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गाजा संकट और अमीर मुस्लिम देश

सऊदी अरब, कतर, यूएइ, तुर्की के अलावा इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों ने विकास के मामले में बाकी दुनिया की राह पकड़ी है. सऊदी अरब अब लुभावने विज्ञापन के जरिये अपनी छवि चमका रहा है. यूएइ पहले से ही पर्यटकों और व्यवसायियों के लिए एक मनपसंद जगह रहा है.

कार्ल मार्क्स ने लिखा है- ‘धर्म दमन झेलते लोगों की आह है, बेदिल दुनिया का दिल है, जिनकी आत्मा मर चुकी, उनकी आत्मा है. यह जनता की अफीम है’. उन्हें यह भी कहना चाहिए था कि धर्मों के उपदेशक निकृष्टतम श्रेणी के श्रेष्ठतावादी हैं, जो अपने अनुयायियों की आर्थिक और सांस्कृतिक हैसियत देख भेदभाव करते हैं. वे दिखाने के लिए तो धर्म के नाम पर एक हो जाते हैं, लेकिन बाजार और पैसे की ताकत के सामने बंट जाते हैं. दुनियाभर में चाहे कोई धर्म हो, धर्म के ठेकेदार खुद उस सामाजिक और राजनीतिक रसूख के मजे लेते हैं, जिन्हें वे अपने अनुयायियों को नहीं देना चाहते. अनुयायी मारे जाते हैं, ताकि उन धर्मों के स्वघोषित दूतों की जिंदगी आराम से चलती रहे. खास तौर पर अमीर मुस्लिम देशों में, कोई भी रईस और रसूखदार शासक उन्हें अपनाने आगे नहीं आता. बल्कि, इसके उलट, उन्हें दुत्कार दिया जाता है.

फिलिस्तीन के लोगों के साथ जो हो रहा है वह आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का एक सटीक उदाहरण है. पिछले दो सप्ताह से, वे आतंकी संगठन हमास को शरण देने की कीमत चुका रहे हैं. गाजा के लगभग 22 लाख से ज्यादा वासी दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल में रहने को मजबूर हैं, जो सुविधाओं की कमी के कारण एक शहरी नर्क में बदल चुका है. इस्राइल वहां बम बरसा रहा है, और वे घर छोड़कर पड़ोसी मुस्लिम देशों में नहीं जा पा रहे. विडंबना यह है कि हमास के सारे नेता मिस्र और कतर जैसे मुस्लिम देशों में आलीशान तरीके से रह रहे हैं. गरीब फिलिस्तीनियों ने उन्हें अपना छोटा देश चलाने के लिए चुना था, न कि गोलियां और बम चलाने के लिए. लेकिन, हमास को अपने लक्ष्य को लेकर कोई भ्रम नहीं है. वह मुस्लिम देश फिलिस्तीन बनाना और इस्राइल को नक्शे से मिटाना चाहता है. इस्राइली भी हमास और उनके प्रायोजकों को समाप्त कर देना चाहते हैं. हमास ने अगर इस्राइल के 1500 लोगों को मार डाला, तो इस्राइल ने सुनिश्चित किया कि वह हर एक इस्राइली की जान के बदले गाजा के कम-से-कम तीन लोगों को मारेगा.

इस्राइल ने गाजा के लोगों को गाजा पट्टी खाली करने के लिए कहा है और वे औरतों-बच्चों के साथ सीमा पर फंसे हैं. मिस्र उन्हें नहीं आने दे रहा. जॉर्डन ने उनसे कहा है कि वे घर में डटे रहें. मिस्र को शायद इस बात की चिंता है कि अगर उसने इस्राइल सीमा के पास गाजा-वासियों को बसने दिया, तो उसे भी खतरा हो सकता है. मिस्र के राष्ट्रपति फतह अल-सिसी ने एक अजीब बयान दिया कि गाजा के लोगों को सिनाई लाने का मतलब यह होगा कि ‘विरोध और संघर्ष का गढ़ गाजा पट्टी की जगह सिनाई हो जायेगा, जहां से इस्राइल को निशाना बनाया जायेगा’. वेस्ट बैंक में इस्राइल के साथ सीमा साझा करने वाला जॉर्डन ज्यादा मुखर था. वहां के शाह अब्दुल्ला ने सख्ती से कह दिया कि फिलिस्तीनियों को दोबारा जॉर्डन नहीं आने दिया जायेगा.

