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Sakthi Peethas: आदिशक्ति को समर्पित अष्टादश महाशक्तिपीठ, जानें इन्हें लेकर क्या है मान्यता

शक्ति के उपासकों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व होता है. इस दौरान श्रद्धालु मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और माता के पवित्र मंदिरों एवं शक्तिपीठों के दर्शन करते हैं.

आदिशक्ति की उपासना का महापर्व है नवरात्रि. शक्ति के उपासकों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व होता है. इस दौरान श्रद्धालु मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और माता के पवित्र मंदिरों एवं शक्तिपीठों के दर्शन करते हैं. देवी पुराण के अनुसार, मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं, जबकि आदि शंकराचार्य के ‘अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्रम्’ में 18 शक्तिपीठों का उल्लेख है, जिन्हें ‘महाशक्तिपीठ’ का दर्जा प्राप्त है. मां दुर्गा के इन महाशक्तिपीठों से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. आज महाष्टमी के अवसर पर सुरभि की विशेष प्रस्तुति में जानें इन अष्टादश महाशक्तिपीठों के बारे में.

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त्रिंकोमाली, श्रीलंका

शंकरी देवी

देवी मां को समर्पित शंकरी देवी पीठ मंदिर अष्टादश महाशक्तिपीठों में से एक है. यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिंकोमाली में स्थित है. त्रिंकोमाली आनेवाले लोग इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं. नवरात्रि में यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, पर अष्टमी और नवमी पर काफी भीड़ होती है.

मान्यता : यहां सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था. इसलिए इस मंदिर को महाशक्तिपीठ माना गया. यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं. कहा जाता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी.

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कांचीपुरम, तमिलनाडु

कामाक्षी देवी

यह महाशक्तिपीठ तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है. यहां देवी की अस्थियां गिरी थीं, जहां पर मां कामाक्षी देवी का विशाल मंदिर है. इसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है. यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है.

मान्यता : कामाक्षी देवी को ‘कामकोटि’ भी कहा जाता है. ये मंदिर शंकराचार्य ने बनवाया था. देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय हैं कि उन्हें कामाक्षी की संज्ञा दी गयी. कामाक्षी में मात्र कमनीय ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है. ‘क’ कार ब्रह्मा का, ‘अ’ कार विष्णु का, ‘म’ कार महेश्वर का वाचक है.

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मैसूर कर्नाटक

चामुंडेश्वरी

चामुंडेश्वरी देवी मंदिर कर्नाटक के मैसूर शहर से 13 किमी दूर चामुंडी नामक पहाड़ी पर स्थित है. यह मंदिर मां दुर्गा के चामुंडेश्वरी स्वरूप को समर्पित है. मान्यता है कि इसी जगह पर मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. पहाड़ी पर महिषासुर की ऊंची मूर्ति और मां चामुंडेश्वरी का मंदिर है. यहां माता के बाल गिरे थे.

मान्यता : कथा के अनुसार, महिषासुर को वर मिला था कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों होगी. वर मिलने के बाद महिषासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. तब देवताओं ने उससे छुटकारा पाने के लिए मां की आराधना की. फिर मां ने उसका वध कर राहत दिलायी. मां के इस रूप को ही चामुंडा नाम दिया गया.

आलमपुर, तेलंगाना

जोगुलम्बा देवी

जोगुलम्बा मंदिर तेलंगाना के आलमपुर में स्थित है. यह मंदिर शक्ति की स्वरूप देवी जोगुलम्बा को समर्पित है. यह मंदिर अष्टादश महाशक्ति पीठों में से एक है, जो तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है. इस मंदिर में देवी जोगुलम्बा को सिर पर बिच्छू, मेंढक और छिपकली के साथ एक शव पर बैठे हुए देखा जा सकता है.

मान्यता : ‘जोगुलम्बा’ तेलुगु के शब्द ‘योगुला अम्मा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है’योगियों की मां’. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती जब आत्मदाह कर रही थीं, तब उनके ऊपर के जबड़े और दांत टूट कर नीचे गिर गये थे. इसलिए यह स्थान शक्तिपीठ के नाम से विख्यात है.

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प्रद्युम्न, पश्चिम बंगाल

शृंखला देवी

श्री शृंखला देवी मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के पांडुआ में स्थित है और देवी दुर्गा को समर्पित है. हालांकि, जिस स्थान पर मंदिर है, उस स्थान पर यदि आप जायेंगे, तो आपको सिर्फ एक मीनार खड़ी दिखायी देगी. कहते हैं कि इसी स्थान पर मां सती का उदर गिरा था.

