छत्तीसगढ़ के संसदीय कार्य मंत्री रवींद्र चौबे ने छात्र संघ से राजनीति में कदम रखा और मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के कद्दावर नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई. 28 मई 1957 को बेमेतरा जिला के मौहाभाठा गांव में जन्मे रवींद्र चौबे ने सात बार विधानसभा का चुनाव जीता है. वर्ष 1996 में मध्यप्रदेश विधानसभा ने उन्हें पंडित रविशंकर शुक्ल ‘उत्कृष्ट मंत्री’ पुरस्कार से नवाजा. वर्ष 2005 में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने उन्हें उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार से सम्मानित किया. इंगलैंड, जर्मनी, बेल्जियम, अमेरिका, नेपाल, फ्रांस, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, चीन, थाईलैंड, हांगकांग और मलेशिया जैसे देशों की यात्रा कर चुके हैं.
रवींद्र चौबे ने की है बीएससी एलएलबी की पढ़ाई
बीएससी एलएलबी की पढ़ाई करने वाले रवींद्र चौबे के पिता का नाम देवी प्रसाद चौबे है. 8 फरवरी 1985 को गीता चौबे से उनका विवाह हुआ. इनकी दो संतानें (एक पुत्र, एक पुत्री) हैं. छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री ने बताया है कि उनका व्यवसाय कृषि है. समाज सेवा, ग्रामीण विकास, स्वच्छ प्रशासन तथा जनता के हित में राजनीति करने में उनकी रुचि है.
70 के दशक के अंत में कॉलेज से शुरू की राजनीति
रवींद्र चौबे ने 70 के दशक के अंत में छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. वर्ष 1977-78 में वह दुर्ग के शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में अध्यक्ष चुने गए. 1977 से 1980 तक दुर्ग जिला इकाई के भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के जिलाध्यक्ष रहे. वर्ष 1979-80 में वह रायपुर के रविशंकर विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग के छात्रसंघ के अध्यक्ष बने.
दुर्ग जिला युवक कांग्रेस के महामंत्री और अध्यक्ष रहे
धीरे-धीरे उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया. वर्ष 1980 से 1990 तक दुर्ग जिला युवक कांग्रेस के महामंत्री और अध्यक्ष के रूप में काम किया. वर्ष 1982 में जिला सहकारी थोक उपभोक्ता भंडार दुर्ग का अध्यक्ष बने. 1982 से 1994 तक राज्य सरकारी भूमि विकास बैंक दुर्ग के संचालक रहे. वर्ष 1983 से 1987 तक जिला सहकारी केंद्रीय बैंक दुर्ग के उपाध्यक्ष रहे.
1984 में सरपंच और जिला पंचायत दुर्ग के प्रथम सभापति बने रवींद्र चौबे
वर्ष 1984 में रवींद्र चौबे ग्राम पंचायत महगांव के सरपंच बन गये. इसी साल जनपद पंचायत साजा के अध्यक्ष और जिला पंचायत दुर्ग के प्रथम सभापति बने. वर्ष 1985 में पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए. इसके बाद वर्ष 2013 को छोड़कर वह कभी भी चुनाव नहीं हारे. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में शुमार रवींद्र चौबे ने 1985, 1990, 1993, 1998, 2003, 2008 और 2018 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की.
1995 में मध्यप्रदेश सरकार में पहली बार मंत्री बने
अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा की कई समितियों में सदस्य रहे. वर्ष 1987 में जिला सहकारी केंद्रीय थोक उपभोक्ता भंडार दुर्ग के अध्यक्ष बने. वर्ष 1990 से 1992 तक युवक कांग्रेस मध्यप्रदेश के उपाध्यक्ष रहे. वर्ष 1995 में उन्हें मध्यप्रदेश का उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया. वर्ष 1997 में वह मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री बने. वर्ष 1998 में सामान्य प्रशासन, जनसंपर्क एवं जन शिकायत निवारण विभाग का मंत्री बनाया गया. इस दौरान वह मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष और मध्यप्रदेश माध्यम के उपाध्यक्ष भी रहे.
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छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की सरकार में भी रहे मंत्री
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो रवींद्र चौबे को लोक निर्माण, आवास एवं पर्यावरण, नगरीय प्रशासन एवं विकास, विधि विधायी एवं संसदीय कार्य विभाग का मंत्री बनाया गया. साथ ही छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के सचेतक भी बनाए गए. वर्ष 2009 से वर्ष 2013 तक वह छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे. वर्ष 2018 में जब भूपेश बघेल की सरकार बनी, तो उन्हें संसदीय कार्य, विधि एवं विधायी कार्य, कृषि विकास, किसान कल्याण एवं जैव प्रौद्योगिकी, पशुधन विकास, मछली पालन, जल संसाधन एवं आयाकट मंत्री बनाया गया. वर्ष 2019 से 2021 तक छत्तीसगढ़ विधानसभा में नियम समिति के पदेन सभापति रहे.
साजा विधानसभा सीट पर बीजेपी के लालचंद बाफना को हराया
वर्ष 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में रवींद्र चौबे ने साजा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लाभचंद बाफना को पराजित किया था. विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 2,25,002 वोटर थे, जिसमें से 1,85,321 ने वोट डाले. यानी यहां 82.36 फीसदी मतदान हुआ. इनमें से कांग्रेस को 51.62 फीसदी, बीजेपी को 34.60 फीसदी, जेसीसी (जे) को 3.35 फीसदी वोट मिले. 3.15 फीसदी वोटर्स ने नोटा दबाया.
2013 में साजा सीट नहीं जीत पायी थी कांग्रेस
कांग्रेस के सबसे सीनियर नेताओं में शुमार रवींद्र चौबे को कुल 95,658 वोट मिले, जबकि बीजेपी के लाभचंद बाफना को 64,123, अजीत जोगी की पार्टी जेसीसी (जे) के टेक सिंह चंदेल को 6,206 वोट प्राप्त हुए. साजा विधानसभा सीट पर मतदान करने वालों में 5,840 लोगों ने नोटा दबाया. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद साजा विधानसभा सीट पर रवींद्र चौबे तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. वर्ष 2003, वर्ष 2008 और वर्ष 2018 में उन्होंने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली. वर्ष 2013 में साजा सीट पर कांग्रेस पार्टी को हार झेलनी पड़ी थी. तब लाभचंद बाफना ने बीजेपी के लिए यह सीट जीती थी.
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90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 71 विधायक
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की डेढ़ दशक पुरानी सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. कांग्रेस ने 68 सीटें जीतीं और बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गयी. जेसीसी (जे) और बसपा ने गठबंधन किया था और दोनों ने मिलकर सात सीटों पर जीत दर्ज की थी. 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस वक्त बीजेपी के 13 और कांग्रेस के 71 विधायक हैं. एक सीट अभी रिक्त है. छत्तीसगढ़ में सात और 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव होंगे. तीन दिसंबर को सभी 90 सीटों के लिए मतगणना कराई जाएगी. पांच दिसंबर को छत्तीसगढ़ में चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी.