पश्चिम बंगाल के सिंगूर से टाटा के गुजरात जाने से सिर्फ सिंगूर (Singur) ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य को नुकसान हुआ है. इसके लिए जिम्मेदार केवल ममता ही नहीं हैं. यह कहना है सिंगूर के पूर्व विधायक रवींद्रनाथ भट्टाचार्य का. उल्लेखनीय है कि सिंगूर से टाटा की वापसी के 15 साल बाद कोर्ट के एक आदेश के बाद सिंगूर फिर से चर्चा में है. नैनो कार के निर्माण के लिए सिंगूर में टाटा द्वारा ली गयी 997 एकड़ जमीन के आसपास आंदोलन के बाद किसानों को उनकी जमीन तो मिल गयी, पर कारखाना नहीं तैयार हो पाया और वह जमीन किसानों को खेती लायक भी नहीं रही. इससे यहां के किसानों को भारी अफसोस है.
2006 में वाममोर्चा सरकार ने टाटा को नैनो नामक छोटी गाड़ियां बनाने के लिए 997 एकड़ भूमि का आवंटन किया. टाटा ने राज्य के औद्योगिक विकास निगम के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर कारखाना बनाने के लिए सिंगूर में बेराबेरी, खाशेरभेड़ी, सिंघेरभेड़ी, बाजेमेलिया और गोपाल नगर में कुल 997 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया. जमीन की घेराबंदी होते ही आंदोलन शुरू हो गया. अनिच्छुक किसानों का आरोप था कि उनकी उपजाऊ जमीन जबरदस्ती ली जा रही है. विपक्ष की नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व में, सिंगूर के किसानों ने अपना आंदोलन जारी रखा. इस बीच, कारखाने का काम लगभग 80 प्रतिशत पूरा हो गया था, लेकिन आंदोलन की वजह से टाटा को पीछे हटना पड़ा. 2008 में सिंगूर में कारखाने को बंद कर, गुजरात के साणंद ले जाया गया. इस आंदोलन के बाद वाममोर्चा की सत्ता चली गयी और तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी. मुख्यमंत्री का पद ममता बनर्जी ने संभाला. उन पर किसानों की जमीन वापसी का दायित्व आ गया.
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वहीं, वाममोर्चा की सरकार ने हलफनामे में कहा कि जमीन किसानों के हित के लिए अधिग्रहीत की गयी थी. मामला हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जमीन किसानों को वापस की जानी चाहिए. किसानों को उसी स्थिति में लौटायी जाये, जिस हालत में थी और मुआवजा भी दिया जाये. ममता बनर्जी सत्ता में आते ही सिंगूर के किसानों को जमीन वापस लौटा दी. नैनो-फैक्ट्रियों और फॉलो-ऑन उद्योगों के शेड को रातों-रात तोड़ कर गिरा दिया गया. 2008 से 2023 तक, टाटा के जाने के 15 साल बीत चुके हैं1 कोर्ट के एक आदेश आने के बाद सिंगैर फिर से चर्चा में है. मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि सिंगूर में कारखाने के निर्माण में टाटा द्वारा निवेश किये गये थे. 766 करोड़ राशि को ब्याज के साथ मुआवजे के रूप में भुगतान किया जाना चाहिए.
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उस समय, गोपालनगर के कई लोगों ने भी सिंगूर भूमि आंदोलन में भाग लिया था. उनमें से एक, भुबन बागुई ने कहा हम राजनीति के शिकार हैं. पहले, वाम सरकार ने जमीन ली, फिर तृणमूल सरकार ने जमीन वापस कर दी. लेकिन जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो रही है और बिक्री भी नहीं हो रही है. खेती भी नहीं हो रही है. अनिच्छुक नव कुमार घोष ने कहा कि जमीन को जबरन घेरा गया था. हमने विरोध किया. हमें जमीन वापस मिल गयी. कुछ भूमि पर खेती की जा रही है और शेष भूमि जिस दिन खेती के लिए उपयुक्त होगी उस दिन उस पर खेती की जायेगी.
2000 बीघे की जमीन पर अभी खेती नहीं हो सकती है. उस समय गोपाल नगर के लालटू मुखर्जी ने उद्योग के लिए जमीन दी थी. उन्होंने कहा कि टाटा के साथ औद्योगिक विकास निगम के साथ समझौता हुआ. शायद उस कॉन्ट्रैक्ट में लिखा था कि अगर फैक्टरी नहीं बन सकी, तो मुआवजा देना होगा. कॉन्ट्रैक्ट में क्या है, ये देखने को कहा गया था. लेकिन कोई सरकार दिखा नहीं पायी. अगर सिंगूर में उद्योग लगता, तो यहां की तस्वीर बदल जाती. अब यह बात हर कोई कह रहा है.
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