मान्यता : माता शृंखला एक ऐसी देवी हैं, जो प्रसवोत्तर अवस्था में एक महिला को दर्शाती हैं और नवजात शिशु के प्रति प्रेम से बंधी हुई हैं. माना जाता है कि ऋष्यश्रृंग शृंखला देवी के अनन्य भक्त थे.

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श्रीशैलम, आंध्रप्रदेश

भ्रामराम्बा

भ्रामराम्बा देवी मंदिर देवी जगदंबा को समर्पित है, जिन्हें यहां भ्रामराम्बा के नाम से जाना जाता है. यहां माता सती की गर्दन का हिस्सा गिरा था. इस मंदिर में देवी की पूजा ब्रह्माणी शक्ति के रूप में की जाती है. देवी की मूर्ति की आठ भुजाएं हैं और उन्होंने रेशम की साड़ी धारण कर रखी हैं. मंदिर के गर्भगृह में ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा की भी प्रतिमा है.

मान्यता : यहां मां दुर्गा ने मधुमक्खी का रूप धारण करके शिवशंकर की पूजा की थी और इस स्थान को अपने निवास स्थान के रूप में चुना था. भ्रामराम्बा मंदिर को श्रीगिरि, श्रीमाला और ऋषभगिरि जैसे नामों से भी जाना जाता है.

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कोल्हापुर, महाराष्ट्र

महालक्ष्मी

कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने करवाया था. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित माता लक्ष्मी की प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है. मंदिर के अंदर नवग्रहों सहित सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, शिवजी, विष्णु, तुलजा भवानी आदि अनेक देवी-देवताओं के भी पूजा स्थल मौजूद हैं.

मान्यता : कहा जाता है कि देवी सती के इस स्थान पर तीन नेत्र गिरे थे. यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास स्थान है. इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि वर्ष में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं.

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उज्जैन, मध्यप्रदेश

हरसिद्धि देवी

मध्य प्रदेश के उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में शामिल है. 2000 साल पुराने इस मंदिर की चर्चा पुराणों में भी है. जितना खास यह मंदिर है, उतना ही खास इसकी परंपराएं हैं. नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में उत्सव का माहौल होता है. भव्य यज्ञ और पाठ के साथ देवी की खास पूजा-अर्चना होती है.यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं.

मान्यता : कहा जाता है कि यहां सती माता की कोहनी गिरी थी. इसलिए इस मंदिर को शक्तिपीठों में स्थान प्राप्त है. हरसिद्धि मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं. मंदिर के दक्षिण-पूर्व कोण में एक बावड़ी है, जिसके अंदर एक स्तंभ है.

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पीथमपुरम, आंध्र प्रदेश

पुरुहुतिका

आंध्र प्रदेश के पीथमपुरम स्थित पुरुहुतिका देवी मंदिर अष्टादश महा शक्तिपीठों में से एक है. माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का बायां हाथ गिरा था. इस मंदिर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि इसका संबंध गया के विष्णुपद मंदिर से है. पुरुहुतिका शक्तिपीठ मंदिर कुक्कुटेश्वर स्वामी मंदिर परिसर के भीतर स्थित है.

मान्यता : इस मंदिर की मूल मूर्ति जमीन के नीच दबी हुई है. मंदिर परिसर में हुंकृति दुर्गा मंदिर, राजराजेश्वरी मंदिर, श्रीपाद श्रीवल्लभ दत्तात्रेय मंदिर जैसे कई अन्य मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु आते हैं.

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गुवाहाटी, असम

कामाख्या देवी

कामाख्या देवी मंदिर असम के नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है. इस स्थान पर माता सती के योनि का भाग गिरा था. इसके बाद यह जगह पावन स्थल के रूप में स्थापित हो गया. मान्यता है कि इस मंदिर में तांत्रिक अपनी सिद्धियों को सिद्ध करने के लिए आते हैं.

