पटना. आने वाली ठंड के बीच कुहासा के दौरान ट्रेनों का सुरक्षित परिचालन की तैयारी पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर मंडल ने शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि हाल ही में नार्थ इस्ट एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद रेलवे सुरक्षा व संरक्षा को लेकर और सतर्क है. इस बार रेलवे 50 हजार पटाखे खरीदने की तैयारी कर रहा है. इसके अलावा कोहरे को देखते हुए कोहरा कर्मी भी तैनात किये जायेंगे, जिन्हें पटाखा मुहैया कराया जायेगा. इन पटाखों की मदद से ट्रेन चालक को होम सिग्नल की जानकारी दी जायेगी. वहीं, जानकारों की मानें, तो ये पटाखे होम सिग्नल से 270 मीटर पहले रेल पटरियों के स्लीपर के बीच में क्लिप के सहारे लगाये जाते हैं. इस दौरान ट्रेनों की स्पीड भी कम हो जायेंगी. रेलवे अधिकारियों के मुताबिक जल्द ही बैठक कर इस संबंध में सर्कुलर जारी कर दिया जायेगा.
धुंध अधिक रहने से सिग्नल की नहीं मिलती है जानकारी
धुंध अधिक रहने से ट्रेन चालक को जब सिग्नल का अंदाज नहीं होता, तो उन्हें पटाखों की आवाज से होम सिग्नल का पता लगता है. इंजन के पहिये जैसे ही पटाखों पर आते हैं, तो आवाज होने लगती है. इससे ट्रेन चालक को समझ में आ जाता है कि ठहराव स्टेशन या रेलवे क्रॉसिंग करीब है. इसके बाद वह सजग हो जाता है. वहीं फॉग सिग्नल रेलवे अलार्म का उपयोग कुहासे में किया जायेगा. पटना जंक्शन, दानापुर, राजेंद्र नगर टर्मिनल, पाटलिपुत्र जंक्शन समेत मंडल के प्रमुख स्टेशनों पर करीब 1800 से अधिक रेलवे अलार्म का स्टॉक है.
क्या है पटाखा सिस्टम?
दिसंबर माह में कोहरे व धुंध भरे मौसम में रेल आवाजाही दुरस्त रखने के लिए दानापुर डिवीजन ने अपने प्रबंध पुख्ता कर लिए हैं. आधुनिकता भरे इस युग में अभी भी रेल विभाग धुंध में गाड़ियों को सिग्नल दिखाने के लिए अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सिस्टम को अपनाया जा रहा है. हर बार घने कोहरे व धुंध के इस मौसम में पटाखों की मदद से ड्राइवर को सिग्नल की जानकारी दी जाएगी. घनी धुंध व कोहरे के कारण रेलगाड़ियों के ड्राइवरों को ट्रैक पर पड़ते सिग्नल नहीं दिखते. ऐसे में हरेक स्टेशन के होम सिग्नल से 270 मीटर पहले ट्रैक के ऊपर दस-दस मीटर की दूरी पर दो पटाखे लगा दिए जाते हैं. जैसे ही रेल इंजन का भार इन पटाखों पर पड़ता है तो यह जोरदार आवाज के साथ फट जाते हैं. पटाखों की आवाज से ड्राइवर को जानकारी मिल जाती है कि 270 मीटर दूर सिग्नल है, जो कर्मी इन पटाखों को ट्रैक पर लगाते हैं वह नियमों के तहत गाड़ी से 45 मीटर दूर खड़े हो जाते हैं.
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कैसे तय होती है विजीब्लिटी?
हरेक रेलवे स्टेशन के होम सिग्नल से कुछ मीटर दूरी पर एक निशान लगाया जाता है. फिर रेलकर्मी निशान लगे इस स्थान पर खड़े हो 180 मीटर डायामीटर के दायरे में नजर दौड़ाते हैं. अगर इतनी दूरी से रेल सिग्नल दिखाई ना दे तो यह समझा जाता है कि रेल सिग्नल विजीबल नहीं है. लिहाजा ट्रैक पर पटाखे बांध दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया को रेल में विजीब्लिटी टेस्ट आब्जेक्ट कहा जाता है. इन हालातों में ड्राइवरों को यह निर्देश दिए जाते हैं कि वह गाड़ी की स्पीड 110 किमी की बजाए 60 किमी प्रति घंटा रखें. रेलवे के सूत्रों की मानें तो धुंध के दौरान जो भी कर्मी पटाखे लगाने का काम करते हैं, उनसे एक शिफ्ट में तीन घंटों से अधिक ड्यूटी नहीं ली जाती. तीन घंटे ड्यूटी के बाद उन्हें तीन घंटों का आराम दिया जाता है.
कुछ अहम गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम
शताब्दी, जन शताब्दी, दुरंतो के अलावा कई अहम मेल व एक्सप्रेस गाड़ियों में ग्लोबल पोजिनिंग सिस्टम (जीपीएस) लगा होता है. इस सिस्टम से ड्राइवरों को रेल इंजन में बैठे बैठे ही सिग्नल की जानकारी मिलती रहती है, लेकिन अभी भी देश के अधिकतर ट्रेनों में यह सुविधा नहीं है. ऐसे में धुंध और कुहासे के कारण या तो इन ट्रेनों को रद्द कर दिया जाता है या फिर ये काफी देर से चलती हैं. ऐसे में रेलवे ने इन ट्रेनों के समय पर परिचालन सुनिश्चित करने के लिए ठंड से पहले पटाखे खरीदने का निर्णय लिया है.