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महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान है गगनयान

गगनयान, अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रमा पर मानव अभियान एक-दूसरे से जुड़े अभियान हैं. ये भारत के अंतरिक्ष अभियानों की दिशा के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. ये अभियान देश में विज्ञान की संस्कृति के लिए भी बहुत अहमियत रखते हैं.

गनयान जैसा अभियान किसी भी देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए सबसे उत्कृष्ट श्रेणी का अभियान माना जाता है. इंसान को अंतरिक्ष में भेजना और उसे सुरक्षित वापस लेकर आना- इसके लिए बहुत उन्नत तकनीकी क्षमता की आवश्यकता होती है. अभी तक केवल अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ या रूस और चीन यह कर सका है. और गगनयान अभियान से भारत इस क्षमता को प्राप्त कर लेने वाला चौथा देश बन सकेगा. भारत समेत अन्य कुछ देशों के भी अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की यात्रा पर गये हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए दूसरे देशों के यान का सहारा लेना पड़ा. गगनयान से भारत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अपने ही बने यान से और अपनी ही जमीन से अंतरिक्ष में भेजना चाहता है.

गगनयान अभियान की परिकल्पना 2008 में की गयी थी जब इसरो अध्यक्ष जी माधवन नायर के कार्यकाल में एक यान को भेजकर वापस लाने का प्रयोग किया गया. धरती से ऊपर जाने पर अंतरिक्ष यान का वेग पहले कम रहता है. जिस जगह यह वेग बढ़ता है, वहां वायुमंडल का घनत्व कम होता है जिससे घर्षण कम होता है. लेकिन, वापसी के समय वायुमंडल में प्रवेश करते हुए वेग काफी अधिक रहता है. इससे घर्षण बहुत होता है जिससे तापमान बढ़ जाता है और ऐसे में यान को बचाना बहुत जरूरी होता है. पहले इस तरह के प्रयोग किये गये. इनके अलावा एक अबॉर्ट टेस्ट भी किया गया. इसमें यह प्रयास किया गया कि यदि किसी वजह से रॉकेट में खराबी आ जाती है तो उसमें बैठे यात्री को निकालना पड़ेगा.

इसरो ने 2018 में यह टेस्ट भी किया. गगनयान अभियान के बारे में 21 अक्तूबर को दो प्रयोग किये जायेंगे. पहला तो यह देखा जायेेगा कि रॉकेट आराम से ऊपर चला जाए. दूसरी एक और चीज की जांच की जायेगी जिसे लेकर समस्या आती है. रॉकेट धरती से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर सुपरसोनिक स्पीड पकड़ लेता है और तब दुर्घटना होने का खतरा रहता है. इस समय हवा का वेग बदलने से रॉकेट टूटकर बिखर सकता है. प्रक्षेपण के दौरान आधे घंटे के मौसम के अनुमान के आधार पर रॉकेट को भेजा जाता है. लेकिन, 10 से 20 किलोमीटर के ऊपरी वायुमंडल में यदि अचानक हवा की गति बदल गयी, और रॉकेट सुपरसोनिक स्पीड से जा रहा हो तो उससे भी रॉकेट टूट सकता है.

दरअसल, ऐसे अभियानों में रॉकेट को इस तरह से छोड़ा जाता है कि वह हवा के पीछे-पीछे चले. लेकिन, यदि हवा की दिशा से रॉकेट की दिशा दो डिग्री से ज्यादा बदल जाए, तो रॉकेट टूट सकता है. ऐसी परिस्थिति में रॉकेट आग का गोला बन सकता है. इसलिए ऐसी स्थिति आने पर उसमें सवार यात्रियों को निकाल लेना पड़ेगा. इसे सुपरसोनिक अबॉर्ट टेस्ट कहते हैं. गगनयान के 21 तारीख को होनेवाले प्रयोग पर इसी बात की जांच की जायेगी. इसमें यान को 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर अबॉर्ट किया जायेगा और समुद्र में सही-सलामत लौटाया जायेगा. इसके बाद गगनयान का एक टेस्ट इस बात का भी होगा कि यान के भीतर दबाव के कारण रखे ऑक्सीजन और नाइट्रोजन सिलिंडरों से कोई लीक तो नहीं हो रहा, और सारे उपकरण काम कर रहे हैं या नहीं.