मान्यता : कामाख्या देवी मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि जो भी बाहर से आये श्रद्धालु जीवन में तीन बार मां का दर्शन कर लेते हैं, उनको सांसारिक भवबंधन से मुक्ति मिल जाती है. यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी जाना जाता है. यही वजह है कि मंदिर के कपाट खुलने पर दूर-दूर से साधु-संत व तांत्रिक दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

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द्रक्षरामम, आंध्र प्रदेश

माणिक्यम्बा

आंध्र प्रदेश के द्रक्षरामम स्थित भगवान भीमेश्वर स्वामी मंदिर में ही श्री माणिक्यम्बा देवी का मंदिर है. यह अष्टादश महा शक्तिपीठों में से एक है. कहा जाता है कि भीमेश्वर स्वामी मंदिर में मौजूद सती देवी के बायें गाल को भगवान शिव ने खुद स्थापित किया था. वहीं, करीब 1200 साल पहले आदि शंकराचार्य भी यहां आये थे.

मान्यता : कहते हैं कि द्रक्षरामम मंदिर के पास आज भी दक्ष प्रजापति का होम कुंड मौजूद है, जहां माता सती ने अपना शरीर त्यागा था. यह मंदिर दक्षिण काशी क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. द्रक्षाराम मंदिर शिव के पांच शक्तिशाली मंदिरों में से एक है.

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टनकपुर, उत्तराखंड

पूर्णागिरि देवी

पूर्णागिरी देवी मंदिर उत्तराखंड के टनकपुर से करीब 17 किमी दूर है. मंदिर को महा शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी. पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है.

मान्यता : ऐसी मान्यता है कि यहां पर श्रद्धालु लाल-पीले कपड़े को चीरकर आस्था और श्रद्धा के साथ मां के दरबार में बांधते हैं, जिसे आस्था का चिरा कहा जाता है. मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मां पूर्णागिरि मंदिर के दर्शन और आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आते हैं.

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कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

ज्वाला देवी

हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर स्थित है. 51 शक्तिपीठों में से एक इस शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से जाना जाता है. कुछ लोग तो इसे जाता वाली मां का मंदिर के रूप में भी जानते हैं. इसी जगह पर माता सती की जीभ गिरी थी.

मान्यता : माना जाता है कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी. इस मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं. इन नौ ज्योतियों को अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी, महाकाली के नाम से जाना जाता है.

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प्रयागराज उत्तर प्रदेश

मधुवेश्वरी

प्रयागराज के दक्षिण दिशा में यमुना नदी तट के निकट मीरापुर मोहल्ले में महा शक्तिपीठ ललिता देवी यानी मधुवेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर का विशेष महात्म्य है. मां का यह मंदिर पौराणिक काल से स्थित है. कहते हैं कि पवित्र संगम में स्नान के बाद इस महा शक्तिपीठ में दर्शन-पूजन से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

मान्यता : कहा जाता है कि यहां पर सती का हस्तांगुल गिरा था. साथ ही महाभारत काल में लाक्षागृह अग्निकांड से सकुशल बाहर निकलने पर पांचों पांडव मां ललिता का दर्शन करने आये थे. यहां नवरात्रि में पूजन-दर्शन करने वालों की संख्या बढ़ जाती है.

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सर्वमंगला देवी गया, बिहार

सर्वमंगला गौरी मंदिर बिहार के गया में फल्गु नदी तट पर स्थित है. सर्वमंगला देवी पीठ अष्टादश शक्ति पीठों में से एक है. इस मंदिर का उल्लेख पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण और कई ग्रंथों में किया गया है. यह मंदिर एक शक्ति पीठ है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां माता सती का स्तन मंडल गिरा था. इसलिए यहां सती की पूजा पोषण के प्रतीक के रूप में की जाती है.

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विशालाक्षी देवी वाराणसी, यूपी

वाराणसी के नव शक्ति पीठों में मां विशालाक्षी का महत्वपूर्ण स्थान है. मीरघाट पर गलियों से होते हुए पहुंचने पर धर्मेश्वर महादेव के निकट ही मां विशालाक्षी का भव्य मंदिर है. मान्यता के अनुसार, इस स्थान पर मां सती का कर्ण कुंडल और उनकी आंखें गिरी थीं. इस वजह से श्रद्धालुओं के लिए इस तीर्थ स्थान का माहात्म्य काफी है.

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शारदापीठ देवी, कश्मीर

शारदापीठ देवी सरस्वती का करीब 2400 साल प्राचीन मंदिर है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शारदा के पास किशनगंगा नदी के किनारे स्थित है. शारदा पीठ मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक रहा है. मान्यता है कि यहां सती का दाहिना हाथ आ गिरा था. यह देवी शक्ति के 18 महाशक्ति पीठों में एक माना गया.

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