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Navratri 2023: गुजरात की निराली नवरात्रि

Navratri 2023: गुजरात में नवरात्रि के समय गोलाकार पंडाल के मध्य मचाननुमा मंच से गीत-भजन गा रहे गायक-गायिकाओं की स्पीकरों पर गूंजती आवाज पर थिरकते, गरबा करते हजारों युवक-युवतियों को देख ऐसा लगता है जैसे समुद्र हिलोरें ले रहा हो.

Navratri 2023: अहमदाबाद में गली-मोहल्ले से लेकर बड़े-बड़े मैदानों तक में गरबा होता है. सूरत और वडोदरा भी गरबा के बड़े गढ़ माने जाते हैं. वडोदरा का ‘यूनाइटेड वे नवरात्रि महोत्सव’ तो अपने प्रतिभागियों की तादाद को लेकर हर वर्ष पुराने रिकॉर्ड तोड़ता और नये बनाता आया है.

गुजरात में नवरात्रि के समय गोलाकार पंडाल के मध्य मचाननुमा मंच से गीत-भजन गा रहे गायक-गायिकाओं की स्पीकरों पर गूंजती आवाज पर थिरकते, गरबा करते हजारों युवक-युवतियों को देख ऐसा लगता है जैसे समुद्र हिलोरें ले रहा हो. ये ऐसा अद्भुत नजारा है, जिनके भावों को आप केवल महसूस कर सकते हैं, बयान नहीं. ‘गरबा’ शब्द की उत्पत्ति ‘गर्भ’ से हुई है. स्त्री अपने गर्भ में नवजीवन की रचना करती है, उसी के प्रतीक स्वरूप बहुत सारे छिद्रों वाले एक घड़े (गर्भद्वीप) में दीया जला कर उसके चारों तरफ नाचते हुए शक्तिरूपा देवी अंबा की आराधना की जाती है. इसी नृत्य को कालांतर में ‘गरबा’ कहा गया.

गुजरात श्रीकृष्ण की भी भूमि रही है और कृष्ण का गोपियों के साथ रास रचाना भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, इसलिए नवरात्रि में डांडिया भी किया जाता है. सरल शब्दों में जो नृत्य हाथों में डंडियां लेकर किया जाए, वह डांडिया, और जो इनके बिना किया जाये वह गरबा. गरबा और डांडिया रास का मिश्रण गरबा-रास कहा जाता है.

पूरे गुजरात में गरबा के हजारों छोटे-बड़े आयोजन होते हैं. सरकारी तौर पर गुजरात पर्यटन की तरफ से अहमदाबाद व अन्य कुछ जगहों पर विशाल गरबा आयोजन होते हैं. अहमदाबाद में गली-मोहल्ले से लेकर बड़े-बड़े मैदानों तक में गरबा होता है. सूरत और वडोदरा भी गरबा के बड़े गढ़ माने जाते हैं.

वडोदरा का ‘यूनाइटेड वे नवरात्रि महोत्सव’ तो अपने प्रतिभागियों की तादाद को लेकर हर वर्ष पुराने रिकॉर्ड तोड़ता और नये बनाता आया है. यह गरबा आयोजन दरअसल इसके प्रमुख भजन गायक अतुल पुरोहित के कारण भी बेहद लोकप्रिय है. अतुल पुरोहित को सुनने और प्रत्यक्ष देखने की ख्वाहिश लेकर इस गरबा आयोजन में हर वर्ष बड़ी संख्या में देश-विदेश में बसे गुजराती नवरात्रि के दिनों में छुट्टियां लेकर यहां आ पहुंचते हैं.

गोधरा का ‘मां शक्ति गरबा महोत्सव’ भी गुजरात के बड़े गरबा आयोजनों में गिना जाता है. इनके अलावा बहुत सारी सामाजिक और कारोबारी संस्थाएं भी गरबा का आयोजन करती हैं. इनमें अहमदाबाद के फ्रेंड्स गरबा, बाल रास, हेरिटेज गरबा, मिर्ची रॉक एंड ढोल, राजपथ क्लब और वडोदरा के मां शक्ति गरबा, यूनिवर्सिटी गरबा जैसे ढेरों आयोजन अपनी भव्यता और अनोखेपन के लिए जाने जाते हैं. इनमें बहुत से आयोजनों में गुजरात के ही नहीं, बल्कि मुंबईया फिल्मों से जुड़े नामी गायक-गायिकाएं, कलाकार, डीजे, म्यूजिक बैंड आदि भी कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं. बड़े आयोजनों में शामिल होने के लिए काफी महंगी दर पर टिकट या पास लेना पड़ता हैं. ज्यादातर आयोजनों में लड़कियों को तो फिर भी अकेले प्रवेश मिल जाता है, लेकिन लड़कों को बिना किसी जोड़ीदार लड़की के प्रवेश नहीं मिलता. इन आयोजनों में भाग लेने या इन्हें देखने के टिकट-पास आदि के लिए इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न वेबसाइटों की मदद ली जा सकती है.

गरबा या डांडिया-रास में भाग लेने के लिए गुजराती युवा महीनों पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं. गुजरात के विभिन्न शहरों में युवक-युवतियां अपने स्तर पर या किसी कोरियोग्राफर की सेवाएं लेकर कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. बहुत सारे डांस-स्कूल भी गरबा, डांडिया सिखाते हैं. कई गरबा आयोजनों में नृत्य की प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जिनमें जीतने के लिए भी युवा खूब जोर लगाते हैं. डांस सीखने के अलावा पोशाकों को लेकर भी महीनों पहले से युवा जुट जाते हैं. असल में, गरबा और डांडिया सिर्फ पारंपरिक पोशाकों में ही करने की इजाजत होती है. इस दौरान लड़कियां जहां चनिया-चोली (लहंगा-चोली) पहनती हैं, वहीं लड़के केडियू-काफनी या कुर्ता-पायजामा में नृत्य करते हैं.

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इनके अलावा किस्म-किस्म के दुपट्टे, पगड़ियां, मोजरी (जूतियां), झुमके, नथनी, बिंदी, बाजूबंद, कमरबंद, कंगन, चूड़ी, पायल, मांग टीका आदि से युवक-युवतियां खुद को सजाते हैं. नौ दिनों के लिए अलग-अलग पोशाक बनवाने या फिर किराये पर लेकर काम चलाने का चलन भी है. गुजरात के तमाम शहरों में बहुत-सी दुकानें, बुटीक आदि पोशाकें मुहैया कराते हैं. चूंकि, गरबा करते समय काफी शारीरिक श्रम भी लगता है, इसलिए युवा बहुत पहले से नृत्य का अभ्यास करने के साथ-साथ अपनी फिटनेस पर भी ध्यान देना शुरू कर देते हैं. तमाम गरबा आयोजनों में किस्म-किस्म के फूड स्टॉल भी लगे रहते हैं.

दीपक दुआ

‘टिप्पणीकार’

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