवमानना की कोई बात नहीं है. उन्होंने समय देने का आग्रह करते हुए जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय आयोग को भेजे गये गये पत्र की प्रतिलिपि खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की. खंडपीठ ने अवलोकन करते हुए आयोग की रिपोर्ट पेश करने के लिए एक और अवसर प्रदान किया. वहीं, प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने बताया कि राज्य सरकार की मंशा विधानसभा में गलत तरीके से चयनित कर्मियों को बचाने की है.

याचिका दायर कर की गयी थी सीबीआइ जांच की मांग

प्रार्थी शिव शंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर करते हुए आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई व सीबीआइ जांच की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बना था. आयोग ने मामले की जांच कर वर्ष 2018 में राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. वर्ष 2021 के बाद से कोई कार्रवाई नहीं की गयी. बाद में जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक और आयोग जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में बना दी गयी.

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