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Brahmacharini Mata ki Aarti: ब्रह्माचारिणी माता की पूजा के बाद जरूर करें ये आरती, घर में आएगी सुख-समृद्धि

Brahmacharini Mata ki Aarti: माता पार्वती के हजारों साल कठोर तप करने के बाद उनके तपेश्वरी स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है. वे इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओ की ज्ञाता हैं और सफेद रंग के वस्त्र धारण करती है.

Brahmacharini Mata ki Aarti: आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है. आज जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के द्वितीय शक्ति स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं. इसके साथ ही बल, बुद्धि, विद्या और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुख और संकट से निजात पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय मां ब्रह्मचारिणी की आरती जरूर करें.

मां ब्रह्माचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा ।

जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।

आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी रखना लाज मेरी महतारी।

दुर्गा जी की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥

जय अम्बे गौरी

माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।

उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥

जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥

जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।

सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥

जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।

कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥

जय अम्बे गौरी

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥

जय अम्बे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥

जय अम्बे गौरी

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।

आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥

जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥

जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।

भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥

जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।

मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥

जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।

श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥

जय अम्बे गौरी

श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥

जय अम्बे गौरी

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