इसके बाद गगनयान को और एक बार अंतरिक्ष में भेजा जायेगा जिसमें रोबोट को बिठाया जायेगा. पहले के अभियानों में अमेरिकी वैज्ञानिक चिंपाजी और रूसी वैज्ञानिक कुत्तों को यान में बिठा कर टेस्ट करते थे. लेकिन, अब जानवरों की सुरक्षा के कानूनों की वजह से ऐसा नहीं किया जा सकता. इसलिए अब रोबोट भेजे जायेंगे और उन पर लगे सेंसरों से मानवों के शरीर पर होनेवाले दबावों का अध्ययन किया जायेगा. इन परीक्षणों को पूरा किये जाने के बाद ही मानवों को गगनयान से अंतरिक्ष में भेजा जायेगा. ऐसे प्रयोग 2025 तक चलेंगे और यदि उनमें कोई समस्या आयी तो उसे दोबारा करना पड़ेगा. ऐसा होने पर गगनयान से मानवों को भेजने का समय और बढ़ सकता है.

गगनयान के अलावा, पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो और बड़े अंतरिक्ष अभियानों को हरी झंडी दे दी है. इनके तहत 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाना और 2040 तक चंद्रमा पर मानव को भेजने का मिशन शामिल है. अंतरिक्ष स्टेशन बनने से मानव वहां बहुत समय तक रह सकता है. अभी गगनयान या चंद्रमा पर मानव भेजने के अभियान में यात्री पांच-सात दिन में लौटकर आ सकते हैं. लेकिन, यदि मंगल के लिए अभियान चलाना हो, तो उसके लिए अंतरिक्ष में बहुत दिनों तक रहने की आवश्यकता होगी. इसलिए अंतरिक्ष स्टेशन बनाने से वैज्ञानिक यह प्रयोग कर सकेंगे कि अंतरिक्ष यात्री कैसे अधिक समय तक अंतरिक्ष में मौजूद रह सकेंगे. अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाकर यह जानकारी हासिल कर ली है.

इसके बाद अब उस स्टेशन को खत्म करने की बात चल रही है. भारत भी अपने अंतरिक्ष यात्री को वहां भेज सकता है. लेकिन, ये देश अपनी अभी तक की जुटायी गयी जानकारियों को भारत के साथ साझा नहीं करेंगे. ऐसी स्थिति में, इसे हासिल करने के लिए भारत को ही अपनी ओर से व्यवस्था करनी होगी, और इसी वजह से भारत अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाना चाहता है. इसके अतिरिक्त, भारत 2040 तक अपने यान से ही अपने यात्री को चांद पर भेजना चाहता है. अभी तक केवल अमेरिका मनुष्य को चांद पर ले जा सका है. रूस और चीन भी ऐसा नहीं कर सके हैं. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने अभी जो लक्ष्य रखा है, वह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.

यह बड़ा चुनौतीपूर्ण भी है और इसके लिए टाइमलाइन भी निर्धारित कर दिया गया है. इसमें बहुत पैसा और श्रम लगेगा. इसके लिए देश में अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र के प्रबंधन और सोच में बदलाव की जरूरत होगी. अब ऐसी स्थिति नहीं है कि कोई उपग्रह खराब होगा. अब इन अभियानों में मनुष्य की जिंदगी का सवाल बन जायेगा. गगनयान, अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रमा पर मानव अभियान एक-दूसरे से जुड़े अभियान हैं. ये भारत के अंतरिक्ष अभियानों की दिशा के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. ये अभियान देश में विज्ञान की संस्कृति के लिए भी बहुत अहमियत रखते हैं. भारत में एक लंबे समय से युवा पढ़ाई करने के बाद ज्यादा पैसे और सुविधा के कारण देश छोड़कर जा रहे हैं. ब्रेन ड्रेन की स्थिति को पलटने के उद्देश्य से भी भारत के अंतरिक्ष अभियानों की सफलता जरूरी है. इनसे साबित हो सकेगा कि विज्ञान के बड़े काम देश में रह कर भी हो सकते हैं और इनके लिए देश छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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