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करवा-चौथ की रीति में छिपा है गहन दृष्टिकोण

हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि संकष्ट-चतुर्थी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी विनायक-चतुर्थी मानी गयी है. यह दिन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के देवता भगवान गणेश के लिए निर्धारित है.

करवा-चौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. इस बार यह व्रत बुधवार, 1 नवंबर को रखा जायेगा. इस पर्व पर सौभाग्यवती महिलाओं को करवा से चंद्रमा को अर्घ्य देने, चलनी से चंद्रमा के साथ जीवनसाथी को देखने की अनूठी परंपरा है, जिसके पीछे छिपे मनोविज्ञान पर भी चिंतन की जरूरत है.

आजीवन बंधने का भी नाम है करवा :

हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि संकष्ट-चतुर्थी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी विनायक-चतुर्थी मानी गयी है. यह दिन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के देवता भगवान गणेश के लिए निर्धारित है. जीवन में चारों दिशाओं में यश के लिए बुद्धि-विवेक और ज्ञान की जरूरत होती है. इससे तमाम समस्याओं से पार पाया जा सकता है. इस दिन करवा से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. करवा मिट्टी का टोटीदार लोटा होता है. करवा का अर्थ बंधने से भी है. जहाज में कोनिया लगता है, उसे भी करवा कहते हैं. इस प्रकार करवा जिंदगी के जहाज में आजीवन-बंधने से ही होता है.

चंद्रमा को अर्घ्य देने का आशय :

चंद्रमा को मिट्टी के पात्र के शीतल जल द्वारा अर्घ्य देने का आशय जहां से शीतलता मिले, रोशनी मिले, उसके प्रति संवेदना की आर्द्रता प्रदान करने से लेना चाहिए.

मिलता है सुखी दांपत्य का दृष्टिकोण :

विवाहिता स्त्री मायके से अपना जड़ छोड़कर आती है. वह पति को केवल रूप-रंग या रुपये-पैसे से नहीं, बल्कि स्वभाव, कार्य, रुचि, जीवनशैली, ज्ञान आदि उसके विविध रूपों को देखे तथा सामंजस्य बैठाये, क्योंकि उसे ही नयी जमीन पर जमना है. चलनी के विविध छिद्र से देखने का आशय भी यह है कि जैसे आटे या इसी तरह के अन्य पदार्थों को चालकर चोकर, भूसी अलग की जाती है, वही दृष्टि पत्नी की होनी चाहिए. विवाद की जगह समाधान निकालने की तारीफ हमेशा होती है.

‘सूप बोले तो बोले, चलनी भी बोले जिसमें 72 छेद’ :

यहां इस लोकोक्ति का आशय जैसे चलनी नहीं बोलती, उसी प्रकार पति-पत्नी की कमी को लेकर ताने न मारे और पत्नी पति की कमी को लेकर. पूजा में चलनी के प्रयोग का यही आशय निकलता है, क्योंकि दूसरे की कमी तो हर कोई देखता है, पर अपनी कमी नहीं देख पाता. 72 हजार नाड़ियों वाले शरीर में सबमें कुछ-न-कुछ कमी है. एक-दूसरे की बुराई की जगह अच्छाई देखने से अनावश्यक विवाद नहीं होते हैं.

चलनी से देखने का ही विधान क्यों?

पत्नी का चलनी से चंद्रमा और पति को देखने का अद्वितीय आशय रहा है. जहां से प्रकाश, चंद्र किरणों से रोशनी मिले, उसे एक नहीं, सैकड़ों, हजारों दृष्टिकोणों, तरीकों से देखना चाहिए. चलनी एक तरह से उस आधुनिकतम कैमरे की तरह है, जिससे एक ही दृश्य के अनेक चित्र लिये जाते हैं.

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