हैरानी की बात है कि अरब जगत, जिनमें तेल-संपन्न धनी देश भी शामिल हैं, मुस्लिम देशों के अपने ही भाइयों-बहनों को अपने यहां नहीं आने देना चाहता जिनमें फिलिस्तीनी भी शामिल हैं. यहूदियों के मन में उनका अलग देश होने का ख्याल भरने से पहले जॉर्डन ही उनका असल घर था. सीरिया या सूडान जैसे देशों को छोड़ने वाले अधिकतर लोग या तो इस्लामिक स्टेट, मुस्लिम ब्रदरहुड, हमास और हिज्बुल्ला में शामिल हो गये या उन्होंने अपने गुट बनाये. मुस्लिम शरणार्थियों के एक विश्लेषण से पता चलता है कि सीरिया, अफगानिस्तान, यमन, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे अपेक्षाकृत गरीब देशों के मुस्लिम आप्रवासियों में से अधिकतर लोगों का अमीर मुस्लिम देशों ने स्वागत नहीं किया. कुछ साल पहले जब रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से भगाया गया, तो एक भी मुस्लिम देश ने उन्हें शरण नहीं दी.

उनमें से अधिकतर गैर-मुस्लिम देश भारत आ गये. पिछले एक दशक में अपने देशों को छोड़ने वाले सभी मुसलमानों को उदार ब्रिटेन, यूरोप, अमेरिका, कनाडा और यहां तक कि भारत ने अपनाया. वर्ष 2010 से 2016 के बीच मध्य-पूर्व के 37 लाख मुसलमानों को पश्चिम में नया घर मिला. लेकिन, वे वहां रच-बस नहीं सके हैं और उनमें से अधिकतर दुनियाभर में संगठित आतंकी नेटवर्कों के बड़े आपूर्तिकर्ता हैं. उन्होंने दूसरे देशों में उदार मुसलमानों को भी उन लोगों के खिलाफ अपने पक्ष में आने के लिए धमकाना शुरू कर दिया है जिन्हें वे काफिर कहते हैं. पिछले सप्ताह भी, अमेरिका और यूरोप में कई जगहों पर हमास के समर्थन में प्रदर्शन हुए. ऐसे में पश्चिमी जगत में अब यह सोच बनने लगी है कि मुसलमानों को शरण देने की नीति कहीं उनके लिए भारी तो नहीं पड़ने लगी है.

अभी जबकि सारी दुनिया धार्मिक पहचानों को लेकर जन्म लेते नये तरह के आतंकी खतरे से जूझ रही है, मौजूदा खूनी संघर्ष में ऐसा लगा रहा है, जिसमें एक ओर 57 देशों में बसे 1.8 अरब मुसलमान हैं और दूसरी ओर छोटे से देश इस्राइल में रह रहे 90 लाख से कुछ ज्यादा यहूदी. एक सदी से भी ज्यादा समय तक अपने देश का इंतजार करते यहूदियों में से लगभग 10 लाख दुनियाभर के लगभग 100 देशों में जाकर बस गये, जिनमें सबसे ज्यादा लोग अमेरिका चले गये. अब जहां रुढ़िवादी मुस्लिम यहूदियों को दुनिया से मिटा देने पर पिले हैं, दूसरी ओर यहूदी अपनी बुद्धि, नवाचार और लगन से दुनिया की सबसे अमीर नस्लों में गिने जाने लगे. जॉर्डन और मिस्र को छोड़, एक भी ऐसा मुस्लिम देश नहीं है, जहां मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या एक प्रतिशत से ज्यादा हो.

अपने देशों से शरणार्थियों को दूर रखने के सांस्कृतिक और आर्थिक तर्क दिये जा सकते हैं. सऊदी अरब, कतर, यूएइ, तुर्की के अलावा इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों ने विकास के मामले में बाकी दुनिया की राह पकड़ी है. सऊदी अरब अब लुभावने विज्ञापन के जरिये अपनी छवि चमका रहा है. यूएई पहले से ही पर्यटकों और व्यवसायियों के लिए एक मनपसंद जगह रहा है. इन सबको लगता है कि गाजा के इन अर्धशिक्षित और ब्रेनवॉश किये गये उपद्रवियों को शरण देने से उनकी इस्लामिक पहचान के साथ जारी आधुनिकीकरण का तालमेल बिगड़ जायेगा. उन्हें डर है कि धर्म के नाम पर बलवा करनेवाले ये लोग हथियार उठा लेंगे और उनके देश का माहौल बिगड़ेगा. फिलिस्तीनियों और अन्य गरीब मुस्लिम आप्रवासियों की पीड़ा का यह भद्दा सच अमीर और कॉरपोरेट मुस्लिम जगत का बदसूरत चेहरा दिखाता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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